Edited By Ramkesh,Updated: 02 Dec, 2020 08:19 PM
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ में चल रहे चर्चित हाथरस मामले में वहां के जिलाधिकारी (डीएम) प्रवीण कुमार को न हटाने की जानकारी देते इसकी चार वजह बताईं है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ में चल रहे चर्चित हाथरस मामले में वहां के जिलाधिकारी (डीएम) प्रवीण कुमार को न हटाने की जानकारी देते इसकी चार वजह बताईं है। इसके साथ ही पीड़िता के रात में कराए गए अन्तिम संस्कार को भी सरकार की ओर से तथ्य पेश कर उचित ठहराने की बात भी की गई है । यह भी कहा कि इस सम्बन्ध में हाथरस के जिलाधिकारी ने कुछ भी गलत नहीं किया। मामले में स्वयं संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायामूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ के समक्ष प्रदेश सरकार की तरफ से पेश अधिवक्ता ने यह जानकारी अदालत को दी।
बता दें कि गत 25 नवम्बर को सुनवाई के दौरान अदालत ने उनसे पूछा था कि हाथरस के डीएम को वहां बनाए रखने को लेकर उनके पास क्या निर्देश हैं। न्यायालय ने सुनवाई के बाद आदेश दिया, जो बुधवार को उच्च न्यायालय की वेबसाईट पर उप्लब्ध हुआ। आदेश के मुताबिक न्यायालय के पूछने पर सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता एसवी राजू ने कहा कि इस मुद्दे पर गौर करने के बाद सरकार ने हाथरस के डीएम को न हटाने का निर्णय लिया है। इसका पहला कारण बताया कि हाथरस की घटना को लेकर राजनीतिक खेल खेला जा रहा है और दबाव बनाने को राजनीतिक दलों ने अन्यथा वजहों के साथ डीएम के तबादले को मुद्दा बना दिया है। दूसरा कारण यह बताया कि मामले की तफ्तीश संबंधी साक्ष्य में डीएम के जरिए छेड़छाड़ का सवाल ही पैदा नहीं होता है। तीसरा करण यह कि पीड़िता के परिवार की सुरक्षा अब सीआरपीएफ के हाथ में है जिसका राज्य सरकार व इसके प्राधिकारियों से कोई सरोकार नहीं है। चौथा कारण यह है कि मामले की विवेचना सीबीआई कर रही है। इसमें भी राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है।
राज्य सरकार के वकील ने पीड़िता के रात में कराए गए अन्तिम संस्कार को तथ्यों के साथ उचित ठहराने की भी कोशिश की। यह भी कहा कि इस सम्बन्ध में हाथरस के जिलाधिकारी ने कुछ भी गलत नहीं किया। इस मामले में अदालत ने पहले 12 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान हाथरस में परिवार की मर्जी के बिना रात में शव का अंतिम संस्कार किए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा था कि बिना धार्मिक संस्कारों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ति उसके स्वजन और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इसके लिए जिम्मेदारी तय कर कारर्वाई करने की आवश्यकता है। अदालत ने इस मामले में मीडिया,राजनीतिक दलों व सरकारी अफसरों की अतिसक्रियता पर भी नाराजगी प्रकट करते हुए उन्हें इस मामले में बेवजह बयानबाजी न/न करने की हिदायत भी दी थी।
गौरतलब है कि हाथरस जिले के बूलगढ़ी गांव में गत 14 सितम्बर को एक युवती से चार लड़कों के कथित रूप के साथ सामूहिक दुष्कर्म और बेरहमी से मारपीट की थी। युवती को पहले जिला अस्पताल ,फिर अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था। हालत बिगडऩे पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया था, जहां 29 सितम्बर की रात उसकी मृत्यु हो गई थी। मौत के बाद आनन-फानन में पुलिस ने रात में अंतिम संस्कार करा दिया था, जिसके बाद काफी बवाल हुआ। परिजनों का आरोप था कि उनकी मर्जी के खिलाफ पुलिस ने पीड़तिा का अंतिम संस्कार कर दिया, हालांकि पुलिस इन दावों को खारिज कर रही है। हाथरस के तत्कालीन एसपी विक्रान्त वीर ने अदालत में कहा था कि पीड़िता के शव का रात में अन्तिम संस्कार कराने का निर्णय उनका और डीएम का था। मामले की अब उच्च न्यायालय की निगरानी में सीबीआई जांच कर रही है। अदालत ने इस मामले को सुनवाई के लिए 16 दिसम्बर नियत किया है ।