80 लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य: पसमांदा मुसलमानों को रिझाने में जुटी BJP, विपक्ष ने बताया छलावा

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 23 Oct, 2022 03:42 PM

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उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आगामी नगरीय निकाय चुनावों से पहले मुसलमानों के सबसे बड़े तबके यानी पसमांदा (पिछड़े) स...

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आगामी नगरीय निकाय चुनावों से पहले मुसलमानों के सबसे बड़े तबके यानी पसमांदा (पिछड़े) समाज को अपने पाले में लाने की कोशिशों में जुटी है। प्रदेश के हर नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत क्षेत्र में पसमांदा मुसलमानों के सम्मेलन कराने की योजना बना रही भाजपा का दावा है कि वह इस पिछड़े वर्ग का सामाजिक और आर्थिक उत्थान करने के बाद अब उनका राजनीतिक उत्थान भी करना चाहती है। हालांकि विपक्षी दलों ने भाजपा के इन प्रयासों को छलावा करार दिया है।

मुसलमानों का ‘वोट बैंक'
भाजपा इन दिनों प्रदेश में पसमांदा मुसलमानों के सम्मेलन आयोजित करके उनके लिए अपनी सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों का जिक्र करने के साथ-साथ इन मुसलमानों का ‘वोट बैंक' की तरह इस्तेमाल करने और उसे उसका वाजिब हक नहीं देने का आरोप लगाते हुए समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस को घेर रही है। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के एकमात्र मुस्लिम मंत्री अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश अंसारी खुद भी पसमांदा समाज से आते हैं। उन्होंने बातचीत में कहा, ‘‘मुसलमानों का राजनीतिक सशक्तीकरण होना भी बहुत जरूरी है। केंद्र और राज्य सरकार ने मुसलमानों का अभी तक आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण किया है। भाजपा अब मुसलमानों को भागीदारी देकर उनका राजनीतिक सशक्तीकरण करना चाहती है।''

'मुसलमान यह मानता है कि उसे सरकारी योजनाओं का बिना भेदभाव के लाभ मिल रहा'
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास' के मूल मंत्र पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि आम मुसलमान यह मानता है कि उसे सरकारी योजनाओं का बिना भेदभाव के लाभ मिल रहा है और जो पार्टी उसे लाभ दे रही है, उसके साथ खड़े होना उसकी नैतिक जिम्मेदारी है। भाजपा सरकार पहली बार मुसलमानों को केंद्र में रखकर सक्रियता दिखा रही है। पार्टी निकट भविष्य में होने जा रहे प्रदेश के नगरीय निकायों के चुनाव में मुसलमानों को टिकट देने की तैयारी कर रही है। उत्तर प्रदेश भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने कहा, ‘‘जहां हम कभी चुनाव नहीं जीते हैं और जहां भाजपा कभी चुनाव नहीं लड़ी है वहां इस बार जिताऊ मुसलमान भाजपा कार्यकर्ताओं को पार्टी का टिकट दिया जाएगा और उन्हें जितना सहयोग हो सकेगा वह किया जाएगा।'' 

पहले गिने-चुने मुस्लिम उम्मीदवारों को ही भाजपा से टिकट मिलता था...
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘हां, ऐसा लगभग पहली बार हो रहा है। इससे पहले गिने-चुने मुस्लिम उम्मीदवारों को ही भाजपा से टिकट मिलता था। इस बार ज्यादा संख्या में टिकट दिए जाएंगे।'' भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष ने कहा कि लखनऊ में पिछले दिनों पसमांदा मुसलमानों के सम्मेलन आयोजित कराए गए, जिनमें दोनों उप मुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसे ही और कार्यक्रम नगर निगमों, नगर पालिका और नगर पंचायत स्तर पर भी आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने कहा, ‘‘हमने योजना बनाई है कि पसमांदा मुसलमानों की अलग-अलग बिरादरियों के लोग अपने-अपने समाज के बीच जाकर सम्मेलन करेंगे और उनमें भाजपा के नेता भी हिस्सा लेंगे और वे पार्टी की विचारधारा और सरकार की योजनाओं को उन तक पहुंचाएंगे।'' 

अली ने दावा करते हुए कहा, ‘‘भाजपा सरकार ने पसमांदा मुसलमानों के लिए काफी प्रयास किये हैं। सरकार ने साढ़े चार करोड़ मुसलमानों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया है, अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है, उर्दू अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया है और सरकार के विभिन्न आयोगों और मोर्चा में पसमांदा मुसलमानों को 80 फीसदी हिस्सेदारी दी है।'' इस बार मुसलमानों को लेकर भाजपा के रवैये में हुए इस बदलाव का कारण पूछे जाने पर अली ने बताया, ‘‘सरकार की योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ भी मुसलमानों को ही मिला है। मुसलमानों का सबसे बड़ा वर्ग माने जाने वाला पसमांदा समाज दरअसल लाभार्थी वर्ग है और इसकी सबसे ज्यादा तादाद नगर पालिका और नगर पंचायतों में है। उसे अगर लगेगा कि भाजपा ने हमारा भला किया है तो पार्टी को कहीं न कहीं इसका लाभ चुनाव में मिलेगा।'' 

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की कुल आबादी का 85 प्रतिशत हिस्सा पसमांदा बिरादरियों का है। इसमें अंसारी, कुरैशी, मंसूरी, सलमानी और सिद्दीकी समेत 41 जातियां शामिल हैं। यह वर्ग सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लिहाज से सबसे पिछड़ा है। उत्तर प्रदेश के 72 विधानसभा और लगभग 14 लोकसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता अपना प्रभाव रखते हैं। पसमांदा मुसलमानों की संख्या को देखते हुए अगर किसी पार्टी को इस तबके का समर्थन मिलता है तो यह नतीजों पर फर्क डाल सकता है। सीएसडीएस-लोकनीति के एक सर्वे के मुताबिक इस साल के शुरू में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करीब आठ प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया था, जो 2017 के आंकड़े के मुकाबले एक फीसदी ज्यादा रहा। इस बीच, पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाने की भाजपा की कोशिश को विपक्ष ने छलावा करार दिया है। 

संभल से सपा सांसद शफीक उर रहमान बर्क ने सवाल किया कि भाजपा को मुसलमान अचानक क्यों अच्छे लगने लगे हैं। उन्होंने कहा कि सारा मामला 2024 के लोकसभा चुनाव का है। उन्होंने दावा किया, ‘‘भाजपा चाहे जितनी कोशिश कर ले, कोई भी सच्चा मुसलमान उसे वोट नहीं देगा।'' उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने पसमांदा मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की भाजपा की कोशिशों पर तंज करते हुए कहा, ‘‘हिजाब और मुसलमानों से जुड़ी अन्य परंपराओं पर भाजपा सरकारों के रुख के बाद उन्हें वोट नहीं मिलने वाला है।'' 

उन्होंने कहा कि भाजपा दावा कर रही है कि उसने पसमांदा मुसलमानों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया है लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने पसमांदा तबके से आने वाले कुरैशी समाज की रोजी-रोटी छीन ली। उन्होंने कहा कि इसके अलावा बुनकर समाज की दुर्दशा तो किसी से छिपी नहीं है। हालांकि ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राइन ने खुद को धर्मनिरपेक्ष पार्टी कहने वाली सपा, बसपा और कांग्रेस पर पसमांदा मुसलमानों के साथ हमेशा धोखा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह वर्ग हर तरफ से परेशान है। उन्होंने पूछा, ‘‘अगर उसे कहीं से (भाजपा) कुछ राहत मिल रही है तो क्या उसे वहां नहीं जाना चाहिए।'' 
 

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