Edited By Mamta Yadav,Updated: 19 Jun, 2022 10:52 PM
दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिये लिखने, पढ़ने और कम्प्यूटर के इस्तेमाल के लिए ब्रेल लिपि की चुनौतियों को आसान बनाते हुए बिना ब्रेल लिपि के इशारों से ही कंप्यूटर चलाने की दिशा में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएसयू) को उल्लेखनीय सफलता मिली है।
वाराणसी: दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिये लिखने, पढ़ने और कम्प्यूटर के इस्तेमाल के लिए ब्रेल लिपि की चुनौतियों को आसान बनाते हुए बिना ब्रेल लिपि के इशारों से ही कंप्यूटर चलाने की दिशा में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएसयू) को उल्लेखनीय सफलता मिली है।
विश्वविद्यालय की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक आईआईटी-बीएचयू तथा अमेरिका के केस वेस्टर्न रिजर्व विश्वविद्यालय (सीडब्ल्यूआर) के शोधकर्ताओं की टीम को महत्वपूर्ण इस दिशा में किये गये शोध के उत्साहजनक नतीजे मिले हैं। आईआईटी बीएसयू का दावा है कि ये अपनी तरह का ऐसा पहला प्रयोगात्मक शोध कार्य था, जिसमें द्दष्टिबाधित लोग अपने हाव-भाव से कम्प्यूटर के साथ संवाद की तकनीक ‘डैक्टाइलोलॉजी' की मदद से कम्प्यूटर का प्रयोग कर सकेंगे।
बीएसयू के मनोविज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डा तुषार सिंह तथा शोध छात्रा ऐश्वर्य जायसवाल द्वारा किये गये शोध में सामने आया है कि डैक्टाइलोलॉजी की मदद से द्दष्टिबाधित व्यक्ति कंप्यूटर चलाने में उपयोगी हो सकती है। प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग जर्नल ‘आईईईई ट्रांसएक्शन्स ऑन ह्यूमन-मशीन सिस्टम्स' में प्रकाशित इस शोध में द्दष्टिबाधित उपयोगकर्ताओं के लिए ब्रेल और डैक्टाइलोलॉजी का तुलनात्मक मूल्यांकन किया। इसमें पाया गया कि ब्रेल की तुलना में डैक्टाइलोलॉजी, द्दष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह खोज द्दष्टिबाधित लोगों को कंप्यूटर या कम्प्यूटरीकृत प्रणालियों के संचालन में मददगार बन कर उन्हें डिजिटल युग का हिस्सा बनने में सक्षम बनायेगी।
इस दौरान शोधकर्ताओं ने द्दष्टिबाधित प्रतिभागियों को कंप्यूटर को इनपुट देने हेतु डैक्टाइलोलॉजी पोज़गिं और ब्रेल टाइपिंग तकनीकों पर मासिक प्रशिक्षण दिया। इसके बाद प्रतिभागियों के टाइपिंग प्रदर्शन पर डैक्टाइलोलॉजी और ब्रेल के प्रभाव का आंकलन किया गया। परिणाम बताते हैं कि, लगभग सभी स्थितियों में, ब्रेल की तुलना में हाव-भाव-आधारित तकनीक के उपयोग में प्रतिभागियों का समय बचा साथ ही त्रुटियां भी कम देखी गईं। इन निष्कर्षों के आधार पर डा तुषार सिंह ने बताया कि प्रतिभागियों ने ब्रेल की तुलना में हाव-भाव आधारित तकनीक का उपयोग करके टाइपिंग कार्य में बेहतर प्रदर्शन किया। यह तकनीक द्दष्टिबाधितों के लिए अधिक सुविधाजनक और महत्वपूर्ण इनपुट तकनीक साबित हुई।
उन्होंने कहा कि द्दष्टिबाधितों की आबादी के लिहाज़ से भारत विश्व में पहले स्थान पर है। ऐसे दौर में जब कंप्यूटर रोज़मरर की ज़दिंगी का अभिन्न अंग बन चुके हैं, यह समय की मांग है कि ऐसी पद्धतियां विकसित की जाएं, जिससे द्दष्टिबाधित लोग प्रभावी व कुशल ढंग से कम्प्य़ूटर का इस्तेमाल कर पायें। उन्होंने बताया कि कंप्यूटर इनपुट हेतु ब्रेल-आधारित उपकरण और अन्य पारंपरिक तकनीक उपलब्ध हैं, लेकिन उनकी अपनी सीमाएं हैं, जिसके कारण इनका व्यापक स्तर पर प्रयोग नहीं होता। यह अध्ययन द्दष्टिबाधितों की शिक्षा एंव रोज़गार में योगदान कर उनके सशक्तिकरण की राह दिखाता है।