Edited By Ajay kumar,Updated: 02 May, 2024 06:13 PM
इटावा संसदीय सीट पर इस बार लड़ाई काफी रोमांचक है। भाजपा जहां इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने को बेताब दिख रही है तो बसपा और सपा उसकी जीत को रोकने के लिए पूरा प्रयास कर रही हैं।
लखनऊः इटावा संसदीय सीट पर इस बार लड़ाई काफी रोमांचक है। भाजपा जहां इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने को बेताब दिख रही है तो बसपा और सपा उसकी जीत को रोकने के लिए पूरा प्रयास कर रही हैं। इस संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं। इनमें से तीन पर भाजपा और दो पर सपा का कब्जा है। इटावा,औरेया और सिकंदरा सीट पर भाजपा तो भरथना और दिबियापुर सीट पर सपा के विधायक हैं।
सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद बीजेपी ने जीती सीट
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इस सीट पर जीत के लिए रात दिन एक कर दिया है तो पांच मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहां जनसभा कर मतदाताओं को अपनी गारंटी के बारे में बताएंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां जनसभा कर चुके हैं। बसपा मुखिया मायावती की भी सभा होने की उम्मीद है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सांसद अशोक कुमार दोहरे का टिकट काट दिया था और डॉ. राम शंकर कठेरिया को मैदान में उतारा था। तब सपा से कमलेश कुमार मैदान में थे। कांग्रेस ने अशोक कुमार दोहरे को टिकट दिया। सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी भाजपा यह सीट जीतने में कामयाब हो गई थी। राम शंकर कठेरिया को 5,22,119 मत तो सपा के कमलेश कुमार को 4,57,682 वोट प्राप्त हुए थे। जबकि अशोक कुमार दोहरे को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था।
बसपा के संस्थापक कांशीराम बने सांसद
इस बार सपा ने जितेंद्र दोहरे तो बसपा ने पूर्व सांसद सारिका सिंह बघेल को मैदान में उतारा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ ही शिवपाल यादव भी इस सीट को जीतने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। रामशंकर कठेरिया को अपने काम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी पर भरोसा है। 1991 के चुनाव में बसपा के संस्थापक कांशीराम यहां से सांसद बने थे। 1998 में भाजपा को पहली बार इस सीट पर जीत मिली थी। तब सुखदा मिश्रा सांसद बनीं थीं। सपा ने 1999 और 2004 के और 2009 में जीत दर्ज की।