Edited By Pooja Gill,Updated: 21 Jul, 2024 03:09 PM

UP Nameplate Controversy: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला पुलिस द्वारा हाल ही में कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने की सभी दुकानों पर मालिकों का नाम प्रदर्शित करने का आदेश जारी किये जाने के बाद इन स्थानों पर नौकरी करने वाले छोटे कामगारों का रोजगार...
UP Nameplate Controversy: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला पुलिस द्वारा हाल ही में कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने की सभी दुकानों पर मालिकों का नाम प्रदर्शित करने का आदेश जारी किये जाने के बाद इन स्थानों पर नौकरी करने वाले छोटे कामगारों का रोजगार प्रभावित हो गया है और उन्हें अस्थायी रूप से निकाल दिया गया है। मुस्लिम समुदाय के लोगों के स्वामित्व वाले कई भोजनालयों में, अतिरिक्त कर्मचारियों को अस्थायी रूप से निकाल दिया गया है, जबकि हिंदू भोजनालय के मालिकों ने भी कम से कम कांवड़ यात्रा की अवधि तक के लिए मुस्लिम कर्मचारियों को अस्थायी रूप से हटा दिया है।
'इस मौसम में अन्य काम मिलना बहुत मुश्किल है'
दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बृजेश पाल पिछले सात वर्षों से सावन माह से कुछ हफ्ते पहले मुजफ्फरनगर जिले के खतौली क्षेत्र में सड़क किनारे भोजनालय (ढाबा) में हेल्पर के रूप में काम करते था। उसके ढाबे का मुस्लिम मालिक कांवड़ियों की बढ़ती संख्या को संभालने के लिए पाल को करीब दो माह की अवधि के लिए अपने यहां नौकरी पर रखता था। पाल रेस्तरां में अतिरिक्त ग्राहकों का प्रबंधन करने में मदद करता और बदले में उसे प्रतिदिन 400-600 रुपये और कम से कम दो वक्त का भोजन मिलता था। उन्होंने अपनी परेशानियों के बारे में बताया, "यह आय का एक अच्छा स्रोत था क्योंकि इस मौसम में अन्य काम मिलना बहुत मुश्किल है। चूंकि मानसून के समय में निर्माण और कृषि कार्य ज्यादा नहीं होते, इसलिए ढाबे के अलावा अन्य काम मिलना मुश्किल है। मैंने एक सप्ताह पहले ढाबे पर नौकरी के लिये गया था, लेकिन अब मालिक ने मुझे किसी अन्य स्थान पर काम की तलाश करने के लिए कहा है।"
'मुस्लिम नाम देखकर कांवड़िए मेरे यहां आकर खाना नहीं खाएंगे'
वहीं, दूसरी ओर, पाल के नियोक्ता मोहम्मद अर्सलान ने हाल ही में पुलिस के उस आदेश के बारे में शिकायत की, जिसमें कांवड़ मार्ग पर भोजनालयों और ठेलों के मालिकों से अपने आउटलेट के बाहर नाम लिखने के लिए कहा गया है। अर्सलान ने बताया, "मेरे ढाबे का नाम इस मार्ग पर हर तीसरे ढाबे की तरह ‘बाबा का ढाबा' है, मेरे आधे से ज्यादा कर्मचारी हिंदू हैं। हम यहां सिर्फ़ शाकाहारी खाना परोसते हैं और श्रावण में लहसुन और प्याज तक का इस्तेमाल नहीं करते।” उन्होंने कहा, “फिर भी, मुझे मालिक के तौर पर अपना नाम बताना पड़ा और ढाबे का नाम भी बदलने का फ़ैसला किया। मुझे डर है कि मुस्लिम नाम देखकर कांवड़िए मेरे यहां आकर खाना नहीं खायेंगे। इतने सीमित कारोबार में मैं इस साल अतिरिक्त कर्मचारी नहीं रख सकता।” इसी तरह कई और कामगारों के काम पर भी असर पड़ा है। कई दुकान मालिकों ने अपने कर्मचारियों को दुकान से जाने को कह दिया है।