Edited By Anil Kapoor,Updated: 19 Dec, 2025 09:18 AM

UP Desk: देश में पिछले कुछ वर्षों से खनन के जरिए पहाड़ों को काटने का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले ने पर्यावरण से जुड़े बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने खनन से जुड़ा एक अहम फैसला...
UP Desk: देश में पिछले कुछ वर्षों से खनन के जरिए पहाड़ों को काटने का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले ने पर्यावरण से जुड़े बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने खनन से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया, जिसके तहत 100 मीटर तक ऊंचाई वाले पहाड़ों पर खनन की अनुमति दी गई है। यह फैसला खासतौर पर राजस्थान और अरावली पर्वतमाला के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह फैसला पूरी तरह लागू हुआ, तो राजस्थान में रेगिस्तान का क्षेत्र बढ़ सकता है।
अरावली पर्वतमाला पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
अरावली पर्वतमाला को राजस्थान की लाइफ लाइन कहा जाता है, लेकिन अब यह लाइफ लाइन खतरे में नजर आ रही है। पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अरावली पर्वत का क्षेत्र तेजी से सिकुड़ रहा है। कोर्ट के अनुसार, अरावली का लगभग 90% हिस्सा अब 100 मीटर से कम ऊंचाई का रह गया है, 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले क्षेत्र को अब पर्वत नहीं, सिर्फ भूभाग माना जाएगा, इसका सीधा मतलब यह है कि इन इलाकों में खनन के रास्ते खुल सकते हैं।

क्या राजस्थान में बढ़ेगा रेगिस्तान?
पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया कि अरावली पर्वतमाला अब पहले जैसी ऊंची नहीं रही। अरावली मरुस्थल के विस्तार को रोकने में प्राकृतिक दीवार का काम करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अरावली में खनन बढ़ा, तो: मरुस्थल का विस्तार तेजी से होगा, मानसून की हवाएं कमजोर पड़ेंगी, प्रदेश में बारिश कम होगी। अरावली की ऊंचाई घटने से मानसून सिस्टम भी प्रभावित हो रहा है, जिससे राजस्थान के मौसम में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।

राजस्थान की पहचान है अरावली पर्वतमाला
अरावली पर्वतमाला को दुनिया की सबसे पुरानी वलित पर्वतमालाओं में से एक माना जाता है।
अरावली की कुल लंबाई: 692 किलोमीटर
राजस्थान में हिस्सा: करीब 550 किलोमीटर
सबसे ऊंची चोटी: गुरु शिखर (माउंट आबू) – ऊंचाई 1727 मीटर
अरावली तीन राज्यों—दिल्ली, राजस्थान और गुजरात—से होकर गुजरती है। राजस्थान की अधिकांश नदियों का उद्गम भी अरावली पर्वतमाला से ही होता है, इसलिए इसे प्रदेश की लाइफ लाइन कहा जाता है।

अरावली कमजोर होने से क्या होंगे नुकसान
अगर अरावली पर्वतमाला का क्षरण इसी तरह जारी रहा, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं:
राजस्थान में मरुस्थल का तेजी से विस्तार
गर्म हवाओं का असर और बढ़ेगा
बंगाल की खाड़ी से आने वाला मानसून कमजोर पड़ेगा
भूकंप के झटकों का असर बढ़ सकता है
अरावली से निकलने वाली नदियां सूख सकती हैं
खेती और फसलों पर बुरा असर पड़ेगा
प्रदेश की जलवायु और भौगोलिक संतुलन बिगड़ जाएगा

बारिश का सिस्टम हो रहा है प्रभावित
पर्यावरण विशेषज्ञ और राजस्थान विश्वविद्यालय की भूगोल विभाग की वरिष्ठ प्रोफेसर के अनुसार, अरावली की ऊंचाई कम होने से राजस्थान का वर्षा तंत्र बिगड़ रहा है। पहले मानसून की हवाएं अरावली से टकराकर पूर्वी राजस्थान में बारिश करती थीं, लेकिन अब अरावली कमजोर होने के कारण हवाएं पश्चिमी राजस्थान की ओर निकल जा रही हैं। इससे पूरे प्रदेश का वर्षा संतुलन गड़बड़ा रहा है, जो बेहद चिंताजनक स्थिति है।

कैसे शुरू हुआ अरावली का क्षरण
अरावली पर्वतमाला के क्षरण की शुरुआत 1990 के दशक में हुई। इसके मुख्य कारण बताए जा रहे हैं:
तेजी से शहरीकरण
दिल्ली और राजस्थान में बड़े निर्माण कार्य
पत्थर और खनिजों के लिए अंधाधुंध खनन
पेड़ों की कटाई
स्थिति बिगड़ने पर 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली में अवैध खनन पर रोक लगाई थी, लेकिन अब नए फैसले के बाद एक बार फिर पर्यावरण को लेकर चिंता बढ़ गई है।