जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता उपायों का प्रस्ताव रख प्रसन्नता महसूस कर रहा भारत: मोदी

Edited By Deepika Rajput,Updated: 09 Sep, 2019 12:39 PM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र के कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज यानी कॉप के 14वें अधिवेशन को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और भूमि क्षरण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए उपायों का...

ग्रेटर नोएडाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र के कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज यानी कॉप के 14वें अधिवेशन को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और भूमि क्षरण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए उपायों का प्रस्ताव रख कर प्रसन्नता महसूस कर रहा है।
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पीएम मोदी ने कहा कि 2015 और 2017 के बीच भारत में पेड़ और जंगल के दायरे में 8 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। ‘मैं यह घोषणा करता चाहता हूं कि भारत अब से लेकर 2030 तक अपनी बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने की महत्वाकांक्षा के तहत कुल रकबे को 2.1 करोड़ हेक्टेयर से बढ़ाकर 2.6 करोड़ हेक्टेयर करेगा।' उन्होंने कहा कि इसके अलावा वृक्षादित क्षेत्र बढ़ाकर 3 अरब टन कार्बन का अवशोषण किया जाएगा जिसका लक्ष्य पहले ढाई अरब टन रखा गया था। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर दुनिया भर के देशों से एक ही बार इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक को अलविदा कहने और ‘वैश्विक जल एजेंडा' तैयार करने का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि जमीन की अनुपजाऊ होने का एक और स्वरूप है जिस पर हम अभी ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं, लेकिन जिससे निपटना नामुमकिन हो सकता है। प्लास्टिक कूड़ा जमीन को बंजर बना देता है। इसलिए हमने एक ही बार इस्तेमाल हो सकने वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने का फैसला किया है। हम चाहते कि पूरी दुनिया इस तरह के प्लास्टिक को अलविदा कह दे। तभी हम अपेक्षित परिणाम हासिल कर सकेंगे। हम चाहे कितने ही फ्रेमवर्क बना लें, परिणाम जमीनी स्तर पर काम करने से ही हासिल हो सकेगा।
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भारत में भूमि को माता मानकर उसकी पूजा करने का? उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जलवायु और पर्यावरण का प्रभाव जैव-विविधता और जमीन पर सीधे-सीधे पड़ता है। दुनिया इस समय जलवायु परिवर्तन, जमीन के बंजर होने, वनस्पतियों और जीवों के लुप्त होने के नकारात्मक प्रभावों को झेल रही है। भारत भविष्य में दक्षिण-दक्षिण सहयोग बढ़ाने के लिए सहर्ष तैयार है। बंजर जमीन को पुन: उपजाऊ बनाना और जल संकट के समाधान एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए वह वैश्विक स्तर पर जल एजेंडा तैयार करने की अपील करते हैं।

बता दें कि कॉप-14 दो सिंतबर से शुरू हुआ था, जिसमें अभी तक दुनिया भर के वैज्ञानिक, विशेषज्ञ इन सभी मुद्दों पर अपने-अपने देश की चिंताएं, समस्याएं और उससे निपटने के लिए उपायों और अनुभव को साझा कर चुके हैं। 'कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज' हर बार अलग-अलग देशों में होता है, इस बार यह मेजबानी भारत को मिली है।

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