Edited By Anil Kapoor,Updated: 02 Feb, 2025 02:07 PM
Prayagraj Mahakumbh 2025: प्रयागराज का महाकुंभ मेला सनातन परंपरा के प्राचीनतम पर्वों में से एक है। इस मेले में सबसे अधिक आयु वाले बाबा शिवानंद भी पहुंचे हैं, जिनकी उम्र 129 वर्ष है। उनके दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुट रहे हैं। बाबा...
Prayagraj Mahakumbh 2025: प्रयागराज का महाकुंभ मेला सनातन परंपरा के प्राचीनतम पर्वों में से एक है। इस मेले में सबसे अधिक आयु वाले बाबा शिवानंद भी पहुंचे हैं, जिनकी उम्र 129 वर्ष है। उनके दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुट रहे हैं। बाबा शिवानंद को योग के क्षेत्र में राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया है। उनके आधार कार्ड में जन्मतिथि 8 अगस्त 1896 दर्ज है।
मिली जानकारी के मुताबिक, महाकुंभ 2025 में संगम की रेती पर बाबा शिवानंद का कैंप लगा हुआ है। वह 100 साल से भी अधिक उम्र के होने के बावजूद बिल्कुल स्वस्थ हैं और सभी से खुलकर बातचीत कर रहे हैं। बाबा हमेशा से ही लोगों को योग के प्रति प्रेरित करते आ रहे हैं। योग के प्रति उनके समर्पण और सेवा भाव की वजह से उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।
जानिए, शिवानंद बाबा की पूरी कहानी
बाबा शिवानंद का जन्म 8 अगस्त 1896 को बांग्लादेश के श्री हटा जिले के हरीगंज में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध ठाकुरवादी घराने के ब्राह्मण भिक्षुक गोस्वामी परिवार में जन्मे थे। उनके पिता का नाम श्रीनाथ गोस्वामी और माता का नाम भगवती देवी है। बचपन में ही बाबा के माता-पिता की आर्थिक समस्याओं के कारण बहुत संघर्ष करना पड़ा। उनके माता-पिता भिक्षा मांगकर गुज़ारा करते थे और कभी-कभी भूखे भी रह जाते थे।
बताया जाता है कि बाबा ने अपने जीवन के शुरुआती दौर में कई कठिनाइयों का सामना किया। उनके माता-पिता ने उन्हें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए नवदीप के एक वैष्णव संत को सौंप दिया। इस संत ने बाद में बाबा के गुरु का रूप ले लिया। बाबा की एक बहन भी थी, जिनका देहांत हो गया था।जब बाबा छोटे थे, तभी उनके माता-पिताओं का निधन हो गया। इसके बाद, उन्होंने अपने पितृ देव द्वारा पूजी जाने वाली नारायण शिला और अपनी माता द्वारा पूजा की जाने वाली शिवलिंग को अपने साथ लेकर अपने गुरु के आश्रम लौट आए। वहां गुरु के निधन के बाद, बाबा शिवानंद लोगों की सेवा करने लगे।
शिवानंद बाबा का दैनिक जीवन
बाबा शिवानंद सुबह 3 बजे उठते हैं और दिनभर जप, ध्यान, सेवा व अन्य धार्मिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। वे रात को 9 बजे विश्राम करते हैं। उनके आहार में मुख्य रूप से उबली सब्जियां और कुछ मिठाइयां शामिल होती हैं, जबकि बाबा तली हुई चीजें नहीं खाते। उनका प्रिय कार्य दीन-हीन और पीड़ितों की सहायता करना है। बाबा का मानना है कि प्राणियों की निस्वार्थ सेवा ही वास्तव में ईश्वर की सेवा है। महाकुंभ मेला और बाबा शिवानंद की यह कहानी न केवल श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन के संघर्ष और सेवा भाव की एक प्रेरणादायक कथा भी है।