भाजपा बसपा का मुस्लिम प्रेम सपा के लिए खतरे की घंटी, क्या अखिलेश बचा पाएंगे अपना वोट बैंक ?

Edited By Imran,Updated: 20 Oct, 2022 05:35 PM

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लखनऊ: लोकसभा 2024 के चुनाव में अब 20 महीने से भी कम का समय बचा हुआ है। सभी पार्टियां अपने समीकरण सही करने में लगी हुई है। जहां भाजपा पसमांदा मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने के लिए पसमांदा सम्मेलन कर रही है।

लखनऊ: लोकसभा 2024 के चुनाव में अब 20 महीने से भी कम का समय बचा हुआ है। सभी पार्टियां अपने समीकरण सही करने में लगी हुई है। जहां भाजपा पसमांदा मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने के लिए पसमांदा सम्मेलन कर रही है। वहीं बसपा ने भी पश्चिमी यूपी के कद्दावर मुस्लिम नेता इमरान मसूद को अपनी पार्टी में शामिल करने के साथ ही उन्हें पश्चिमी यूपी का संयोजक बना कर मुसलमानों के बीच ये संदेश देने की कोशिश की है कि वो मुसलमानों के हक की बात करती है। अब देखने वाली बात ये है कि समाजवादी पार्टी अपने कोर वोट बैंक को कैसे बचाती है? क्या अखिलेश यादव अपने पिता की तरह मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बना पाएंगे या फिर वो अपना वोट बैंक गवा बैठेंगे।

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पश्चिम में इमरान का पाला बदलने से सपा का नुकसान तय

आपको बता दे कि नौ बार के सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री काजी रशीद मसूद के राजनीतिक उत्तराधिकारी कहे जाने वाले इमरान मसूद सहारनपुर की राजनीति की धुरी माने जाते हैं। वो सहारनपुर के साथ ही अगल बगल के जिलों में भी अपनी पहुंच रखते है। जब 2022 में इमरान कांग्रेस छोड़कर सपा में आए थे तो इसे सपा की बड़ी जीत मानी गई लेकिन सपा में खुद को ज्यादा तवज्जो न मिलता देख उन्होंने अपने साथियों के साथ 19 अक्टूबर को बसपा प्रमुख के सामने पार्टी की सदस्यता ले ली। आपको बता दे कि पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम गठबंधन को जीत की गारंटी मानी जाती है। 2014 के लोकसभा में इमरान जहां कांग्रेस के टिकट पर 4 लाख से ज्यादा वोट पाने में सफल हुए थे। वहीं 2019 में 2 लाख से ज्यादा वोट हासिल किया था। 2017  के विधानसभा चुनाव में जहां सपा का सहारनपुर में 1 विधायक था। वहीं इमरान का सपा में आ जाने के कारण 2022 में सपा के 2 विधायक हो गए। इसके साथ ही सपा सहारनपुर के हर विधानसभा सीट पर दूसरे नं0 पर रही।  

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जयंत की बढ़ेंगी मुश्किलें

जहां पश्चिमी यूपी में दलित मुस्लिम गठबंधन को जीत की गारंटी मानी जाती है। वहीं कुछ जिलों में जाट-मुस्लिम गठबंधन भी अपने दम पर चुनाव जीताने का माद्दा रखते है। वहीं ये बदलाव मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर जिलों में रालोद का खेल बिगाड़ सकती है। रालोद का इस वक्त सपा के साथ गठबंधन है, तो इसका असर सपा पर भी पड़ेगा। जयंत चौधरी जहां अपने दादा किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे है, वहीं उनके सामने जाट-मुस्लिम गठजोड़ को भी बचा कर रखने की जिम्मेदारी भी है।

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भाजपा का मुस्लिम प्रेम

जहां एक तरफ केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा अपने कोर वोट बैंक के साथ ही सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद के वोट बैंक में सेंध लगाकर सफलता हासिल कर चुकी है. वहीं वो अभी भी मुसलमानों के बीच अपनी पैठ नहीं बना पाई है. यूपी में करीब 20% मुस्लिमों की आबादी है और वो पिछले कई चुनावों 2012, 2014,2017,2019,2022 में सपा के साथ खड़ा है। 2022 के चुनावों में तो सपा को सबसे ज्यादा 85% वोट गाजियाबाद से गाजीपुर तक मुसलमानों ने दिया था। इस बात को ध्यान में रखकर भाजपा ने अपना नया दांव चलते हुए मुसलमानों की छोटी जातियों जिसको पसमांदा मुस्लिम कहते है। उनको साधने के लिए पसमांदा सम्मेलन कर रही है। जिसमें यूपी के दोनों डिप्टी सीएम शामिल होकर भाजपा के साथ जुड़ने का आग्रह भी कर चुके है।

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सपा से मुसलमानों की बढ़ती दूरी

यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कई बड़े मुस्लिम नेता सपा के साथ आए पर उनकी घर वापसी हो रही है। बसपा से सपा में आए शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने फिर घर वापसी कर ली है। मुरादाबाद में इकराम कुरैशी, रिजवान, उतरौला में पूर्व विधायक आरिफ अनवर, फिरोजाबाद में पूर्व विधायक अजीम जैसे तमाम इलाकों के कद्दावर मुस्लिम चेहरों ने पार्टी छोड़ी है। अगर सपा से मुस्लिम नेता ऐसे ही जाते रहे तो अखिलेश यादव को अपने वोट बैंक को बचाने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

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