फिल्मकारों की पहली पसंद हैं चंबल के बीहड़, ‘शोले’ जैसी कई मशहूर फिल्मों की हो चुकी हैं यहां शूटिंग

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Mar, 2018 06:09 PM

first choice of filmmakers is chambal s rugged

खूंखार डाकुओं की शरणस्थली के तौर पर दशकों तक कुख्यात रही चंबल घाटी से डकैतों का सफाया भले ही हो गया हो मगर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस बीहड़ क्षेत्र से फिल्म निर्देशकों के आकर्षण में रंच मात्र भी कमी नहीं आई है।  चंबल की ऊबड खाबड़ घाटियों पर...

इटावाः खूंखार डाकुओं की शरणस्थली के तौर पर दशकों तक कुख्यात रही चंबल घाटी से डकैतों का सफाया भले ही हो गया हो मगर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस बीहड़ क्षेत्र से फिल्म निर्देशकों के आकर्षण में रंच मात्र भी कमी नहीं आई है।  चंबल की ऊबड खाबड़ घाटियों पर सैकड़ों की तादाद में डकैतों की जिंदगी से जुड़ी हुई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। 

निर्देशकों के लिए पहली पसंद बना चंबल के बीहड़
खास तौर पर फिल्मों को बनाने के दौरान निर्माता निर्देशकों ने चंबल के बीहड़ों का ही रुख किया है। इस लिहाज से एक बात साफ हो चली है कि चंबल आज भी डाकुओं की फिल्मों के लिए निर्माता निर्देशकों के लिए पहली पसंद बना हुआ है। डाकुओं से जुड़ी जो भी फिल्में आई हैं, उसमें चंबल की भूमिका लोकेशन के हिसाब से सबसे अहम रही है। 
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‘शोले’ फिल्म की भी हुई शूटिंग
दरअसल बीहड़ में फिल्म का अधिकांश भाग शूट किया गया है। डाकुओं के जीवन से जुड़ी नामी और गैरनामी फिल्मों की बात करें तो कई सैकड़ा फिल्में इस चंबल की गवाह बन चुकी हैं लेकिन लोकप्रियता के मुहाने पर हर फिल्म नहीं पहुंच सकी है।   ‘शोले’ फिल्म को सिनेमाई दुनिया का मील का पत्थर माना जाता है। 1975 में बनी इस फिल्म मे चंबल को जिस ढंग से पेश किया वो वाकई काबिले तारीफ है। इसके अलावा जिस देश में गंगा बहती है, मेरा गांव मेरा देश मुझे जीने दो, बिंदिया और बंदूक, डकैत, जैसी कई फिल्मों में खूबसूरत बीहड़ और डकैतों के जुल्म की दास्तां को पर्दे पर उतारा गया है।  
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चंबल का बीहड़ रियल शूटिंग के लिए सबसे उपयुक्त
इससे पहले डाकू हसीना, डाकू सुल्ताना, मदर इंडिया, डाकू मंगल सिंह, जीने नही दूंगा, मेरा गांव मेरा देश के अलावा सिनेमा निर्माताओं को कोई नाम नहीं सूझा तो चंबल की कसम और चंबल के डाकू नाम से ही फिल्में बना दी गईं। यह तो सिर्फ बानगी भर थी। यही कारण है कि प्रकृति की इस अछ्वुत घाटी को दुनिया भर के लोग सिर्फ और सिर्फ डकैतों की वजह से ही जानते हैं। फूलन देवी के जीवन पर बनी शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन की चर्चा किए बिना रहा नहीं जा सकता है। इसी तरह से कृष्णा मिश्रा की सीमा परिहार के जीवन पर बनी फिल्म वुंडेड को भी जगह मिल सकती है। वुंडेड नामक फिल्म बना करके चंबल का आंनद ले चुके फिल्म निर्माता कृष्णा मिश्रा का कहना है कि चंबल का बीहड़ रियल शूटिंग के लिए सबसे उपयुक्त है। इसी वजह से चंबल के आकर्षण से निर्माता दूर नहीं जा पा रहा है।  
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चंबल के डकैतों पर 100 से अधिक बन चुकी हैं फिल्में 
चंबल के डकैतों पर सौ से अधिक फिल्में बन चुकी हैं। इसमें से सनी देओल की फिल्म डकैत अटेर के गांव में स्थित हवेली में शूट हुई थी। डकैतों पर अब तक की सबसे प्रसिद्ध फिल्म बैंडिट क्वीन फूलन देवी की जीवन पर थी। इसके अलावा चंबल की कसम फिल्म की शूटिंग भी यादगार रही। तिग्मांशु धूलिया निर्देशित पान सिंह तोमर का तो कोई मुकाबला ही नहीं है क्योंकि पान सिंह तोमर की वास्तविक जिंदगी पर फिल्म बना कर तोमर के डाकू बनने की कहानी पेश कर पुलिसिया कारगुजारियों को उजागर किया गया। 
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‘इश्किया‘,‘डेड़ इश्किया’और‘उड़ता पंजाब’ चंबल पर आधारित
बुलेट राजा की भी कुछ शूटिंग उत्तर प्रदेश मे इटावा जिले मे सहसो थाने के अलावा चंबल नदी में हुई। चंबल में अभिषेक चौबे अभिनीत सोन चिरैया नामक फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई। ‘इश्किया‘,‘डेड़ इश्किया’और‘उड़ता पंजाब’जैसी फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर अभिषेक चौबे की फिल्म पूरी तरह से चंबल पर आधारित है । सोन चिरैया नाम की यह फिल्म 1970 के दशक की है जब चंबल के बीहड़ों मे दुर्दांत डाकुओं का साम्राज्य हुआ करता था।

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