Edited By Pooja Gill,Updated: 19 Mar, 2023 12:23 PM

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मथुरा (Mathura) स्थित बांके बिहारी मन्दिर (Banke Bihari Temple) में होली पर्व से चल रहे 125वें आनंद उत्सव (fun festival) से वृन्दावन (Vrindavan) में भक्ति रस की गंगा प्रवाहित हो रही है। इस उत्सव का आयोजन तिथि के...
मथुराः उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मथुरा (Mathura) स्थित बांके बिहारी मन्दिर (Banke Bihari Temple) में होली पर्व से चल रहे 125वें आनंद उत्सव (fun festival) से वृन्दावन (Vrindavan) में भक्ति रस की गंगा प्रवाहित हो रही है। इस उत्सव का आयोजन तिथि के अनुसार किया जाता है। इस बार 7 मार्च से प्रारंभ हुआ आनंद उत्सव 21 मार्च तक चलेगा। वैसे तो बांकेबिहारी मंदिर में हर दिन ठाकुर का कोई न कोई उत्सव चलता ही रहता है, लेकिन यह उत्सव अन्य उत्सवों से इस प्रकार भिन्न है कि इसकी शुरुआत ही भक्तों के कल्याण के लिए की गई थी।

आयोजकों का मानना है कि, भक्तों का जब कल्याण होगा तो वे आनन्द रस में डूब जाएंगे। प्रारंभ में यह आयोजन सामान्य सेवा पूजा तक ही सीमित था, लेकिन इसे नया कलेवर बांके बिहारी प्रबन्ध समिति के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. आनन्द किशोर गोस्वामी ने दिया था। उस समय मन्दिर को रोज नई नवेली दुल्हन की तरह सजाया जाता था तथा आशीर्वादस्वरूप भक्तों में मन्दिर के जगमोहन से फल, वस़़्त्र, मिठाई आदि लुटाए जाते थे। मन्दिर के सेवायत आचार्य ज्ञानेन्द्र गोस्वामी ने बताया कि, मन्दिर में बढती भीड़ को देखते हुए न केवल सजावट रोक दी गई है बल्कि भक्तों के दबने जैसी अप्रिय घटना को रेाकने के लिए फलों आदि के लुटाने की व्यवस्था भी अब बन्द कर दी गई है।
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उत्सव में देहरी पूजन और साधु सेवा सबसे अधिक महत्वपूर्ण
वैसे तो इस उत्सव की हर सेवा महत्वपूर्ण है किंतु देहरी पूजन और साधु सेवा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। देहरी पूजन द्वापर की उस परंपरा के अनुकूल किया जाता है जिसमें मां यशोदा ने कान्हा के देहरी पार करते समय उन्हें चोट लगने से बचाने के लिए इसे किया था। वर्तमान में देहरी पूजन मन्दिर के पट खुलने के पहले जगमोहन में लगभग दो घंटे तक वैदिक मंत्रों एवं भक्ति संगीत के मध्य किया जाता है। मशहूर भागवताचार्य मृदुलकृष्ण गोस्वामी द्वारा गाए जाने वाले ‘राधे राधे जपो चले आएंगे बिहारी', ‘बांकेबिहारी तेरी आरती गाऊं' जैसे गीत देहरी पूजन के अंग है। मंदिर के सेवायत गोस्वामी ने बताया कि लगभग एक मन पंचामृत, धोने के लिए दो दर्जन केन गुलाब जल , भारी मा़त्रा में गुलाब के फूल , 108 इत्र की शीशियां, मौसम की ठाकुर की पोशाक व सेज का सामान, मेवा, मिठाई आदि का प्रयोग किया जाता है। देहरी का पंचामृत अभिषेक करने के बाद उसे और जगमोहन को गुलाबजल से धोया जाता है।
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ठाकुर को नित्य अति आकर्षक बेशकीमती पोशाक कराई जाती धारण
इस उत्सव में ठाकुर को नित्य अति आकर्षक बेशकीमती पोशाक धारण कराई जाती है। इसमें जगमोहन को सुगंधित रखने के लिए देहरी, गर्भगृह के दरवाजों और कटघरे में उक्त सभी इत्र का लेपन किया जाता है ।झंडे के साथ मंदिर की प्रदक्षिणा और नाचने के साथ देहरी पूजन का समापन होता है। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने भी न केवल देहरी पूजन किया था बल्कि प्रदक्षिणा के बाद नृत्य भी किया था। उन्होंने बताया कि श्रृंगार के दर्शन खुलने के बाद राजभोग आरती तक भागवत भवन में यज्ञ एवं हवन चलता रहता है। उनका कहना था कि साधू सेवा में साधुओं को विशेष प्रकार का प्रसाद श्रद्धापूर्वक खिलाया जाता है। जो भक्त देहरी पूजन में शामिल नहीं हो पाते हैं वे राजभोग आरती के बाद गर्भगृह के पट बंद होने के बाद देहरी और गर्भगृह के दरवाजों पर बहुत अधिक इत्र का लेपन कर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। कुल मिलाकर आज के समय में परेशान मानव के मन को शांति दिलाने के लिए ठाकुर की आराधना के इस अनूठे उत्सव में मंदिर का वातावरण भक्ति रस से सराबोर हो जाता है।