Kanpur News: केवल फाइलों में हो रहा विकास, हकीकत में बदहाल हैं हालात… KDA कार्यालय को है खुद के विकास की आस!

Edited By Mamta Yadav,Updated: 23 May, 2025 06:29 PM

kanpur development is happening only on files in reality the situation is bad

जहां एक ओर कहने को कानपुर स्मार्ट सिटी होने के दावे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कानपुर महानगर के विकास का जिम्मा संभालने वाला विभाग खुद अपने कार्यालय की दुर्दशा से जूझ रहा है। हम बात कर रहे हैं कानपुर विकास प्राधिकरण (KDA) की,  जिसकी इमारत के भीतर...

Kanpur News,(प्रांजुल मिश्रा): जहां एक ओर कहने को कानपुर स्मार्ट सिटी होने के दावे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कानपुर महानगर के विकास का जिम्मा संभालने वाला विभाग खुद अपने कार्यालय की दुर्दशा से जूझ रहा है। हम बात कर रहे हैं कानपुर विकास प्राधिकरण (KDA) की,  जिसकी इमारत के भीतर फैली अवस्थाओं के अंबार को देखकर यह विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि यही विभाग शहर के सौंदर्यीकरण, सड़कों, पार्कों और नागरिक सुविधाओं समेत पूरे महानगर की निगरानी करता है।
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मेंटिनेंस के नाम बनतीं है फाइलें खर्च होते हैं लाखों
KDA के केयर टेकर विभाग के पास लाखों करोड़ों रुपये का बजट होता है, लेकिन उसका असर धरातल पर कहीं नजर नहीं आता। कागजों में तो यहां विकास की गंगा बह रही है लेकिन वास्तविकता में कार्यालय की स्थिति बद से भी ज्यादा बदतर है। बाथरूम से लेकर कार्यालय कक्षों तक की स्थिति इतनी खराब है कि आम नागरिक तो दूर, खुद कर्मचारी भी असुविधा महसूस कर रहे हैं।
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मुखिया जिस फ्लोर पर वहीं लापरवाहियों का भंडार
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिस 1st फ्लोर पर KDA के बड़े अधिकारी (VC, सचिव, सीपीटी, और चीफ इंजीनियर) बैठते हैं, वहीं सबसे ज्यादा अनियमितताएं देखने को मिल रही हैं। टॉयलेट की बदबू से पूरा बाथरूम बजबजा रहा है, बाथरूम का दरवाजा टूटकर लटक रहा है टॉयलेट की कंसील्ड टूटी पड़ी है, तो कहीं फॉल सीलिंग जगह-जगह से उखड़ चुकी है।
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प्रवर्तन विभाग का बाथरूम एक साल से बंद
तीसरे फ्लोर पर स्थित प्रवर्तन साइड का बाथरूम पिछले करीब एक साल से बंद पड़ा है। पंजाब केसरी संवाददाता ने जब बाथरूम खोलकर देखा तो दम घुटने वाली बदबू आ रही थी... साफ-सफाई मानों सालों से न हुई हो जिसकी फोटो देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। अधिकारियों और कर्मचारियों को अन्य मंजिलों पर जाकर बाथरूम इस्तेमाल करना पड़ता है। पार्किंग में पुलिस चौकी के बगल में बना बाथरूम भी अव्यवस्था और सफाई के अभाव से ग्रसित है। सोचिए, जो विभाग अवैध निर्माण पर कार्रवाई करता है, वह खुद सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा है।
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पब्लिक सुविधाओं का भी बुरा हाल
आम जनता, जो रोजाना KDA कार्यालय पहुंचती है, उन्हें भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। पीने का पानी ठंडा तो है लेकिन गंदा है। नाम न सामने लाने की शर्ते पर एक कर्मचारी ने बताया वाटर कूलर में ठंडा पानी तो आता है लेकिन RO (Water purifier) सालों से खराब पड़े हैं। गर्मी का मौसम है और गर्मी में पानी लोग ज्यादा पीते है गंदे पानी के वजह से लोगों को फूड प्वाइजनिंग जैसी कई गंभीर बीमारियां तक हो जाती हैं।
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जहां बैठते थे कर्मचारी नेता आज केबिन पूरी तरह पड़ा है बंद
सेकंड फ्लोर पर कानपुर विकास प्राधिकरण के एक कर्मचारी नेता कभी जिस केबिन में बैठा करते थे आज उस केबिन की पूरी फॉर सीलिंग टूटी पड़ी है और केबिन उजड़ा चमन बना हुआ है। महीनों से ताला लटक रहा है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि केबिन में लटकता हुआ ताला और धूल फांकती टूटी कुर्सी-मेज केयर टेकर विभाग की घोर लापरवाही की ओर इशारा कर रही है...?

विभाग के मुख्य द्वार की ख़राब पड़ी लाइटें तो अथॉरिटी का ' A' रहा है लटक
विभाग के मुख्य द्वार पर बोर्ड पर लगी लाइट ख़राब है आधे द्वार की लाइट जलती है आधे की खराब पड़ी है मुख्य द्वार से अंदर जाने पर विभाग के टॉप फ्लोर पर KDA (Kanpur Devlopment Athourity) का बोर्ड लगा हुआ जिसके Athourity का ' A' अलग झूल रहा है प्रतिदिन बड़े बड़े अधिकारियों का आवागमन होता है यहां तक केयरटेकर अतुल राय भी निकलते होंगे नज़र भी पड़ती होगी लेकिन लापरवाही के चलते चीजें सही नहीं हो पा रही हैं।

सीढ़ियों के बगल वाले फाउंटेन रहते हैं बंद
विकास प्राधिकरण की ग्राउंड फ्लोर से जैसे ही सीढ़ीओ की ओर बढ़ेंगे तो सीढ़ीओ के अगल-बगल बने फाउंटेन हमेशा बंद पड़े रहते हैं जो की आकर्षण के लिए लगाए गए थे लेकिन KDA VC और सचिव सीढ़ियों से गुजरते हैं इसके बाद भी फाउंटेन सही नहीं होता और अगर सही है तो चलता क्यों नहीं है...?

विभागीय लापरवाही या भ्रष्टाचार...?
सवाल उठता है कि जब मेंटिनेंस के नाम पर मोटी रकम खर्च की जाती है, तो उसका इस्तेमाल आखिर कहां हो रहा है...? क्या यह विभागीय लापरवाही है या फिर भ्रष्टाचार की एक और तस्वीर...? सवाल ये उठता है कि KDA का केयरटेकर विभाग मेंटिनेंस के नाम पर क्या कर रहा है...?  क्या कोई जवाबदेही तय होगी या यह सब यूं ही चलता रहेगा....? कागजों में विकास की फाइलें भले ही मोटी होती जाएं, लेकिन जब तक हकीकत में बदलाव नहीं दिखता, तब तक हर योजनाऐं महज एक ढकोसला ही मानी जाएगी...।

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