Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 07 Jun, 2024 12:04 PM
उत्तर प्रदेश में ही भाजपा की उम्मीदों को करारा झटका लगा है। 2024 के आम चुनाव में न केवल बीजेपी की सीटें घट गईं, बल्कि वोट शेयर भी कम हो गया। भाजपा का सारा रणनीतिक कौशल यूपी में फेल साबित हुआ। ...
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में ही भाजपा की उम्मीदों को करारा झटका लगा है। 2024 के आम चुनाव में न केवल बीजेपी की सीटें घट गईं, बल्कि वोट शेयर भी कम हो गया। भाजपा का सारा रणनीतिक कौशल यूपी में फेल साबित हुआ। यूपी में भाजपा की लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद इसकी समीक्षा और कार्रवाई तेज हो गई है। सूत्रों के मुताबिक, इसी कड़ी में सामने आया है कि करीब 36 ऐसे सांसद थे, जिनकी खराब परफारमेंस रिपोर्ट लोकसभा चुनाव के टिकट बंटवारे के पहले भेजी गई थी, लेकिन इन्हें फिर से टिकट देना भारी पड़ गया। अब यूपी में भाजपा के हारे हुए सांसदों की खराब परफॉर्मेंस पर रिपोर्ट फिर तैयार हो रही है.
यूपी में चुनावी रण में उतरे पीएम मोदी की कैबिनेट के 11 मंत्रियों में 7 केंद्रीय मंत्री हार चुके हैं। 4 मंत्री ही जीत दर्ज कर पाए हैं, जिसमें मिर्जापुर सीट से केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और महराजगंज से केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी शामिल हैं। बीजेपी के सात केंद्रीय मंत्री और 19 मौजूदा सांसद चुनाव हार गए। केंद्र सरकार में सबसे ज्यादा मंत्री यूपी से ही बनाए गए थे। इनमें स्मृति इरानी, महेंद्र नाथ पांडेय, साध्वी निरंजन ज्योति, अजय मिश्र टेनी, कौशल किशोर, भानु प्रताप वर्मा और संजीव बालियान चुनाव हार गए।
जिन सांसदों के खिलाफ माहौल होने के आधार पर संगठन की ओर से टिकट बदलने की रिपोर्ट हाईकमान को भेजी गई थी, उनमें अधिकांश सांसदों के बारे में यही कहा जाता रहा है कि चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक यह जनता के बीच से गायब रहे। क्षेत्र से इनका जुड़ाव नहीं रहा। अपने पूरे कार्यकाल में जनता के बीच काम न करके ऐसे तमाम सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भरोसे बैठे रहे। इसी कारण तमाम सांसदों को जनता ने नकार दिया है।
पश्चिम से लेकर पूरब तक करीब 40 मौजूदा सांसदों के खिलाफ माहौल खराब होने की बात कही जा रही थी। पार्टी की जिला इकाई से लेकर क्षेत्रीय और प्रदेश स्तर से भी ऐसे सांसदों के बारे में रिपोर्ट दिल्ली भेजी गई थी, इसके बावजूद उनमें से अधिकांश को दोबारा टिकट दिया गया। आंतरिक रिपोर्ट में 'फेल' घोषित ऐसे सांसदों के खिलाफ बने माहौल को भांपते हुए खूब कोशिश भी की। संबंधित सीटों के जातीय समीकरणों को देखते हुए उसी जाति के कई मंत्रियों के साथ प्रदेश संगठन के पदाधिकारियों को भी उन सीटों पर उतारा गया। इसके बावजूद जनता में पनपी नाराजगी कम नहीं हुई।
सूत्रों के मुताबिक सांसदों की लोकप्रियता और जीतने की संभावना को आधार बनाकर पार्टी की ओर से कराए गए सर्वे में भी तीन दर्जन से अधिक सांसदों के चुनाव न जीतने की रिपोर्ट शीर्ष नेतृत्व को मिली थी। इनमें कई केंद्रीय मंत्री भी शामिल थे। लेकिन इसकी अनदेखी करके उन्हें दोबारा टिकट दे दिया गया। यूपी में भाजपा की बिगड़ी चाल के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार पार्टी के ही बड़े नेताओं का अति आत्मविश्वास है, जिस तरह से स्थानीय और पार्टी के काडर कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए टिकट का बंटवारा किया गया उससे भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ।