हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण आदेशः वसीयत के पंजीकरण की अनिवार्यता की खत्म, कहा- प्रावधान मनमाना और अमानवीय

Edited By Ajay kumar,Updated: 13 May, 2024 05:55 PM

important order of high court abolishes the necessity of registration of will

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश द्वारा प्रदेश में वसीयत के पंजीकरण की अनिवार्यता को समाप्त करते हुए अगस्त 2004 के संशोधित कानून और उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 169 की उपधारा 3 को रद कर दिया है।

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश द्वारा प्रदेश में वसीयत के पंजीकरण की अनिवार्यता को समाप्त करते हुए अगस्त 2004 के संशोधित कानून और उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 169 की उपधारा 3 को रद कर दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वसीयत प्राकृतिक और कानूनी उत्तराधिकारियों को छोड़कर किसी भी व्यक्ति, निकाय या ट्रस्ट को इच्छानुसार वसीयतकर्ता की संपत्ति को हस्तांतरित कर सकती है, लेकिन कानून में कभी भी इसे पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं होती है, चाहे न संपत्ति कृषि भूमि हो या अन्य संपत्ति। 

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वसीयत के पंजीकरण का औचित्य मुख्यतः भूमिधारी अधिकार रखने वाले...
कोर्ट ने पाया की वसीयत के पंजीकरण का औचित्य मुख्यतः भूमिधारी अधिकार रखने वाले एक गरीब किसान के लिए उपयोगी है, क्योंकि उसे आसानी से गुमराह कर प्राकृतिक उत्तराधिकारियों को छोड़कर किसी तीसरे के पक्ष में उसकी वसीयत निष्पादित की जा सकती है। इस धोखाधड़ी को कम करने के उद्देश्य से वसीयत के अनिवार्य पंजीकरण हेतु कानून 23 अगस्त 2004 लाया गया था। लेकिन अब कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि वसीयत पंजीकृत नहीं है तो वह अमान्य नहीं होगी, भले ही इसका निष्पादन वर्ष 2004 से पहले हुआ हो। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने प्रमिला तिवारी नामक महिला द्वारा दाखिल याचिका पर मुख्य न्यायाधीश द्वारा भेजे गए मामले को निस्तारित करते हुए 10 मई को पारित किया।

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क्या हा मामला? 
गौरतलब है कि इस न्यायालय की समन्वय पीठों द्वारा पारित विरोधाभासी विचारों पर भ्रम की स्थिति स्पष्ट करने के लिए मुख्य न्यायाधीश ने उक्त खंडपीठ को यह मामला भेजा था। वसीयत केवल वसीयतकर्ता की मृत्यु पर ही प्रभावी होती है। अतः उसका पंजीकरण अनिवार्य रूप से आवश्यक है। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि कई मामलों में यह संभव है कि एक व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम चरणों में अपनी वसीयत बदलना चाहे तो पंजीकरण की अनिवार्यता उसे वसीयत बनाने के मौलिक अधिकार से वंचित कर देती है, जो पूर्णतः मनमाना और अमानवीय दृष्टिकोण है। कोर्ट ने टिप्पणियों के साथ मामले की योग्यता के आधार पर निर्णय के लिए संबंधित पीठ के समक्ष याचिका को वापस भेज दिया।

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