महिला पत्रकार से छेड़छाड़ के मामले में दो आरोपी गिरफ्तार, अखिलेश यादव के पोस्ट से एक्शन में आई नोएडा पुलिस

Edited By Ramkesh,Updated: 16 Aug, 2024 02:42 PM

two accused arrested in case of molestation of female journalist

नोएडा में सरेआम महिला पत्रकार से छेड़छाड़ के मामले में अखिलेश यादव के पोस्ट से हरकत में आई नोएडा पुलिस ने 24 घंटे के अन्दर ही दोनो आरोपियों को गिरफ्तार लिया है। नोएडा पुलिस ने बताया 25 वर्षीय अश्वत निवासी और 27 वर्षीय विपिन मुजफ्फरनगर के रहने वाले है,...

नोएडा: नोएडा में सरेआम महिला पत्रकार से छेड़छाड़ के मामले में अखिलेश यादव के पोस्ट से हरकत में आई नोएडा पुलिस ने 24 घंटे के अन्दर ही दोनो आरोपियों को गिरफ्तार लिया है। नोएडा पुलिस ने बताया 25 वर्षीय अश्वत निवासी और 27 वर्षीय विपिन मुजफ्फरनगर के रहने वाले है, इन दोनों ने महिला मीडिया कर्मी से छेड़छाड़ की थी. एडिशनल डीसीपी मनीष कुमार मिश्र ने बताया कि इंटरनेट मीडिया के माध्यम से महिला मीडिया कर्मी पर कमेंट करने की सूचना प्राप्त हुई थी। तत्काल पीड़िता से संपर्क कर थाना सेक्टर-20 पर मुकदमा दर्ज किया गया था। घटना के अनावरण के लिए तीन टीमों का गठन किया गया। घटनास्थल के आस-पास के सीसीटीवी फुटेज को खंगाला गया। आरोपियों को चिन्हित कर 24 घंटे में गिरफ्तार किया गया।  आरोपी के खिलाफ सुसंगत धाराओं में केस दर्ज कर लिया गया है।

भयमुक्त स्वतंत्र वातावरण नहीं बन पा रही सरकार
दरअसल, सपा प्रमुखु अखिलेश यादव ने नोएडा के सेक्टर 18 डीएलएफ मॉल के पास बुधवार को देर रात महिला मीडियाकर्मी के साथ छेड़छाड़ की घटना को लेकर योगी सरकार पर हमला बोला उन्होंने कहा कि  महिला, स्त्री या बहन, बेटी, बहू चाहे जो कह लें, इन सबमें एक बात समान है कि बड़े-बड़े दावों के बीच भी इनके लिए भयमुक्त स्वतंत्र वातावरण नहीं बन पा रहा है। सवाल सिर्फ़ ये नहीं है कि इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है, सवाल ये भी है कि ये कब और कैसे मुमकिन होगा।

महिला के प्रति व्यक्तिगत सोच लोगों को दलने होगे फिर बदलाव आएगा
उन्होंने कहा कि अक्सर ज़िम्मेदारी तय करने की बात लोगों को बीती घटना तक ही सीमित कर देती है। जिसमें घटना की बात तो होती है पर उसकी मूल वजहों पर बात नहीं होती। इसीलिए बात समस्या में उलझकर रह जाती है, सार्थक समाधान की बात नहीं कर पाती है। इसी वजह से समय की माँग ये है कि प्रश्न में वर्तमान की चिंता के साथ-साथ सच्चे समाधान की बात आज से ही शुरू होनी चाहिए। इसके लिए व्यक्तिगत सोच से शुरुआत करनी पड़ेगी, जो परिवार, समाज और फिर देश के स्तर पर बदलाव लाएगी।

