फिर उठी उत्तर प्रदेश के विभाजन की मांग

Edited By Ajay kumar,Updated: 12 Nov, 2019 08:59 AM

demand for partition of uttar pradesh again

अयोध्या में रामजन्मभूमि प्रकरण को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के विभाजन की की मांग एक बार फिर उठने लगी है।

लखनऊ: अयोध्या में रामजन्मभूमि प्रकरण को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के विभाजन की की मांग एक बार फिर उठने लगी है।  अवध राज्य आंदोलन समिति के संयोजक रवींद्र प्रताप सिंह ने सोमवार को यहां पत्रकारों से कहा कि उत्तर प्रदेश के समग्र विकास के लिये यह जरूरी है कि राज्य का बंटवारा पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रूप में हो। पूर्वी उत्तर प्रदेश को अवध राज्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का नामकरण वहां की जनता के मंशा के अनुरूप किया जाये।  

उन्होंने कहा कि अवध एक नैसर्गिक राज्य है जिसकी स्थापना मानव सभ्यता के संस्थापक महाराजा मनु के वंशज महाराजा इच्छवाकु ने सतयुग में अयोध्या नगरी और कोसल राज्य बसाकर की थी। अंग्रेज़ो ने अवध की धन सम्पदा और श्रम शक्ति लूटने के उद्देश्य से इसका राज्य का दज़र समाप्त करके आगरा के साथ मिलाकर संयुक्त प्रान्त नाम का आप्रकृतिक राज्य बना दिया। स्वतन्त्र भारत की सरकार ने इसी का नामकरण उत्तर प्रदेश के नाम से कर दिया।   

उन्होने बताया कि लखीमपुर खीरी, हरदोई, कानपुर नगर, कौशाम्बी, प्रयागराज, मिर्जापुर, सोनभद्र, चन्दौली, बलिया, कुशीनगर, महारजगंज, बलरामपुर, श्रावस्ती और बहराइच की सीमा से घिरे हुए इन जिलों को अलग कर अवध राज्य की स्थापना करना आवश्यक है। अयोध्या के सर्वमान्य महंत नृत्यगोपाल दास के शिष्य लखनऊ के टिकैतराय तालाब स्थित रामजानकी मंदिर के महंत कौशलदास महाराज ने अवध राज्य आंदोलन को मानसिक और सैद्धांतिक सहमति जताते हुए कहा कि राम मंदिर निर्माण के बाद रामराज्य की स्थापना होने से अवध का प्राचीन वैभव वापस आ जाएगा।

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