Edited By Pooja Gill,Updated: 22 Jan, 2025 10:10 AM
संभल: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित न्यायिक आयोग ने 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुए दंगों से प्रभावित इलाकों का मंगलवार को निरीक्षण किया और लोगों के बयान दर्ज करने के लिए सुनवाई शुरू की। पिछले साल के अंत में गठित आयोग ने शाही...
संभल: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित न्यायिक आयोग ने 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुए दंगों से प्रभावित इलाकों का मंगलवार को निरीक्षण किया और लोगों के बयान दर्ज करने के लिए सुनवाई शुरू की। पिछले साल के अंत में गठित आयोग ने शाही जामा मस्जिद क्षेत्र सहित इन स्थानों का फिर से दौरा किया, जहां 24 नवंबर को हिंसा हुई थी। न्यायिक आयोग में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवेंद्र अरोड़ा, उप्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक अरविंद कुमार जैन और राज्य के पूर्व अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद शामिल हैं। सरकार ने आयोग का गठन दंगों की जांच करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए किया है।
इसके पहले भी आयोग ने संभल का दौरा किया था। आयोग के प्रतिनिधिमंडल के साथ जिलाधिकारी (डीएम) राजेंद्र पेंसिया, पुलिस अधीक्षक (एसपी) कृष्ण कुमार विश्नोई और मुरादाबाद रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) मुनिराज जी भी थे। आयोग के सदस्यों के नेतृत्व में टीम ने एक घंटे से अधिक समय तक व्यापक निरीक्षण किया। इसके बाद, उन्होंने संभल में चंदौसी रोड पर पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में पहुंचकर सुनवाई शुरू की। आयोग के सदस्य आज शाम चार बजे तक लोगों का बयान दर्ज करेंगे।
जानकारी के अनुसार, आयोग के सदस्य और पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन ने कहा, "हमने यह शिविर इसलिए लगाया है ताकि जो लोग अपना पक्ष रखना चाहते हैं और जानकारी देना चाहते हैं, उन्हें लखनऊ न जाना पड़े। यह उनकी सुविधा के लिए है। हम उनकी बात सुनने के लिए 4-5 घंटे यहां रहेंगे।" जांच का उद्देश्य दंगों के कारणों का पता लगाना और प्रभावित लोगों से प्रासंगिक साक्ष्य जुटाना है। 24 नवंबर की हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई थी, जबकि सुरक्षाकर्मियों सहित कई अन्य घायल हो गए थे। इस घटना को लेकर सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दलों के बीच राजनीतिक टकराव तेज हो गया था।
10 से ज्यादा लोगों ने दर्ज कराए बयान
टीम ने 24 नवंबर को हिंसा को लेकर बयान दर्ज करने के लिए एक कैंप आयोजन किया। इसमें करीब एक दर्जन लोगों के बयान दर्ज हुए। बयान दर्ज करने वालों में 1978 में हुए दंगा पीड़ित भी पहुंचे। इसमें एक शख्स ने बताया कि 1978 के दिन खौफनाक मंजर था। चारों तरफ अघोषित कर्फ्यू था ।मेरे पिताजी बाजार से लौट रहे थे। तभी उनको एक बाजार की दुकान में खींच लिया गया और उनको मार दिया गया। उन्होंने बताया कि आज अगर यहां हम जिंदा है तो पुलिस प्रशासन की वजह से वरना हमारा हाल उसी दिन की तरह किया जाता।