नारी की गरिमा को ठेस पहुंचाने के पीछे नकारात्मक सोच होती है
नारी की गरिमा को किसी भी प्रकार जो ठेस पहुँचती है फिर वह चाहे मानसिक हो या शारीरिक; उसके पीछे सदैव कोई नकारात्मक सोच होती है। जो कभी किसी को कमतर मानने की सोच हो सकती है या हीन भावना से देखने की। इसीलिए सुधार के लिए एक बड़ी मानसिक क्रांति की ज़रूरत है। जिसकी शुरुआत शिक्षा ही से करनी पड़ेगी, जो लड़के-लड़की के भेद को मिटाए, बराबरी का भाव लाए, इसके लिए चाहे नयी कहानियाँ या नयी कविता, नये सबक या नये पाठ लिखने पड़ें। ये बीज-प्रयास करने ही पड़ेंगे।

हर जगह नारी-सुरक्षा के लिए नयी चेतना जगानी होगी
उन्होंने कहा कि इसके लिए नारी पर एकतरफा पाबंदी की बात भी नारी-उत्पीड़न का ही एक और रूप है। शर्तों के नाम पर जीवन की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती है। शिक्षण संस्थानों से लेकर खुले व कार्य स्थलों तक, हर जगह नारी-सुरक्षा के लिए नयी चेतना जगानी होगी, सार्थक व्यवस्थाएँ करनी होंगी। सरकारों को इसके लिए आगे आना होगा। हर तरफ़ सुरक्षा व्यवस्था को चौकन्ना करना होगा। यदि संकीर्ण राजनीति का हस्तक्षेप न हो और ऐसी घटनाओं का राजनीतिकरण करके सियासी रोटी न सेंकी जाए तो आधी समस्या ख़ुद-ब-ख़ुद सुलझ जाएगी क्योंकि तब कोई गुनाहगार ये नहीं सोचेगा कि वो कुछ गलत करने के बाद सत्ता का संरक्षण पाकर बच पाएगा।

महिला-अपराधों के मामलों में नारी को सिर्फ़ नारी मानकर देखना होगा
अखिलेश ने कहा कि नारी-अपराध के मुजरिम को जब ये पता होगा कि उसको गले में हार डालकर बचाने वाला कोई नहीं है और उसे सख़्त सज़ा मिलेगी तो अपराधियों का मनोबल चूर-चूर हो जाएगा। नारी-अपराध की घटनाओं पर विचारधारा के नाम पर दूर से मुँह मोड़कर, अंधे बने रहना और ऐसे कुकृत्यों पर सुविधाजनक चुप्पी साध लेना अब और नहीं चलने वाला। महिला-अपराधों के मामलों में नारी को सिर्फ़ नारी मानकर देखना होगा। पीड़िता की पारिवारिक, सामाजिक, वैचारिक, आर्थिक, सामुदायिक पृष्ठभूमि देखकर जो लोग अपनी प्रतिक्रिया दें, उन्हें पक्षपाती मानना चाहिए। ऐसे में वो भी कहीं-न-कहीं उस अपराध के आंशिक हिस्सेदार बन जाते हैं क्योंकि इससे ये साबित होता है कि उनकी संवेदना नारी की गरिमा, स्वतंत्रता, सुरक्षा, संरक्षा जैसी मूल भावनाओं से नहीं जुड़ी है बल्कि वो अपने पक्ष तक सीमित है। ऐसे लोग नारी के विरुद्ध हो रहे अपराधों में सीधे नहीं मगर मानसिक हिंसा के गुनाहगार ज़रूर होते हैं।

न्याय में देरी ताकतवर गुनहगारों को और भी ताकत देती है
नारी की स्वतंत्रता और सुरक्षा के हनन के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को सबसे अधिक तीव्रता से कार्य करने की माँग अब आवश्यकता नहीं, अपरिहार्यता बन गयी है। न्याय में देरी ताक़तवर गुनाहगारों को और भी ताक़त देती है। सबूत से लेकर गवाह तक बदलने के मौके देती है। साथ ही तरह-तरह के दबावों को जन्म देती है। न्यायालय की देखरेख में पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा के लिए नये सुरक्षा-प्रबंध करने होंगे, तभी सही मायनों में नारी अपनी सामर्थ्य दिखा पाएगी… परिवार, समाज और देश-दुनिया के विकास में अपनी भूमिका निभा पाएगी… सच्चा स्वतंत्रता दिवस मना पाएगी।

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