‘जनता और पुलिस के बीच कृष्ण-सुदामा जैसी मित्रता जरूरी’, युवा IPS आयुष श्रीवास्तव बोले- किसी भी रिश्ते को बचाने में त्याग सबसे महत्वपूर्ण

Edited By Mamta Yadav,Updated: 13 Jul, 2025 05:18 PM

friendship like krishna sudama is necessary between the public and the police

उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के अपर पुलिस अधीक्षक नगर युवा आईपीएस अधिकारी आयुष श्रीवास्तव ने रविवार को कहा कि जनता और पुलिस के बीच कृष्ण-सुदामा जैसी सच्ची मित्रता जरूरी है। समाज को सही दिशा एवं आपराधिक मामलों से मुक्ति के लिए इनका सहयोग उतना ही...

Jaunpur News: उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के अपर पुलिस अधीक्षक नगर युवा आईपीएस अधिकारी आयुष श्रीवास्तव ने रविवार को कहा कि जनता और पुलिस के बीच कृष्ण-सुदामा जैसी सच्ची मित्रता जरूरी है। समाज को सही दिशा एवं आपराधिक मामलों से मुक्ति के लिए इनका सहयोग उतना ही आवश्यक है जितना मछली के लिए जल की होती है।

किसी भी रिश्ते को बचाने में त्याग सबसे महत्वपूर्ण
अपर पुलिस अधीक्षक नगर आयुष श्रीवास्तव रविवार को एक न्यूज चैनल द्वारा पूछे गए जनता और पुलिस के बीच सामंजस्य के सवाल पर जवाब देते हुए कहा कि पुलिस का हाथ राजस्व और न्यायालय से जुड़े मामलों में बंधा रहता है जबकि संगीन वारदात को अंजाम देने वालों पर तो वह कहर बनकर टूट पड़ती है। उन्होंने कहा कि पुलिस भी समाज से आई है। किसी भी रिश्ते को बचाने में त्याग सबसे महत्वपूर्ण है। अगर मैं आईपीएस बना हूं तो उसमें हमारे-माता-पिता का त्याग और योगदान है। जब रिश्ते मधुर होते हैं तो कठिनाईयां अपने-आप आसान हो जाती है। पुलिस समाज से हटकर काम करेगी तो हमे लगता है कि उसकी बुराईयों में भी लोगों को अच्छाईयां नजर आने लगेगी।

समय-समय पर अपराधियों के खिलाफ अभियान चलाया जाता है
उन्होंने अपराध पर चर्चा करते हुए कहा कि इसकी रोकथाम के लिए पुलिस हमेशा तत्पर रहती है। समय-समय पर पीस कमेटी की बैठक, वाहनों की चेकिंग, गुंडा एक्ट, जिला बदर, शांतिभंग, पुलिस हेल्प लाइन आदि के साथ दिन और रात्रि का गस्त इसका एक अहम हिस्सा है। अपराधियों के खिलाफ अभियान भी चलाया जाता है। समय-समय पर उनका सत्यापन कर पता किया जाता है कि कहीं वह दोबारा तो इस कार्य में लिप्त नहीं है। इस कार्य में पुलिस की हमेशा पैनी नजर रहती है। बावजूद इसके अगर कोई आपराधिक वारदात होती है तो पुलिस तब तक चैन नहीं लेती जब-तक अपराधी को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर विवेचना को समाप्त न कर दें।

पत्नी-पत्नी के रिस्तों में तेजी से आ रही खटास पर उन्होंने कहा कि इस मामले में लोग आपसी समझदारी से काम लें। परिवार के साथ अपने सगे-संबंधियों का सहयोग लें। जिससे समय रहते इसे हल कर लिया जाए। फिर भी अगर बात नहीं बन रही है तो मुकदमे का नहीं बल्कि परिवार परामर्श केन्द्र का सहारा लें। जमीनी मामलों पर कहा कि यह राजस्व से जुड़े होते है। इसमें पुलिस का सीधे कोई हस्तक्षेप नहीं होता। पुलिस सिर्फ शांति व्यवस्था ही कायम कर सकती है। जमीन पर कब्जा राजस्व विभाग ही दिला सकता है। इस तरह के मामले दोनों के हस्तक्षेप से ही खत्म होते है। उन्होंने कहा कि रिस्ते में कड़वाहट के चलते भाई-बहन, पिता-पुत्र, माँ-बेटे, भाई-भाई, चाचा-भतीजा व पति-पत्नी का विवाद आम हो गया है। ऐसे मामलों में अगर देखा जाए तो अगर पीडि़त पक्ष का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है तो दूसरा पक्ष भी क्रास केस के लिए दबाव बनाने लगता है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। मुकदमा सिर्फ पीडि़त पक्ष का ही दर्ज होना चाहिए। इससे दबंगई करने वालों का मनोबल टूटता और अपराध में कमी आती है। छोटे-बड़े मामलों को भी बातचीत से हल करने का प्रयास करना चाहिए न कि मुकदमे से।

