Edited By Ajay kumar,Updated: 24 Sep, 2023 08:08 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेवा से बर्खास्तगी के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सेवा से बर्खास्त करने जैसी बड़ी सजा देते समय अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पिछले रिकार्ड के साथ-साथ अन्य कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए।
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेवा से बर्खास्तगी के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सेवा से बर्खास्त करने जैसी बड़ी सजा देते समय अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पिछले रिकार्ड के साथ-साथ अन्य कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए। कदाचार की गंभीरता, पिछला आचरण, कर्तव्यों की प्रकृति, संगठन में स्थिति, पिछला जुर्माना अगर कोई हो तथा लागू किए जाने वाले अनुशासन की आवश्यकता प्रतिवादी को सजा देने से पहले अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा विचार करने के लिए प्रासंगिक है।

बिना छुट्टी के अनुपस्थित रहने के कारण याची को सेवा से बर्खास्त
दरअसल याची यशपाल गोरखपुर में रेलवे विभाग में खलासी के पद पर कार्यरत था और लगभग दस महीने तक बिना छुट्टी के अनुपस्थित रहने के कारण याची को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने यह सजा रद कर दी और मामले को अनुशासनात्मक प्राधिकारी को भेज दिया। यूनियन ऑफ इंडिया (वर्तमान मामले में याची) ने तर्क दिया कि विपक्षी कर्मचारी अधिकारियों को कोई सूचना या स्पष्टीकरण दिए बिना लगातार काम से अनुपस्थित रहा। अतः बर्खास्तगी जैसी सजा देना उपयुक्त है जबकि कर्मचारी के अधिवक्ता ने ट्रिब्यूटल के आदेश का समर्थन किया, क्योंकि उन लोगों ने अनुपस्थिति की अवधि को सत्यापित करने के लिए मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसके साथ ही याची की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी इस बात पर विचार करने में विफल रहे कि विपक्षी का रिकॉर्ड बेदाग है।
अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने मुकदमे के भौतिक पहलुओं पर कोई विचार नहीं किया
अंत में न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी और सजा रद्द करते हुए कहा कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने मुकदमे के भौतिक पहलुओं पर कोई विचार नहीं किया है।