Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 23 May, 2024 11:41 AM
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बांदा के CJM भगवान दास गुप्ता के आचरण पर तल्ख टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि जज ने निजी हित के ...
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बांदा के CJM भगवान दास गुप्ता के आचरण पर तल्ख टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि जज ने निजी हित के लिए पद का गलत इस्तेमाल किया। बिल भेजने पर बिजली विभाग के अफसरों पर फर्जी केस कराया, इसलिए वह जज बने रहने लायक नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि वह बकाया बिजली बिल भुगतान की कानूनी लड़ाई हारने के बाद अधिकारियों को सबक सिखाने के लिए एफआईआर दर्ज कराई। कोतवाली, बांदा के पुलिस अधिकारी ने सीजेएम की कलई खोल कर रख दी। एसआईटी जांच में आरोपों को अपराध नहीं माना गया तो हाईकोर्ट ने बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी और कहा कि सीजेएम जज बने रहने लायक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि एक जज का व्यवहार, आचरण, धैर्यशीलता व स्वभाव संवैधानिक हैसियत के अनुसार होना चाहिए। खंडपीठ ने पूर्व चीफ जस्टिस आरसी लहोटी की किताब का उल्लेख करते हुए कहा कि जज जो सुनते हैं, देख नहीं सकते और जो देखते हैं, उसे सुन नहीं सकते। जज की अपनी गाइडलाइंस है। चर्चिल का उल्लेख करते हुए कहा कि जजों में दुख सहन करने की आदत होनी चाहिए और हमेशा सतर्क रहना चाहिए। उनका व्यक्तित्व उनके फैसलों से दिखाई पड़ना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
मुकदमे के तथ्यों के अनुसार बांदा के सीजेएम ने लखनऊ के अलीगंज में मकान खरीदा। इस पर लाखों रुपये बिजली बिल बकाया था। विभाग ने वसूली नोटिस दी तो मकान बेचने वाले सहित बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ अदालत में कंप्लेंट केस दाखिल किया। अपर सिविल जज लखनऊ ने समन जारी किया। बाद में बिजली विभाग के अधिकारियों का समन वापस ले लिया गया। यह कानूनी लड़ाई सीजेएम हाई कोर्ट तक हारते गए तो बांदा कोतवाली में अधिकारियों के खिलाफ इंस्पेक्टर दान बहादुर को धमका कर प्राथमिकी दर्ज करा दी। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। खंडपीठ ने कहा कि जज ने व्यक्तिगत हित के लिए पद का दुरुपयोग किया। साथ ही इस पर भी आश्चर्य प्रकट किया कि 14 वर्ष में मजिस्ट्रेट ने केवल पांच हजार रुपये ही बिजली बिल जमा किया है। पूछने पर कहा कि सोलर पावर इस्तेमाल कर रहे हैं। बिजली विभाग के अधिकारियों पर घूस मांगने का भी आरोप लगाया। उन्होंने बकाया 2,19,063 रुपये बिजली बकाये का भुगतान नहीं किया। कोर्ट ने एसआइटी जांच कराई तो एफआइआर के अनुरूप कोई अपराध नहीं मिला। खंडपीठ ने कहा कि याचियों के खिलाफ कोई केस नहीं बनता।