Edited By Mamta Yadav,Updated: 27 Jan, 2025 04:09 PM
बिलासपुर तहसील के पजावा गांव के प्राथमिक स्कूल में बच्चों के लिए खाना पकाने वाली 57 वर्षीय रसोईया को 49 साल बाद आखिर अपना घर परिवार मिल ही गया। यह सब स्कूल की प्रधानाध्यापक की कोशिशों के चलते हुआ जब उन्होंने बूढ़ी रसोईया से उसके परिवार से बिछड़ने की...
Rampur News, (रवि शंकर): बिलासपुर तहसील के पजावा गांव के प्राथमिक स्कूल में बच्चों के लिए खाना पकाने वाली 57 वर्षीय रसोईया को 49 साल बाद आखिर अपना घर परिवार मिल ही गया। यह सब स्कूल की प्रधानाध्यापक की कोशिशों के चलते हुआ जब उन्होंने बूढ़ी रसोईया से उसके परिवार से बिछड़ने की दुख भरी कहानी सुनी। दुख भरी दास्तां सुनकर लोग अक्सर अफसोस तो करते हैं लेकिन मदद के लिए आगे नहीं आते पर स्कूल की प्रधानाध्यापिका ने मन ही मन में यह ठान लिया कि वह इस 49 साल पहले मेले में खोई हुई 8 वर्षीय बच्ची जो कि अब 57 वर्षीय बूढी रसोईया है उसे अपने घर परिवार से मिलाएंगी।
जानिए पूरा मामला
दरअसल, सन 1975 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले से एक बच्ची जिसकी उम्र उस समय महज 8 वर्ष थी। वह अपने परिवार के साथ मुरादाबाद में मेला देखने गई थी, जहां भाई बहनों के साथ खेलते खेलते वह कहीं गुम हो गई। तब से लेकर आज तक वह महिला अपने परिवार से मिलने की तमाम कोशिश करती रही, लेकिन उसकी हर कोशिश नाकाम रही। पजावा गांव के स्कूल की प्रधानाध्यापिका और आजमगढ़ पुलिस की सूझबूझ के चलते आज 49 साल पहले अपने परिवार से बिछड़ी वह बच्ची जो कि अब महिला हो चुकी है, वह अपने प्रिय जनों से अपने भाई बहन से अपने मां-बाप से मिलने में कामयाब हो सकी।
भावुक कर देगी बचपन की कहानी
49 वर्ष पूर्व घर से लापता हुई फूला देवी ने बताया कि आज जिस तरह से पुलिस प्रशासन और आप लोगों के सहयोग से परिजनों से मुलाकात हुई है निश्चित रूप से मैं बहुत खुश हूं। फूला देवी ने बताया कि जब मैं नाबालिक थी, तो एक बुजुर्ग व्यक्ति लालच देकर हमें अपने साथ मुरादाबाद के सहसपुर गांव लेकर गए थे। जहां से हमें दोबारा रामपुर जिले में बेच दिया गया। जिसने हमें गोद लिया था उसी ने हमें रखा था उसी ने हमारी शादी की थी। जिस स्कूल में मैं काम करती थी। वहां की मैडम से हमने इस बारे में जानकारी दी, तो मैडम ने इस बारे में आजमगढ़ के पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया। जिसके बाद हम अपने परिवार से मिल सके हैं। मैडम ने मुझसे पूछा था कि आंटी तुम कहां की रहने वाली हो तो हमने उन्हें बताया था कि हमारा जिला आजमगढ़ लगता है। तो उन्होंने अपने भाई से जानकारी निकलवाई है। मुझे पहले का कुआं याद था और मामा का नाम याद था और भाई का नाम याद था और गांव का नाम छुटीदार था। वहीं से हमारी खोज निकाली है अब तो सब परिवार हमारा मिल गया, 49 साल के बाद परिवार मिला है फिर हैं आजमगढ़ गए और एक महीने रहकर आए हैं बहुत अच्छा लग रहा था पूरा परिवार अच्छा है। जहां हमारी जन्मभूमि मिल गई तो वहां अच्छा नहीं लगेगा, बिछड़े हुए लोग मिल गए तो अच्छा ही लगेगा।
इतना लंबा समय आपका कैसे गुजरा?
पीड़ित फूलवती ने बताया कि ऐसी ही गुजरा जैसे मलिक ने गुजरवाया। मैडम का योगदान रहा, मैडम स्कूल में पढ़ाती हैं। उन तक बात ऐसे पहुंची मैं वहां खाना बनाती थी मैं वहां पर रसोईया थी मुझे वहां पर 15 साल हो गए हैं उन्होंने मुझसे पूछा था की आंटी आप कहीं नहीं जाती हो तुम एक ही ठिकाने पर क्यों हो, तुम छुट्टी भी नहीं लेती हो तो। मैंने उनसे कहा कि दीदी मैं कहां पर जाऊं मेरी कहीं जाने की जगह नहीं है तब यह कहानी उन्होंने आगे बढ़ाई है तो उनके भाई पोस्टिंग पर थे तो मैडम ने उनसे खबर निकलवाई।
प्राथमिक विद्यालय पजावा में प्रधान अध्यापक के पद पर नियुक्त डॉक्टर पूजा रानी ने बताया आंटी यहां पर रसोईया के पद पर कार्यरत थी। मैं यहां 2016 में आई हूं तब से उनसे मुलाकात हुई है अभी कुछ टाइम पहले ही हमारी उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया क्योंकि सभी लोग छुट्टियों पर जाते थे हमारे और रसोईया भी कहीं ना कहीं जाते थे तो हम उनसे पूछते थे तो वह कहती थी कि हम कहां जाएंगे हम तो अकेले हैं अनाथ हैं। फिर दादी ने अपनी आपबीती बताई तो हमने यह ठान लिया कि उनसे परिवार से मिलाऊंगी, जो आज सच हो गया। मुझे तो आज भी सपना ही लग रहा है जैसे हम मूवी में देखते हैं बजरंगी भाईजान में मुन्नी को मिलवाया था। ऐसे ही मुझे बहुत अच्छा लगा हमें कभी नहीं लगा था कि हम आंटी को उनके परिवार से मिलवा पाएंगे। अब आंटी खुश रहे और स्वस्थ रहें बस यही चाहते हैं।
प्रधान पुत्र सिपते हसन ने बताया कि यह ग्राम पजावा माजरा रायपुर का है। यहां एक महिला थी स्कूल में रसोई थी वहां कई साल से कम कर रही थी। वह एक दिन जिक्र कर बैठी मैं 8 साल की थी और कहीं मिले में गुम हो गई थी और फिर हमारी मैडम ने काफी प्रयास किया। इनका तो अपना गांव याद था छोटी धार और एक कुआं याद था तो मैडम ने अपने भाई से बात की और उन्होंने प्रशासन की भी मदद ली और प्रशासन की मदद से उन्हें अपना भाई और परिवार मिल गया वह जिला आजमगढ़ था यह 49 साल बाद अपने परिवार से मिली है काफी खुशी है उन्हें हमें भी अच्छा लगा और पूरे गांव वालों को भी अच्छा लगा।