'जब जल छिड़ककर कर दिया पवित्र, फिर कथा क्यों नहीं सुनी?' – इटावा कांड पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का तीखा तंज

Edited By Anil Kapoor,Updated: 27 Jun, 2025 10:04 AM

shankaracharya avimukteshwarananda s sharp taunt on etawah incident

Varanasi News: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचक मुकुटमणि और उनके सहयोगी संत कुमार के साथ जाति पूछकर की गई अभद्रता और मारपीट का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। इस मुद्दे पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने लगातार दूसरे दिन अपनी...

Varanasi News: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचक मुकुटमणि और उनके सहयोगी संत कुमार के साथ जाति पूछकर की गई अभद्रता और मारपीट का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। इस मुद्दे पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने लगातार दूसरे दिन अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने साफ कहा कि इस मामले को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए, बल्कि दोषियों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

जल या मूत्र छिड़कने का सवाल – क्या मकसद था?
शंकराचार्य ने कहा कि अगर कथावाचकों पर जल या मूत्र छिड़का गया, तो सवाल यह है कि उसका असर क्या हुआ? अगर इससे वे 'पवित्र' हो गए तो फिर उनसे कथा क्यों नहीं सुनी गई? और अगर कोई असर नहीं हुआ, तो छिड़का क्यों गया?" उन्होंने कहा कि यह मानसिकता ही गलत है और इससे समाज में घृणा बढ़ती है। इसके साथ उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब कथावाचकों से मारपीट हुई और मामला सामने आया, तो तुरंत एफआईआर क्यों नहीं की गई? दोनों को उसी वक्त हिरासत में लेना चाहिए था। अब जब जनता का दबाव पड़ा तो एफआईआर दर्ज की गई।

आधार कार्ड और ब्राह्मण पहचान का मुद्दा
शंकराचार्य ने यह भी बताया कि गांव वालों को कथावाचकों की जाति को लेकर संदेह तब हुआ जब उन्होंने मंत्रों का उच्चारण गलत तरीके से किया। जांच में कथित तौर पर उनके पास दो2 आधार कार्ड पाए गए, जिससे विवाद और बढ़ गया। उन्होंने खुद को ‘पंडित’ बताया था, लेकिन असल में ब्राह्मण नहीं निकले। शंकराचार्य ने इसे ‘धोखा’ करार दिया। शंकराचार्य ने कहा कि भले ही कथावाचकों ने गलत जानकारी दी हो, लेकिन गांव वालों को हिंसा नहीं करनी चाहिए थी। "दोनों पक्षों की गलती है, लेकिन दोनों क्षम्य हैं। हमें इस मुद्दे पर नफरत नहीं फैलानी चाहिए, बल्कि शांति बनाए रखनी चाहिए।

राजनीति से बचें, दोषियों को सजा दें
उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक नेता इस मुद्दे को भुना रहे हैं और इसे जातीय टकराव का रूप दे रहे हैं। "दोनों जातियों को आमने-सामने खड़ा करना और खुद का फायदा निकालना भी एक अपराध है। उन्होंने जाट रेजिमेंट की पुलिस और यादव महासभा के बीच टकराव की खबरों पर कहा कि अगर कोई इस घटना को लेकर समाज में नफरत फैलाने की कोशिश कर रहा है, तो उसे भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए।

क्या कोई भी जाति का व्यक्ति कथावाचक हो सकता है?
इस सवाल पर शंकराचार्य ने संतुलित राय दी। उन्होंने कहा कि जो कहते हैं कि केवल ब्राह्मण ही कथा कर सकते हैं, वो गलत नहीं हैं क्योंकि उनके पास भी परंपरा और शास्त्रों का आधार है। लेकिन जो दूसरी जातियों के कथावाचकों को भी स्वीकार करते हैं, वह भी एक विचार है। समाज के नेताओं को इन दोनों विचारों के बीच संतुलन बनाना चाहिए।

पिटे लोगों को सम्मान देना गलत परंपरा
शंकराचार्य ने यह भी कहा कि पहली बार उन्होंने देखा कि किसी को पीटने के बाद लोग उसे शॉल उड़ाकर सम्मानित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा समाज ऐसा नहीं है। अगर किसी के साथ अन्याय हुआ है तो सहानुभूति होनी चाहिए, लेकिन उसका सम्मान करना एक नई और गलत परंपरा है।
 

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