Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Mar, 2018 01:53 PM
जनीति में कब कौन किसका हो जाए इसका कोई अंदाजा नहीं है। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी हो रहा है। कभी सपा व बसपा एक दूसरे पर धड़ाधड़ हमले बोलते थे...
वाराणसीः राजनीति में कब कौन किसका हो जाए इसका कोई अंदाजा नहीं है। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी हो रहा है। कभी सपा व बसपा एक दूसरे पर धड़ाधड़ हमले बोलते थे, लेकिन अब एकजुट होकर चल रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में जिस नेता का टिकट काटा था। अब वह वर्तमान में सपा-बसपा के गंठबंधन पर भारी पड़ रहा है।
बसपा-सपा से निकले विधायक पड़ सकते हैं भारी
दरअसल, अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री कार्यकाल में भदोही के विधायक विजय मिश्रा का टिकट काट दिया था। जिसके बाद चुनाव जीते विजय मिश्रा ने खुल कर बीजेपी को वोट देने की बात कही है। विजय मिश्रा निषाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि का टिकट भी अखिलेश यादव ने ही काटा था लेकिन चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे अमनमणि त्रिपाठी भी सीएम योगी आदित्यनाथ के पाले में चले गए हैं। जिसके चलते बसपा-सपा से निकले विधायक इन दोनों पार्टियों पर भारी पड़ सकते हैं।
पड़ सकती है बसपा-सपा के गठबंधन पर दरार
वहीं बसपा ने सपा के साथ गठबंधन कर यूपी की दोनों लोकसभा सीटों पर सपा को जीत दिलाई। अब सपा प्रत्याशी तो राज्यसभा में पहुंच जाएगा, लेकिन बसपा के प्रत्याशी को राज्यसभा में पहुंचाने की जिम्मेदारी सपा की है। अगर राज्यसभा में बसपा प्रत्याशी में सीट ना मिली तो सपा-बसपा गठबंधन में दरार पड़ सकती है।
कुछ इस तरह राज्यसभा का गणित
राज्यसभा में यूपी की 10 सीटें हैं। वहीं 8 सीटों पर बीजेपी की जीत मानी जा रही है। इसके बाद भी बीजेपी ने 9 वां प्रत्याशी खड़ा कर दिया है। सपा का एक प्रत्याशी आराम से राज्यसभा पहुंच जाएगा। सपा के बचे 10 वोट के बसपा उम्मीदवार को मिलेंगे। बसपा के पास 19 विधायक हैं, लेकिन इनमें से कुछ बीजेपी के सम्पर्क में है। वहीं बीजेपी के 9वें प्रत्याशी को राज्यसभा तक पहुंचाने के लिए खिलेश यादव द्वार टिकट काटे नेता काम आ सकते हैं।