राममंदिर आंदोलन के चेहरेः कुछ को मिली प्रसिद्धि तो कुछ को गुमनामी

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 05 Aug, 2020 10:54 AM

faces of ram temple movement some got fame and some got oblivion

अयोध्या का राममंदिर जिसके निर्माण का सपना सोते-जागते हर देशवासी देखता था। इस 500 वर्ष के सपने का सच होना लगभग नामुमकिन सा था। मगर ये सच हुआ कुछ ने अपनी जान गवांईं तो कुछ ने अपनी जिंदगी ही रामलला को

अयोध्याः अयोध्या का राममंदिर जिसके निर्माण का सपना सोते-जागते हर देशवासी देखता था। इस 500 वर्ष के सपने का सच होना लगभग नामुमकिन सा था। मगर ये सच हुआ कुछ ने अपनी जान गवांईं तो कुछ ने अपनी जिंदगी ही रामलला को सौंप दी। आज उनके बहुमूल्य योगदान की वजह से 5 अगस्त का दिन ऐतिहासिक होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निर्धारित मुहूर्त में भूमि पूजन के साथ मंदिर निर्माण की आधारशिला का भी पूजन करेंगे। इस आंदोलन के पीछे कई लोगों का बड़ा योगदान है। कुछ चेहरों को प्रसिद्धि तो कुछ गुमनामी में रह रहे हैं। आइए जानते हैं उन सख्शियतों को जिनके बिना राममंदिर निर्माण का स्वप्न अधूरा था।

महंत दिग्विजय नाथः मूर्ति को रखा विवादित परिसर में
गोरखपुर में गोरक्ष मंदिर के मुख्य पुजारी महंत दिग्विजय नाथ ने सभी संतों और साधकों को एक मंच पर लाया और आंदोलन का खाका तैयार किया। उन्होंने साल 1949 में मूर्ति को विवादित परिसर में रखने के बाद मंदिर आंदोलन का नेतृत्व किया। 1969 में उनके निधन के बाद, उनके उत्तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जिन्होंने मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई है।

महंत रघुबर दासः फैजाबाद कोर्ट में डाली याचिका
महंत रघुबर दास ने
बाबरी मस्जिद के पास राम मंदिर बनाने की अनुमति के लिए फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर की थी। वह मंदिर आंदोलन के आरंभकर्ताओं में से एक थे। बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्होंने गुमनाम रहना ही पसंद किया।

गोपाल सिंह विशारदः हिन्दुओं को रामजन्मभूमि तक बेरोक-टोक जाने की मांगी अनुमति
राम मंदिर निर्माण के प्रमुख योद्धाओं में एक नाम है गोपाल सिंह विशारद का, जिन्होंने 1950 में स्वतंत्र भारत में मंदिर विवाद को लेकर पहला मामला दायर किया था। वह हिन्दू महासभा के जिला प्रमुख थे। जब वह 1950 में भगवान राम का दर्शन करे जा रहे थे तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया, इसके बाद उन्होंने एक याचिका दायर की और हिन्दुओं को रामजन्मभूमि तक बेरोक-टोक जाने की अनुमति मांगी।

के.के. नायरः गुमनाम यौद्धा
23 दिसंबर, 1949 की रात को राम लला की मूर्ति विवादित परिसर में रखी गई थी। के.के. नायर उस वक्त फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उस वक्त के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने विवादित स्थल से रामलला के मूर्ति को हटाने का आदेश दिया था, मगर नायर ने ऐसा करने से मना कर दिया। नायर ने अपने राजनीतिक आकाओं से कहा था कि मूर्ति हटाने से पहले उन्हें हटाना होगा। के.के. नायर भी गुमनाम हैं।

सुरेश बघेलः बाबरी मस्जिद को गिराने का किया पहला प्रयास
सुरेश बघेल जिनके मंदिर में योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता, क्योंकि मस्जिद ढाहने वालों में इनका नाम प्रमुख है। मथुरा के वृंदावन के निवासी 'कार सेवक' सुरेश बघेल ने बाबरी मस्जिद को गिराने का पहला प्रयास किया और पुलिस कार्रवाई का सामना किया। फिलहाल, वह एक प्राइवेट कंपनी में 6 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी करते हैं। गुमनामी के साए में वह भी जी रहे हैं।

अशोक सिंघलः 'एक धक्का दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो'
1990 के दशक में जब मंदिर आंदोलन को गति मिली तब बाबरी मस्जिद के विध्वंस के की वजह से विश्व हिन्दू परिषद यानी विहिप नेता अशोक सिंघल हिंदुत्व के प्रमुख वास्तुकार बन गए।  उनके नारे 'एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो' ने एक उन्माद पैदा किया और हिंदुओं को पहले की तरह लामबंद कर दिया। 2015 में सिंघल का निधन हो गया।

प्रवीण तोगड़ियाः प्रमुख यौद्धाओं में से एक
परवीन तोगड़िया को मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका के लिए भी जाना जाता था। हालांकि, अशोक सिंघल के निधन के बाद उन्होंने अपना दबदबा खो दिया।

लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशीः रामजन्मभूमि का वास्तुकार
लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के कारण राम जन्मभूमि आंदोलन का वास्तुकार माना जाता है। राम मंदिर के पक्ष में आडवाणी के रथयात्रा को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सबसे अहम कड़ी के रूप में देखा जाता है। भाजपा के शीर्ष नेताओं, आडवाणी मुरली मनोहर जोशी ने भी मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे उनकी पार्टी को बड़ा राजनीतिक लाभ मिला। एक तरह से देखा जाए तो भारत की राजनीति में भाजपा का उदय, सीधे मंदिर आंदोलन और इन दोनों नेताओं द्वारा हुआ।

विनय कटियारः फायरब्रांड हिंदू नेता ने आंदोलन को दी धार
विनय कटियार न सिर्फ बजरंग दल के संस्थापक हैं, बल्कि एक फायरब्रांड हिंदू नेता भी हैं, जिन्होंने मंदिर आंदोलन को एक धार दी। कटियार अयोध्या से तीन बार के सांसद बने, मगर बाद में राजनीतिक गुमनामी में चले गए।

कल्याण सिंहः आंदोलन के महत्वपूर्ण सख्श
राम मंदिर निर्माण आंदोलन में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह एक अन्य महत्वपूर्ण शख्स हैं। जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया था, तब वह यूपी के मुख्यमंत्री थे और उसी दिन उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। कल्याण सिंह को अदालत की अवमानना के लिए दोषी ठहराया गया था।

उमा भारती और साध्वी ऋतंभराः महिला ब्रिगेड का किया नेतृत्व
भाजपा नेत्री उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा ने मंदिर आंदोलन में महिला ब्रिगेड का नेतृत्व किया है। दोनों अपने उग्र भाषणों के लिए जानी जाती हैं। कहा तो यह भी जाता है कि साध्वी ऋतंभरा के उग्र भाषणों के कैसेट बाजार में प्रीमियम पर बेचे गए। उमा भारत और साध्वी ऋतंभरा दोनों आज भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल होंगी।



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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