फिल्मलैंड के लिए मुफीद चंबल की वादियां के लिए उठी फिल्म सिटी बनाने की मांग, शाेले-कच्चे धागे जैसी कई

Edited By Ajay kumar,Updated: 22 Sep, 2020 07:47 PM

chambal s promises are favorable for filmland

फिल्मलैंड के लिए मुफीद चंबल की वादियां के लिए उठी फिल्म सिटी बनाने की मांग

इटावा: उत्तर प्रदेश में फिल्मसिटी के निर्माण के लिये जारी कवायद के बीच इटावा के बाशिंदों को भरोसा है कि नैसर्गिक सुंदरता की पर्याय चंबल घाटी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फिल्मलैंड के सपने में चार चांद लगाने में मददगार साबित हो सकती हैं। वैसे चंबल के बीहड़ मायानगरी के निर्माता निर्देशकों के लिये दशकों से आकर्षण का केन्द्र बने रहे हैं। कई नामी गिरामी फिल्मों की शूटिंग चंबल के दुर्दांत दस्यु सरगनाओं के जीवन पर फिल्माई जा चुकी है जबकि यहां की नैसर्गिक सुंदरता कश्मीर की वादियों को कई मायनों पर टक्कर देती है। इस लिहाज से चंबल फिल्मलैंड के लिए सबसे मुुफीद मानी जा रही है ।     
 
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CM से आग्रह है कि फिल्मसिटी चंबल घाटी में बनाया जाएः डा.गजल श्रीनिवास
फिल्म निर्माण से जुड़ी कई हस्तियों का मानना है कि प्राकृतिक तौर पर बेहद आंनदमयी चंबल घाटी को फिल्मलैंड के रूप मे स्थापित कर फिल्मकारों के लिए एक नया रास्ता खोला जा सकता है। तेलंगाना के जाने माने फिल्मकार, गजलकार डा.गजल श्रीनिवास का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह है कि अगर फिल्मसिटी चंबल घाटी में बनाया जाता है तो फिल्मकारों को शूटिंग के लिहाज से बहुत ही अधिक फायदा होगा क्योंकि यहॉ पर बहुत ही सुकुन है। लोकेशन बहुत ही शानदार है जो किसी भी फिल्म के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।

निवास कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पांच नदियों के संगम स्थल पशनदा को पर्यटक स्थल बनाने का फैसला भी कर चुके हैं ऐसे में चम्बल को अगर फ़िल्मलैंड की ओर ले जाया जाता है तो निश्चित है यह कोशिश चंबल के लिहाज से बहुत ही सार्थक होगी।

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चंबल घाटी में शूटिंग हर लिहाज से बेहतरः आदित्य ओम
चंबल में मैला प्रथा पर फिल्म निर्माण कर चुके मास्साब, बंदूक, जैसी सम्मानित और पुरस्कृत फिल्मों के लेखक निर्देशक, तेलुगु फिल्मों के सुप्रसिद्ध अभिनेता आदित्य ओम चंबल घाटी को फिल्म निर्माण के लिए सबसे बेहतर मानते है । ओम कहते है कि चंबल घाटी में शूटिंग हर लिहाज से बेहतर है । चाहे वो लोकशन हो या फिर कोई और भी जरूरत हर जरूरत आपकी पूरी हो सकती है । चंबल घाटी की नैसर्गिक सुंदरता विदेश के खूबसूरत पर्यटन स्थलो को भी मात देती है। इसी धरोहर को आज ना केवल सुरक्षित रखने की जरूरत है बल्कि उसको लोकप्रिय भी बनाना है । 
      
अगर चंबल घाटी को फिल्मलैंड का दर्जा मिलता है तो विकास के नये आयाम का सृजन हाेगाः  मोहनदास

के.आफिस चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिबल के चैयरमैन मोहनदास का मानना है कि अगर चंबल घाटी को फिल्मलैंड का दर्जा मिलता है तो चंबल में विकास के नये आयमों का सृजन तो होगा ही साथ ही रोजगार की भी नई संभावनाएं जरूर बनेंगी। 

अगर दूसरा कार्यकाल अखिलेश को मिला होता तो अब तक फिल्म रिलीज हाे गई हाेतीः विशाल कपूर
अखिलेश सरकार में फिल्म विकास परिषद के सदस्य रहे विशाल कपूर ने कहा ‘‘ उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी की बात चली है, तो यह जान लीजिए अगर दूसरा कार्यकाल अखिलेश यादव को मिला होता, तो अब तक फिल्म रिलीज का वक्त आ जाता। अखिलेश यादव ने जिस भी काम में हाथ डाला, अपने सधे हुए हुनरमंद हाथों से उस काम को तय वक्त में पूरा किया। ''       

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उस दाैर में हर चाैथी फिल्म की कहानी या लोकेशन चंबल घाटी होती थीः चंबल फाउंडेशन
चंबल फाउंडेशन के संस्थापक शाह आलम ने कहा कि एक दौर ऐसा आया जब देश में बनने वाली हर चाैथी फिल्म की कहानी या लोकेशन चंबल घाटी होती रही है। इसी वजह से चंबल घाटी को फिल्मलैंड कहा जाता है। जमींदारों के अत्याचार, आपसी लड़ाई और जर, जोरू और जमीन के झगड़ों को लेकर 1963 में आई फिल्म मुझे जीने दो के बाद इस विषय पर सत्तर के दशक में बहुत सारी फिल्में, चंबल के बीहड़ और बागियों को लेकर बनीं जिनमें डाकू मंगल सिंह -1966, मेरा गांव मेरा देश-1971, चम्बल की कसम-1972, पुतलीबाई-1972, सुल्ताना डाकू-1972, कच्चे धागे-1973, प्राण जाएँ पर बचन न जाए-1974, शोले-1975, डकैत-1987, बैंडिट क्वीन-1994, वुंडेड -2007, पान सिंह तोमर- 2010, दद्दा मलखान सिंह और सोन चिरैया-2019 और निर्भय सिंह आदि प्रमुख हैं। इन फिल्मों में से कुछ फिल्मों में चंबल की वास्तविक तस्वीर बड़ी विश्वसनीयता के साथ अंकित हुई है।

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