Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 22 Jan, 2022 03:01 PM
चुनावी मौसम नारों के बिना बेस्वाद लगता है। चुनावी कोई भी हो, लेकिन नारों का बड़ा ही दिलचस्प इतिहास रहा है। तभी तो चुनावी नारे लोकतंत्र के उत्सव को बेहद रोचक बना देते हैं। हार जीत तो नतीजे तय करते हैं, ...
लखनऊ: चुनावी मौसम नारों के बिना बेस्वाद लगता है। चुनावी कोई भी हो, लेकिन नारों का बड़ा ही दिलचस्प इतिहास रहा है। तभी तो चुनावी नारे लोकतंत्र के उत्सव को बेहद रोचक बना देते हैं। हार जीत तो नतीजे तय करते हैं, लेकिन ये नारे ख्याली पुलाव जरुर पका जाते हैं। इसी कड़ी में बसपा ने भी समय-समय पर चुनावी नारों में हुंकार भरी है, जो काफी चर्चीत हुए। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए भी बसपा सुप्रीमो मायावती ने नारा बुलंद कर दिया है। इस चुनाव में बसपा का नारा होगा ‘हर पोलिंग बूथ को जिताना है, बसपा को सत्ता में लाना है।
'तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार'
1984 में बहुजन समाज पार्टी बनाकर कांशीराम चुनावी राजनीति में आए। तब नारे थे- ‘ठाकुर ब्राह्मण बनिया चोर, बाकी सब हैं डीएस फोर’ व ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।’ बसपा का कहना है कि ये उसके नारे नहीं थे। कांशीराम कहते थे- पहला चुनाव हारने, दूसरा हरवाने और तीसरा जीत के लिए लड़ेंगे।
'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम'
राममंदिर आंदोलन के दौर में 1993 के विधानसभा चुनाव में कांशीराम और मुलायम मिलकर लड़े और भाजपा को हरा दिया। इस दौरान एक नारा ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम’ प्रदेश की राजनीति का केंद्र बन गया।
'चढ़ गुंडन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर'
1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद बसपा ने सपा समर्थकों को गुंडा कहना शुरू किया था। इसी का असर आगे आने वाले यूपी के विधानसभा चुनाव के नारों पर पड़ा। मायावती के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही बसपा ने नारा दिया- चढ़ गुंडन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर। भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ भी बसपा ने चर्चित नारा बनाया था- चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, ना रहेगा हाथ, ना रहेगा फूल।
'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है'
2006 में कांशीराम के निधन के बाद मायावती बसपा अध्यक्ष बनी। वे समझ गई थीं कि कोर वोट के आगे बढ़ने के लिए ‘बहुजन’ को ‘सर्वजन’ में बदलना होगा। 2007 के यूपी चुनाव में उन्होंने सवर्ण वोटरों को जोड़ने के लिए ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है’, ‘पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’ जैसे नारे दिए गए। बसपा ने बहुजन हिताय की जगह सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का नारा भी दिया था। ब्राम्हणों को साथ जोड़कर मायावती ने सरकार बनाई।