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राजनीति में एक बड़े चेहरे मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से नवाजा, देश का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 26 Jan, 2023 01:42 PM

mulayam singh yadav was awarded the country s second biggest

74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 106 हस्तियों के लिए पद्म पुरस्कारों का ऐलान हुआ। इन पुरस्कारों के ऐलान हुए एक नाम ने सबको चौंका दिया। वो नाम है स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव का। यूपी के तीन बार...

लखनऊ: 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 106 हस्तियों के लिए पद्म पुरस्कारों का ऐलान हुआ। इन पुरस्कारों के ऐलान हुए एक नाम ने सबको चौंका दिया। वो नाम है स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव का। यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री, देश के रक्षा मंत्री, प्रख्यात समाजवादी और धरतीपुत्र के नाम से विख्यात मुलायम सिंह यादव को मोदी सरकार ने मरणोपरांत पद्म विभूषण सम्मान दिया है। जिन 106 हस्तियों के पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया है। इसमें 91 को पद्मश्री, 6 को पद्म विभूषण और 9 को पद्म भूषण से नवाजा गया है।
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समाजवादी आंदोलन को धार देने में मुलायम सिंह यादव की बड़ी भूमिका

बता दें कि बीते साल की 10 अक्टूबर को धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव (82) ने हरियाणा के गुरुग्राम स्थित एक अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। मुलायम सिंह यादव को यूपी की राजनीति में एक बड़े चेहरे के रूप में जाना जाता है। समाजवादी आंदोलन को धार देने में मुलायम सिंह यादव की बड़ी भूमिका रही है। पहलवानी के अखाड़े से निकलकर राजनीतिक मैदान तक अपने दांव से उन्होंने बड़े-बड़े राजनीतिक दलों को पछाड़ा। समाजवादी पार्टी के संस्थापक और यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रहे यादव ने देश के रक्षा मंत्री के रूप में भी काम किया। साथ ही धरती पुत्र समाजवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई और उत्तर प्रदेश के लोगों की बहुत सेवा की। मुलायम एक राजनेता नहीं, बल्कि वास्तविक अर्थों में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में भी याद किए जाते हैं।
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धरतीपुत्र' और ‘नेताजी' उपनाम से मिली पहचान 

दिल से मुलायम किंतु फौलादी इरादों वाले मुलायम सिंह को देश की राजनीति में ‘धरतीपुत्र' और ‘नेताजी' उपनाम से पहचान मिली। हर दिल अजीज मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन होने पर देश की राजनीति के एक अध्याय का पटाक्षेप हो गया। वह, सबको साथ लेकर चलने वाले नेताओं की उस पीढ़ी के नायक थे, जिसे वामपंथी से लेकर धुर दक्षिणपंथी विचारधारा तक, हर कोई निजी तौर पर पसंद करता था। शायद, इसीलिये वह दलगत राजनीति की सीमाओं को बखूबी लांघ गये थे। यह उनकी शख्सियत की ही खूबी थी, कि वह अपने धुर विरोधियों की लानत मलानत करने के साथ, अपने खेमे की कमियों को भी सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करते थे।
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जमीनी हकीकत को समझना और उसके परिणाम का सही आकलन कर स्वीकार करने का माद्दा मुलायम सिंह में ही था। इसका ताजातरीन प्रमाण था 2019 का लोकसभा चुनाव, जब उन्होंने संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक बार फिर चुनाव जीतने की बधाई देकर सभी को चौंका दिया। यह वही मुलायम सिंह थे, जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से सार्वजनिक तौर पर गुफ्तगू करने से कोई परहेज नहीं किया। बेशक, अपने नाम के मुताबिक वह हावभाव से भले ही ‘मुलायम' हों, लेकिन अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये अयोध्या में कारसेवकों पर सख्त कारर्वाई करने का आदेश देना, इरादों से उनके फौलादी होने का सबूत है।
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पहलवानी के शौकीन थे मुलायम सिंह

पहलवानी और राजनीति, दोनों के अखाड़े में महारथ रखने वाले मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 में इटावा जिले के सैंफई गांव में हुआ था। उनकी मां मूर्ति देवी और पिता सुघर सिंह, मुलायम को पहलवान बनाना चाहते थे। मुलायम सिंह, खुद भी पहलवानी के शौकीन थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। आगरा विश्वविद्यालय में बीआर कॉलेज से राजनीति शास्त्र में परास्नातक की पढ़ाई के बाद मुलायम ने अपने करियर की शुरुआत मैनपुरी के करहल इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य से की। यह बात दीगर है कि उन्होंने अखाड़े से अपना नाता नहीं तोड़ा और पहलवानी जारी रखी।
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जसवंत नगर सीट से पहला चुनाव लड़ पहुंचे विधानसभा 
यह पहलवानी का ही अखाड़ा ही था, जिसमें एक कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान मुलायम को अपने पहले प्रेरणास्रोत के रूप में नाथू सिंह मिले, जिन्होंने उनको राजनीति के अखाड़े में भी दो दो हाथ आजमाने की नसीहत दी। इस पर अमल करते हुए मुलायम सिंह, देश में समाजवाद की अलख जगाने वाले नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर 1954 में आयोजित आंदोलन का हिस्सा बने और महज 15 साल उम्र में जेल भी गए। समाज के उपेक्षित, शोषित, वंचित दलित एवं पिछड़े वर्गों के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं किये जाने के खिलाफ एक दशक के संघर्ष को आगे बढ़ाने के क्रम में मुलायम सिंह 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जसवंत नगर सीट से पहला चुनाव लड़ कर विधान सभा पहुंचे। इसके साथ ही सियासत के अखाड़े में पदार्पण करने के बाद मुलायम सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

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