Edited By Ajay kumar,Updated: 30 Apr, 2024 03:52 PM
बहुजन समाज पार्टी जिसे लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने के कारण बड़ी चुनौती नहीं माना जा रहा था,जैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ रहा है, दो दर्जन सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष में आकर कहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन तो कहीं भाजपा के लिए...
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी जिसे लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने के कारण बड़ी चुनौती नहीं माना जा रहा था,जैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ रहा है, दो दर्जन सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष में आकर कहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन तो कहीं भाजपा के लिए जीत की राह में कांटे बिछाती बनती नजर आ रही है। प्रत्याशी चयन में चतुराई दिखाते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के ऊपर पिछले विधानसभा चुनाव में लगा भाजपा को कथित मौन समर्थन का दाग धोने के साथ ही अपने भतीजे और पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद के लिए एक ऐसी खुली जमीन तैयार कर दी है, जहां से बसपा एक बार फिर मजबूत वोट बैंक की नई उड़ान भर सकती है।
अकेले लोकसभा चुनाव में उतरने के मायावती
बीते चार दशक में अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही बसपा के अकेले लोकसभा चुनाव में उतरने के मायावती के फैसले का निहितार्थ अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है। पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन करके 10 लोकसभा सीटें जीती थीं, लेकिन इनमें से ज्यादातर साथ छोड़ गए हैं। विधान सभा चुनाव में पार्टी का वोट बैंक धड़ाम हो गया था। 2017 के विधान सभा चुनाव में जहां बसपा को 22.23 फीसदी वोट मिले थे, वहीं 2022 में यह आंकड़ा घटकर 12.88 पर आ गया था। वोट शेयर में लगभग 10 फीसदी वोटों की भारी गिरावट के साथ पार्टी सिर्फ एक सीट पर सिमट गई थी। यही वह वजह थी, जिसने बसपा सुप्रीमो को नए सिरे से रणनीति बनाने के लिए मजबूर किया। लोकसभा चुनाव में अभी तक बसपा ने ही सबसे ज्यादा मुस्लिम वर्ग को टिकट दिए हैं। पार्टी अब तक 20 से अधिक मुस्लिम प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। बसपा के इन मुस्लिम उम्मीदवारों ने सपा और कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशियों की मुश्किल बढ़ा दी है। माना जा रहा कि बसपा के इस कदम से मुस्लिम वोट बंटने पर भाजपा प्रत्याशी को फायदा हो सकता है। लेकिन बसपा की अपनी रणनीति है, वह अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है,इसलिए अपने प्रत्याशी को जीत की संभावना के साथ टिकट दिए हैं। पार्टी का मानना है कि मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव जीत नहीं पाए तो भी अच्छा प्रदर्शन करके वोट प्रतिशत बढ़ाने में सहायक होंगे। इसी रणनीति के चलते ही बसपा ने दलित समुदाय को प्रतिनिधित्व देने के साथ 18 सवर्ण और 16 ओबीसी प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। बसपा के मुस्लिम और सवर्ण प्रत्याशी पश्चिम उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवारों की चुनौती कमजोर करते नजर आए, तो कहीं-कहीं भाजपा के लिए परेशानी का सबब बने।
कई सीटों पर बसपा ने सपा-कांग्रेस गठबंधन की बढ़ाई मुश्किलें
जौनपुर, मेरठ, मैनपुरी, बस्ती, बंदायू, आजमगढ़ समेत जैसी सीटों पर बसपा ने सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ साथ भाजपा की राह भी मुश्किल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को आजमगढ़ से उतरकर बसपा ने भाजपा और सपा दोनों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। बस्ती में भाजपा ने अपने मौजूदा स सांसद हरीश द्विवेदी को फिर टिकटक दिया है, तो यहां बसपा ने ब्राह्मणस समाज के ही दयाशंकर मिश्र को ज टिकट देकर भाजपा की राह में च कांटे बिछा दिए हैं। मैनपुरी में भ प्रत्याशी बदलकर यादव उम्मीदवार स उतारकर डिंपल यादव की परेशानी बढ़ा दी है।
पिछले 3 लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन
2009 लोकसभा चुनाव में बसपा को 27.42 प्रतिशत वोट के साथ 20 सीटें मिली थी। इसके बाद साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उसे सबसे बड़ा झटका लगा। 19.77 प्रतिशत वोट के बावजूद उसे एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद बसपा ने सपा के साथ गछठबंधन कर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा। पार्टी को 10 सीटें मिलीं। बसपा को फायदा तो हुआ लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया। इस बार वह अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं।