Edited By Pooja Gill,Updated: 12 Oct, 2024 02:55 PM

Meerut News: आज पूरे देश में दशहरे का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दौरान कई शहरों में रावण के विशाल पुतले जलाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं...
Meerut News: आज पूरे देश में दशहरे का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दौरान कई शहरों में रावण के विशाल पुतले जलाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक ऐसा गांव भी है, जहां दशहरे पर मातम का माहौल होता है? इस गांव में दशहरे के दिन किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता, न हीं रावण दहन होता है और न ही कोई मेला लगता है।
जानिए क्यों होता है मातम का माहौल
आप सोच सकते हैं कि क्या इस गांव के लोग रावण से कोई सहानुभूति रखते हैं? लेकिन ऐसा नहीं है। 166 साल पहले तक यहां भी दशहरा धूमधाम से मनाया जाता था। लेकिन उस समय ऐसा क्या हुआ, जिसने गांव वालों को दशहरा मनाना बंद करने पर मजबूर कर दिया? इस गांव की आबादी लगभग 18 हजार है और दशहरे के दिन कोई भी यहां खुश नहीं होता। दरअसल, मेरठ जिले के गगोल गांव की यह कहानी दशहरे के दिन की है। यह गांव शहर से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर स्थित है और यहां की आबादी लगभग 18 हजार है। दशहरे पर गांव के लोग चाहे वे बच्चे हों या बुजुर्ग, सभी दुखी हो जाते हैं। इसका कारण है 9 लोगों की मौत, जो 166 साल पहले इसी दिन हुई थी।
गांव के लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ गई थी घटना
आपने 1857 की क्रांति के बारे में सुना होगा, जो अंग्रेजी शासन को चुनौती देने वाली पहली बड़ी क्रांति थी। इस क्रांति के दौरान रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब और बेगम हजरत महल जैसे कई नेताओं ने अंग्रेजों का सामना किया। इस क्रांति की शुरुआत मेरठ से ही हुई थी। गगोल गांव के 9 लोगों को दशहरे के दिन ही अंग्रेजों ने फांसी दी थी। यह घटना गांव के लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ गई।