BJP से हाथ मिलाकर RLD ने अपने गढ़ में की वापसी, भगवा को हुआ भारी नुकसान... क्या बदले समीकरणों को भांप गए थे जयंत?

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 05 Jun, 2024 02:26 PM

rld returned to its stronghold by joining hands with bjp bjp suffered loss

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं। भगवा खेमे को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। सात केंद्रीय ...

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं। भगवा खेमे को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। सात केंद्रीय मंत्रियों की अपनी सीटों पर करारी हार हुई है। तो वहीं कई दिग्गज अपनी साथ तक नहीं बचा पाए हैं और तो और यहां भाजपा को राष्ट्रीय लोकदल का साथ भी रास नहीं आया। हालांकि रालोद को जरूर संजीवनी मिल गई। वह अपने हिस्से की बिजनौर और बागपत सीटें जीतने में कामयाब रही। रालोद ने जो दो सीटें जीतीं उसमें एक पहले से भाजपा के पास थी। 

रालोद को लाभ, भाजपा को भारी नुकसान 
भाजपा से हाथ मिलाकर रालोद तो फायदे में रही, लेकिन भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। भाजपा से दोस्ती कर रालोद को तीन लाभ हुए। एक चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिला, प्रदेश मंत्रिमंडल में स्थान मिला और तीसरा, अपने हिस्से की दोनों लोकसभा सीटें जीत लीं। मोदी के नाम पर भाजपा का तो वोट रालोद को पड़ा, लेकिन रालोद का वोट बैंक बंट गया। जैसा मुजफ्फरनगर में हुआ।

मुजफ्फरनगर सीट भी मांग रही थी रालोद, लेकिन...
भाजपा का प्रमुख दारोमदार मुजफ्फरनगर की सीट पर था। रालोद यह सीट मांग रही थी। लेकिन भाजपा तैयार नहीं थी। भाजपा के संजीव बालियान चुनाव हार गए। संजीव बालियान ने पिछली बार चौधरी अजित सिंह को जितने मतों से हराया था, उतने ही अंतरों से उनको सपा प्रत्याशी हरेंद्र सिंह मलिक से हार मिली। भाजपा को भरोसा था, कि इस प्रमुख जाट पट्टी में रालोद मुखिया जयंत चौधरी का लाभ मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

बागपत सीट पर बदले समीकरणों को भांप गए थे जयंत
रालोद और बागपत एक-दूसरे के पर्याय हैं। बागपत सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के परिवार का दबदबा रहा है। उनके पुत्र अजित सिंह यहां से सात बार सांसद चुने गए। 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में रालोद ने अपना यह गढ़ गंवा दिया। पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर डा. सत्यपाल सिंह ने पहले अजित सिंह और फिर उनके पुत्र जयन्त चौधरी को हार का मुंह दिखाया। जयन्त चौधरी बागपत सीट पर बदले समीकरणों को भांप गए थे। इसी कारण उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाया और इस बार अपना गढ़ वापस लेने में सफल हुए।

1998 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर 1977 से 2014 तक लगातार इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके पुत्र पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह जीतते रहे। चौधरी चरण सिंह इस सीट से 1977, 1980 और 1984 में जीते। इसके बाद उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह 1989 में यहां से पहली बार सांसद बने। इसके बाद उन्होंने 1991, 1996, 1999, 2004 और 2009 में विजय हासिल की।

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