2021 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं आयुष श्रीवास्तव
थानों पर फरियादियों की कम सुनवाई होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि समय-समय पर ऐसे थानों का फीडबैग लिया जाता है। लापरवाही उजागर होने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई भी की जाती है। बताते चलें कि 2021 बैच के आईपीएस अधिकारी एवं देश की राजधानी दिल्ली के रहने वाले आयुष श्रीवास्तव की जनपद में पहली पोस्टिंग है। त्रिपुरा से ट्रेनिंग लेने के बाद शासन ने उन्हें जौनपुर भेज दिया। सर्व प्रथम अक्टूबर में उन्हें बदलापुर तहसील का पुलिस क्षेत्राधिकारी बनाया गया। एक माह तक उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। नवम्बर में माहभर के लिए अवकाश पर चले गए। छुट्टी से वापस आने के बाद दिसम्बर में उन्हें सीओ सिटी की कमान सौंपी गयी। लगभग तीन माह तक उन्होंने अपने कार्यों को बखूबी अंजाम दिया। उनकी निश्पक्ष कार्यकुशलता, ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठता के साथ-साथ जनता में अच्छी छवि को देखते हुए शासन ने उन्हें जनपद में ही अपर पुलिस अधीक्षक बना दिया। बीते 18 मार्च से वह एसपी सिटी का कार्यभार देख रहे हैं।

ऑफिस आया फरियादी निराश होकर नहीं लौटता
अगर उनकी कार्यशैली पर नजर डाली जाए तो पीडि़तों की समस्याएं उनके लिए सर्वोपरि है। कार्यालय में समय से बैठकर शिकायतों का निष्पक्षता से निराकरण करना इनकी आदत में सुमार है। तत्परता ऐसी कि जन सुनवाई के दौरान समय का ध्यान ही नहीं रहता। आफिस आया फरियादी निराश होकर नहीं लौटता। उदाहरण के लिए नौ जुलाई को लगभग तीन बजे तक जन सुनवाई कर उठ रहे थे। उसी दौरान केराकत की एक महिला अपने दस वर्ष के बेटे ऋषभ के साथ हाथ में प्रार्थना पत्र लिए पहुंच गयी। नजर पड़ते ही उन्होंने पास बुला लिया। पूछताछ करने पर पता चला कि खेत में बकरी चले जाने को लेकर ऋषभ को गांव के एक दबंग ने मारपीट कर जख्मी कर दिया है। माँ-बेटे की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। त्वरित कार्रवाई का ढ़ाढ़स बधाते हुए सर्व प्रथम उन्होंने दोनों को बिस्कुट खिलाकर पानी पिलवाया। इसके बाद कोतवाली प्रभारी को फोन लगाकर जमकर क्लास ली। फटकार लगाया कि दबंग के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करते हुए शाम तक अवगत कराइए, अन्यथा कठोर दंड के लिए तैयार रहें। इस प्रकार उनके कड़े तेवर देख रो रहे माँ-बेटे के चेहरे पर न्याय मिलते ही मुस्कान लौट आयी।

पुलिस कार्यालय में प्रतिदिन सुबह 11 से दोपहर बाद तक पीडि़तों की समस्याओं को सुनकर निस्तारण करने वाले अधिकारी आयुष श्रीवास्तव ने कहा कि जिस किसी की भी थाने पर सुनवाई नहीं हो रही है या विवेचक काम नहीं कर रहा है वह बिना किसी रोक-टोक मुझसे मिल सकता है। समय रहते उसका निस्तारण किया जाएगा। बस इस बात का ध्यान रहे कि शिकायत सही होनी चाहिए।

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