Edited By Pooja Gill,Updated: 21 Jan, 2025 02:12 PM
महाकुंभनगर: प्रयागराज में आयोजित किए जा रहे महाकुंभ में किन्नर अखाड़े में भारी संख्या में श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच रहे हैं। किन्नर वर्ग के लिए दस साल पहले ‘अखाड़ा' पंजीकृत कराने के दौरान समुदाय को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था...
महाकुंभनगर: प्रयागराज में आयोजित किए जा रहे महाकुंभ में किन्नर अखाड़े में भारी संख्या में श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच रहे हैं। किन्नर वर्ग के लिए दस साल पहले ‘अखाड़ा' पंजीकृत कराने के दौरान समुदाय को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन उनका आशीर्वाद लेने पहुंची रही श्रद्धालुओं की भीड़ ने उम्मीद जगाई है कि आखिरकार समाज उन्हें स्वीकार करेगा। तीन हजार से अधिक किन्नर लोग अखाड़े में रह रहे हैं और संगम में डुबकी लगा रहे हैं। इनमें अधिकांश ऐसे हैं जिनके परिवार ने उन्हें छोड़ दिया था।
10 साल पहले पंजीकृत कराया था अखाड़ा
खुद की पहचान महिला के रूप में करने वाली किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पवित्रा नंदन गिरि ने कहा कि समाज ने हमेशा किन्नरों का तिरस्कार किया है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें हमेशा से हीन भावना से देखा जाता रहा है। जब हमने अपने लिए अखाड़ा पंजीकृत कराना चाहा, तो हमारे धर्म को लेकर सवाल उठाए गए। हमसे पूछा गया कि हमें इसकी क्या जरूरत है? विरोध के बावजूद, हमने 10 साल पहले इसे पंजीकृत कराया और यह हमारा पहला महाकुंभ है।'' अखाड़े ऐसी संस्थाएं हैं जो विशिष्ट आध्यात्मिक परंपराओं और प्रथाओं के तहत संतों (तपस्वियों) को एक साथ लाती हैं। गिरि ने कहा, ‘‘आज हम भी संगम में डुबकी लगा सकते हैं, अन्य अखाड़ों की तरह शोभायात्रा निकाल सकते हैं और अनुष्ठान कर सकते हैं। अखाड़े में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और हमारा आशीर्वाद लेने के लिए लंबी कतार लग रही है। उम्मीद है कि समाज में भी हमें स्वीकारा जाएगा।''
'महाकुंभ में होता है अन्य संतों जैसा ही व्यवहार'
नर्सिंग स्नातक कर चुकीं गिरि ने कहा कि जैसा कि कई ट्रांसजेंडर लोगों के साथ होता है उसी तरह उनके परिवार ने भी उन्हें छोड़ दिया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे लिए जीवन कठिन है। बचपन में मैं अपने भाई-बहनों के साथ खेलती थी, इस बात से अनजान कि मैं उनमें से नहीं हूं। एक बार जब मुझे पता चला तो सभी ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं हीन या अछूत हूं। मैंने अपनी शिक्षा भी पूरी की, लेकिन फिर भी भेदभाव का दंश झेलना पड़ा।'' बता दें कि अखिल भारतीय किन्नर अखाड़ा महाकुंभ में 14वां अखाड़ा है। महाकुंभ में 13 अखाड़ों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है, संन्यासी (शैव), बैरागी (वैष्णव) और उदासीन। प्रत्येक अखाड़े को कुछ अनुष्ठानों के लिए विशिष्ट समय दिया जाता है। जूना अखाड़ा 13 अखाड़ों में सबसे पुराना और सबसे बड़ा है। महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने कहा कि महाकुंभ में उनके साथ अन्य संतों जैसा ही व्यवहार किया जाता है।