Edited By Umakant yadav,Updated: 07 Nov, 2020 07:36 PM
समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार मनरेगा, माटी कला समेत जिन-जिन योजनाओं से रोजगार के अवसर सृजित करने की लम्बी चौड़ी डींगे हांक रही हैं...
लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार मनरेगा, माटी कला समेत जिन-जिन योजनाओं से रोजगार के अवसर सृजित करने की लम्बी चौड़ी डींगे हांक रही हैं वे सब स्वयं संकट ग्रस्त हैं।
यादव ने शनिवार को यहां बयान जारी कर कहा कि मुख्यमंत्री झूठे आंकड़ों से लोगों को भ्रमित करते हैं। वास्तव में प्रदेश में मनरेगा, माटी कला समेत जिन-जिन योजनाओं से रोजगार के अवसर सृजित करने की लम्बी चौड़ी डींगे हांकी जा रही हैं वे सब स्वयं संकट ग्रस्त हैं। इनसे सम्बन्धित दो जून रोटी के लिए भी तरस रहे हैं। खुद सरकारी वोकेशनल करियर सर्विस पोटर्ल बताता है कि सितम्बर के मुकाबले अक्टूबर में ही रोजगार में 60 प्रतिशत गिरावट आई है।
उन्होंने कहा कि भाजपा शासन में मनरेगा मजदूरों को भुगतान नहीं मिल रहा है। बदायूं में भुगतान वेबसाइट में खराबी आने के कारण उनके खातों में रूपए ट्रांसफर नहीं हुए। मनरेगा में काम करके चार पैसे मिलते तो घर का काम चलता पर सरकारी तंत्र ने तो उनकी दीवाली ही फीकी कर दी हैं इनमें प्रवासी मजदूरों की हालत सबसे ज्यादा दयनीय है। यादव ने कहा कि जिला उद्योग केन्द्रों में विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना तहत माटी कला के प्रशिक्षण प्राप्त लोगों को टूल किट न दिए जाने से वे अब तक कोई काम काज नहीं कर पा रहे हैं। कन्नौज में कुम्हारों के लिए सरकारी योजनाएं कागजों में ही सिमट कर रह गई है। कुम्हारी कला प्रोत्साहन में जिन कुम्हारों को बिजली से चलने वाला चाक दिया गया है उसके बढ़ते बिल के मुकाबले उनके उत्पाद की बिक्री नहीं होती है। वे कर्जदार बनते जा रहे हैं। उन्हें परम्परागत तरीका ही अच्छा लगने लगा है।
अखिलेश ने कहा कि माटी कला में लगे लोगों के हित में तीन योजनाएं राज्य सरकार ने घोषित की। जिन्होंने बैंक से कर्ज लिया वे अब पछता रहे हैं। बहुतों ने यह काम छोड़ने का मन बना लिया है। भाजपा राज में शासन प्रशासन की कागजी कारर्वाइयों का यही नतीजा है कि सरकार विज्ञापन पर तो खूब खर्च कर देती है लेकिन अपनी योजनाओं को फाइलों में ही समेट लेती है।
सपा अध्यक्ष ने कहा कि प्रदेश में नई नौकरियां दिखी नहीं, पुरानी फैक्ट्रियां भी बंद हो गईं कर्मचारियों की लाकडाउन में ही छंटनी हो गई थी। आज भी तमाम लोग काम पाने के लिए भटक रहे हैं। चौराहों पर श्रमिकों की सुबह लगने वाली भीड़ रोजगार के सरकारी दावो की पोल खोलती है। भाजपा सरकार समाज के सभी वर्गों के हितों को चोट पहुंचा कर उसको रोजी-रोटी के लिए तरसा रही है। 2022 में भाजपा को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।