Edited By Pooja Gill,Updated: 19 Oct, 2024 02:19 PM
आगरा: उत्तर प्रदेश के आगरा में कचरे का वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण न होने और कूड़ा जलाए जाने के मामलों को गंभीरता से लेते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ी कार्रवाई की है। एनजीटी ने नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड...
आगरा (मान मल्होत्रा): उत्तर प्रदेश के आगरा में कचरे का वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण न होने और कूड़ा जलाए जाने के मामलों को गंभीरता से लेते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ी कार्रवाई की है। एनजीटी ने नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, और केंद्र व राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। यह आदेश शहर के पर्यावरणविद् डॉ. शरद गुप्ता की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया।
'कूड़े को जलाने से निकलने वाला धुआं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है'
डॉ. शरद गुप्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि शहर में कूड़े से बिजली नहीं बनाई जा रही, बल्कि कूड़े को जलाने से निकलने वाला धुआं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। कूड़े से बिजली बनाने का प्लांट 2022 में चालू होना चाहिए था, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी मशीनरी नहीं आई और न ही बाउंड्रीवाल बनाई गई है। कुबेरपुर लैंडफिल साइट पर जमा कचरे के पहाड़ों में लगने वाली आग से लोगों की सेहत बिगड़ रही है। 4 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा कचरा यहां जमा है, जिससे लगातार धुआं उठता रहता है।
डॉ. शरद गुप्ता
2021 में एनजीटी ने दिया था ये आदेश
वर्ष 2021 में एनजीटी ने पुराने कचरे को निस्तारित करने के आदेश दिए थे, लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। एनजीटी की बेंच जिसमें चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य अरुण कुमार त्यागी, और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल शामिल थे, ने इस याचिका पर सुनवाई की।
प्रदूषण की वजह से बीमारियां बढ़ रहीं
शहर में प्रदूषण की वजह से बीमारियां बढ़ रही हैं। सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज) का सबसे बड़ा कारण प्रदूषण है, जिससे फेफड़े खराब हो रहे हैं। अधिकारी समस्या की जड़ पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। शहर और लैंडफिल साइट दोनों जगहों पर कचरा जलाया जा रहा है, जिसका वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण नहीं हो रहा। कूड़ा अब कमाई का जरिया बन गया है। इस मामले में एनजीटी ने जवाब तलब किया है।
नगर निगम से मांगी वार्षिक रिपोर्ट
आगरा नगर निगम के नगर आयुक्त को एनजीटी ने जवाबी हलफनामे के साथ वार्षिक रिपोर्ट भी दाखिल करने के आदेश दिए हैं। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के तहत फॉर्म-कश् में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जमा की गई रिपोर्ट भी मांगी गई है। वर्ष 2020 में दायर याचिका के बाद एनजीटी ने कुबेरपुर में जमा कचरे को निस्तारित न करने पर 1.07 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।
सात विभागों को नोटिस जारी
एनजीटी ने इस मामले में सात विभागों को नोटिस जारी किया है और हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 4 फरवरी 2025 को होगी। इससे पहले पर्यावरण मंत्रालय, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव पर्यावरण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ताज ट्रेपेजियम जोन अथॉरिटी और नगर निगम को अपना जवाबी हलफनामा सुनवाई से सात दिन पहले दाखिल करना होगा। डा. गुप्ता की ओर से उनके अधिवक्ता अंशुल गुप्ता और आदित्य तैनगुरिया ने पक्ष रखा।
कचरा जलाने पर प्रतिबंध
शहर में प्रतिदिन करीब 750-800 मीट्रिक टन कचरा निकलता है। टीटीजेड क्षेत्र में कचरा जलाने पर सुप्रीम कोर्ट के कड़े प्रतिबंध हैं, फिर भी शहर में और नगर निगम की लैंडफिल साइट पर कचरा जलाया जा रहा है। नगर निगम के अधिकारी किसी व्यक्ति को कचरा जलाते या धूल उड़ाते पकड़ते हैं, तो उसका चालान किया जाता है, जबकि अपने ही खत्ताघर में कूड़ा जलना बंद नहीं कर पा रहे हैं। अधिकारियों का दावा है कि शहर में कचरा जलाने वालों पर सीसीटीवी कैमरों की मदद से निगरानी की जा रही है, लेकिन डॉ. शरद गुप्ता की याचिका से निगम की व्यवस्थाओं की पोल खुल गई है।
वेस्ट टू एनर्जी प्लांट नहीं बना
डा. शरद गुप्ता का कहना है कि नगर निगम के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि कुबेरपुर लैंडफिल साइट पर 15 मेगावाट का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाया जाएगा, जिससे रोजाना 750 मीट्रिक टन कचरा जलाकर बिजली बनाई जाएगी। इस प्लांट पर करीब 170 करोड़ रुपये की लागत आएगी। हालांकि, 2021 से इस प्लांट की चर्चा हो रही है, लेकिन अभी तक यह प्लांट नहीं बन पाया है। कुबेरपुर में सिर्फ जमीन का समतलीकरण और बाउंड्रीवाल का काम हुआ है, जिसकी वजह से वहां कचरा लगातार जल रहा है।
कमाई का जरिया बना कचरा
नगर निगम ने कुबेरपुर लैंडफिल साइट पर जमा कचरे को निस्तारित करने का हलफनामा दाखिल किया था। इसके तहत वहां कचरे से बिजली बनाने का प्लांट लगाने की योजना थी, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से कचरा अब जलाया जा रहा है। कचरे को छानने के लिए एक मशीन लगाई गई है, जिससे प्लास्टिक और लोहा आदि निकालकर बेचा जा रहा है। कूड़ा अब कमाई का जरिया बनकर रह गया है। शहर में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन नाम पर भी खानापूर्ति की जा रही है। जहां भी कर्मचारी कूड़ा लेने जाते हैं वे भी उसमें प्लास्टिक अन्य पदार्थ बेचने के लिए ले जाते हैं।