Edited By Mamta Yadav,Updated: 03 Apr, 2023 11:55 PM

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राज्यपाल (Governor) आनंदीबेन पटेल (Anandiben Patel) ने योगी सरकार (Yogi Sarker) द्वारा भेजे गए यूपी विधान परिषद (MLC) के लिए 6 नामों के नियुक्ति प्रस्ताव को सोमवार को मंजूरी दे दी। राज्यपाल ने अलीगढ़ मुस्लिम...
लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राज्यपाल (Governor) आनंदीबेन पटेल (Anandiben Patel) ने योगी सरकार (Yogi Sarker) द्वारा भेजे गए यूपी विधान परिषद (MLC) के लिए 6 नामों के नियुक्ति प्रस्ताव को सोमवार को मंजूरी दे दी। राज्यपाल ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर और पूर्व कैबिनेट सचिव नृपेंद्र मिश्रा के बेटे साकेत मिश्रा सहित शिक्षा, वकालत, समाजसेवा से जुड़े 6 लोगों को विधान परिषद सदस्य मनोनीत किया है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी।

बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक अप्रैल को एएमयू के कुलपति डॉ. तारिक मंसूर, वित्तीय सलाहकार एवं पूर्व आईपीएस साकेत मिश्रा, भाजपा के ब्रज क्षेत्र के पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष रजनीकांत माहेश्वरी, 2022 विधानसभा चुनाव में फुलपुर पवई से प्रत्याशी रहे एडवोकेट रामसूरत राजभर, वाराणसी में भाजपा के जिलाध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा और उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम के अध्यक्ष लालजी वर्मा को परिषद सदस्य मनोनीत करने का प्रस्ताव भेजा था। राज्यपाल ने प्रस्ताव का विधिक परीक्षण कराने के बाद प्रस्तावित सभी छह सदस्यों को परिषद सदस्य मनोनीत करने की मंजूरी दी।

उप्र भाजपा नेताओं के अनुसार, साकेत मिश्रा एक निवेश बैंकर, नीति योगदानकर्ता और पूर्वांचल विकास बोर्ड के सलाहकार हैं। वह भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता और सेंट स्टीफेंस कॉलेज के पूर्व छात्र हैं। भाजपा ने तारिक मंसूर के जरिये मुसलमानों में अपनी पकड़ बनाने की पहल की है तो लालजी प्रसाद निर्मल दलित वर्ग, हंसराज विश्वकर्मा और रामसूरत राजभर अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। साकेत मिश्र ब्राह्मण और रजनीकांत वैश्य समाज से आते हैं। राजभर ने 2022 का विधानसभा चुनाव आजमगढ़ जिले के फूलपुर पवई से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था, लेकिन समाजवादी पार्टी के रमाकांत यादव से हार गए थे।
गौरतलब है कि विधान परिषद में मनोनीत कोटे के तीन पद 29 अप्रैल 2022 और तीन पद 27 मई 2022 से खाली हैं। परिषद सदस्यों के मनोनयन को लेकर भाजपा में करीब 6 महीने तक लखनऊ से लेकर दिल्ली तक मंथन चला। लंबी मशक्कत के बाद आगामी नगरीय निकाय और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से 6 सदस्यों के नामों पर सहमति बनी।