Edited By Ramkesh,Updated: 15 Dec, 2024 01:15 PM
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' समेत कई मुद्दों को लेकर प्रेसवार्ता की। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी जनहित के मुद्दे को लेकर राजनीति से ऊपर होकर 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का समर्थन करती है। उन्होंने कहा कि देश हित में...
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' समेत कई मुद्दों को लेकर प्रेसवार्ता की। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी जनहित के मुद्दे को लेकर राजनीति से ऊपर होकर 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का समर्थन करती है। उन्होंने कहा कि देश हित में सभी राजनीतिक पार्टियों को इस मुद्दे पर एक होकर इस बिल का समर्थन करना चाहिए। हालांकि उन्होंने ने कई मुद्दों को लेकर कांग्रेस बीजेपी एवं समाजवादी पार्टी पर हमला बोला।
मायावती ने कहा कि कांग्रेस की तरफ ही बीजेपी काम कर रही है। उन्होंने आरक्षण को निष्प्रभावी बनाने की योजना बना रही है। सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण जैसे मुद्दे पर मौन साधे हुए है। इसे लेकर समाजवादी पार्टी पर भी उन्होंने हमला बोला। मायावती ने कहा कि संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है जबकि जनहित के मुद्दे को छोड़कर कांग्रेस भाजपा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का आरोप लगा कर जनता के मुद्दे से भटका रही है।
आप को बता दें कि देश में 1952 में पहली बार चुनाव हुए, तब भी लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए एक साथ वोट डाले गए। अगले 4 चुनावों तक ऐसा ही चलता रहा। लेकिन इसके बाद कुछ विषमताएं पैदा होने लगीं। आखिरी बार 1967 में देश में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के तत्कालीन फॉर्मेट के तहत चुनाव हुए। तब उत्तर प्रदेश (जिसे पहले यूनाइटेड प्रोविंस कहते थे) को छोड़कर पूरे देश में एक चरण में चुनाव हुए। यूपी में उस वक्त भी 4 चरण में चुनाव कराने पड़े थे। 1967 का इलेक्शन आजादी के बाद चौथा चुनाव था। तब 520 लोकसभा सीटों और 3563 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले गए थे। इस वक्त तक सत्ता में केवल कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद न सिर्फ इंदिरा गांधी को सहयोगियों के विरोध से जूझना पड़ रहा था, बल्कि कांग्रेस के खिलाफ देश में भी विरोधी लहर चलने लगी थी।
अब एक बार फिर करीब 6 दशक के बाद अब देश फिर से वन नेशन-वन इलेक्शन की तरफ बढ़ रहा है। लेकिन ये सफर भी आसान नहीं था। रिपोर्ट तैयार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी ने न सिर्फ आजादी के बाद हुए चुनावों की कार्यप्रणाली को समझा, बल्कि दुनिया के उन देशों का भी अध्ययन किया, जहां एक साथ चुनाव होते हैं। इन देशों में स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, इंडोनेशिया, फिलिपिंस और जापान शामिल है।