Meerut: रावण की ससुराल में एक ऐसा भी गांव जहां नहीं मनाया जाता दशहरा, होता है गम का माहौल...जानिए वजह

Edited By Mamta Yadav,Updated: 05 Oct, 2022 04:59 PM

there is a village in ravana s in laws house where dussehra is not celebrated

पूरे देश में जहां विजयादशमी के पावन त्यौहार की धूम मची हुई है और हर व्यक्ति इस पावन त्यौहार को मनाने में लगा हुआ है। इस पावन त्यौहार के मौके पर लंकापति रावण का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है तो वहीं रावण की...

मेरठ: पूरे देश में जहां विजयादशमी के पावन त्यौहार की धूम मची हुई है और हर व्यक्ति इस पावन त्यौहार को मनाने में लगा हुआ है। इस पावन त्यौहार के मौके पर लंकापति रावण का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है तो वहीं रावण की ससुराल कहे जाने वाले मेरठ में एक जगह ऐसी भी है जहां दशहरे के पावन त्यौहार को मनाया नहीं जाता है जिसके पीछे की वजह जंगे आजादी से जुड़ी हुई है। दशहरा ना मनाए जाने की वजह अंग्रेजो के द्वारा यहां के क्रांतिकारियों को फांसी देने की है। उन क्रांतिकारियों को जिनको दशहरा के पावन त्यौहार के मौके पर फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था।
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दरअसल, मेरठ के परतापुर क्षेत्र के गगोल गांव में बीते 100 सालों से दशहरे के पावन त्यौहार को मनाया नहीं जाता है जिसके पीछे की वजह है अंग्रेजी शासकों के द्वारा दशहरे के पावन त्यौहार पर यहां के क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर लटकाना है। स्थानीय लोगों ने बताया कि कई 100 साल पहले जब भारत पर अंग्रेजों का राज हुआ करता था तो दशहरे के पावन दिन यहां के रहने वाले 10 क्रांतिकारी लोगों को अंग्रेजो के द्वारा गांव के बाहर स्थित एक पीपल के पेड़ से फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था जिससे उनकी मौत हो गई थी और तभी से पूरे गांव ने दशहरा ना मनाने का प्रण लिया जो कि बादस्तूर आज तक कायम है। 
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स्थानीय लोगों का कहना है कि दशहरे के दिन गांव में कोई हर्षोल्लास का कार्यक्रम नहीं होता ना ही रामलीला का मंचन गांव में किया जाता है। स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि दशहरे के पावन दिन पर जहां गम का माहौल होता है और हर कोई अपने क्रांतिकारी पूर्वज की मौत का शोक मनाता है। हालांकि इन लोगों का कहना है कि गांव के रहने वाले जिन लोगों के घर दशहरे के दिन औलाद पैदा होती हैं तो उनकी आन टूट जाती है और वो भी मरे दिल के साथ दशहरे को मनाते हैं लेकिन कोई खुशी का इजहार नहीं किया जाता क्योंकि दशहरे का ही वो दिन था जब इनके पूर्वजों को अंग्रेजी शासकों ने फांसी के फंदे पर लटका दिया था।
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ज़ाहिर तौर पर कहा जाए तो क्रांति का ये जज़्बा क्रांतिधारा मेरठ पर देखने को मिल रहा है जहां त्योहारों के मौके पर भी खुशियां न मनाते हुए अपने पूर्वज क्रांतिकारियों की शहादत को याद करते हुए अपना त्योहारों को भी कुर्बान कर दिया जाता है।

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