वनाग्नि मामले में HC का निर्देश- NGT की गाइडलाइन का करें पालन और रिक्त पदों को भरें

Edited By Nitika,Updated: 08 Apr, 2021 05:16 PM

follow the guidelines of ngt and fill the vacant posts

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में बढ़ रही वनाग्नि की घटनाओं को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए बुधवार को राज्य सरकार को निर्देश दिए कि 6 माह के अंदर वन विभाग में रिक्त पड़े सभी पदों को भरे और इतनी ही इसी अवधि में राष्ट्रीय हरित...

 

नैनीतालः उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में बढ़ रही वनाग्नि की घटनाओं को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए बुधवार को राज्य सरकार को निर्देश दिए कि 6 माह के अंदर वन विभाग में रिक्त पड़े सभी पदों को भरे और इतनी ही इसी अवधि में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) की ओर से जारी गाइडलाइन का अनुपालन करना सुनिश्चित करें।

मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान तथा न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में इस मामले में सुनवाई हुई। प्रदेश के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) राजीव भर्तृहरि अदालत में बर्चुअल रूप से पेश हुए। सुनवाई के दौरान स्पष्ट नजर आया कि सरकार के पास वनों को आग से बचाने के लिए कोई ठोस कार्य योजना तथा इच्छाशक्ति मौजूद नहीें है। भर्तृहरि ने अदालत को बताया कि वन विभाग के पास धरातल पर काम करने वाले कर्मचारियों की भारी कमी है। 65 प्रतिशत फारेस्ट गार्ड तथा 82 प्रतिशत सहायक वन संरक्षकों की कमी है। इसी प्रकार रेजर के 308 पदों के सापेक्ष 237 ही काम कर रहे हैं।

अदालत के समक्ष यह तथ्य भी सामने आया कि विभाग के पास आग की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए परंपरागत तरीकों के अलावा और कोई कारगर योजना मौजूद नहीं है। वन विभाग पूरे फायर सीजन में फायर मीटर, काउंटर फायर तथा फायर लाइन के माध्यम से वनों को आग से बचाने का काम करती है। मुश्किल समय में राज्य आपदा प्रबंधन बल (एसडीआरएफ) हालातों से निपटता है। यही नहीं वन विभाग के पास कारगर उपकरणों की भी भारी कमी है। अदालत ने सुनवाई के दौरान पूरे मामले में बेहद गंभीरता रूख अख्तियार किया और कहा कि वनाग्नि से वन, पर्यावरण और वन्य जीवों के साथ ही आम लोगों की जीवन पर विपरीत असर पड़ रहा है। अदालत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि वनों को बचाना प्रदेश की प्राथमिकताओं में नहीं है।

अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली की ओर से अदालत को बताया गया कि एनजीटी की ओर से 2017 में वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए 12 बिन्दुओं की एक गाइडलाइन जारी की गयी थी लेकिन सरकार की ओर से इसका अनुपालन आज तक नहीं किया गया है। इसके साथ ही अधिवक्ता अखिल साह की ओर से बताया गया कि कृत्रिम वर्षा प्रणाली को अपनाकर भी वनाग्नि की घटनाओं को रोका जा सकता है और इस प्रक्रिया पर अधिक खर्चा भी नहीं आता है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु तथा आंध्रपदेश जैसे राज्य इस प्रणाली को अपना रहे हैं। हालांकि अदालत ने पहाड़ी राज्य होने के नाते इस प्रणाली के औचित्य पर सवाल भी उठाए। अंत में अदालत ने सरकार को निर्देश दिए कि सरकार एनजीटी की गाइडलाइन का 6 माह के अंदर पालन करे और रिक्त पड़े पदों को भरने के लिए 6 माह के अंदर प्रक्रिया शुरू करे। अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वन विभाग व आपदा प्रबंधन को पर्याप्त धन व उपकरण मुहैया करवाए ताकि ऐसे मुश्किल समय में कारगर कद उठाये जा सके। अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि सरकार कृत्रिम वर्षा प्रणाली जैसे पहलू पर विचार करे कि क्या उत्तराखंड जैसे भौगोलिक क्षेत्र वाले राज्य में यह संभव है।

यही नहीं अदालत ने वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए 2 सप्ताह में वन विभाग से कारगर कदम उठाने को कहा है। बता दें कि राज्य में आग की बढ़ रही घटनाओं को देखते हुए उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली की पहल पर इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया और जनहित याचिका दायर कर ली।

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