सरदार जाफरी पुण्यतिथिः आवारा है गलियो में मै और मेरी तन्हाई, जाएं तो कहां जाएं हर मोड़ पर रूसवाई

Edited By Ajay kumar,Updated: 31 Jul, 2020 02:18 PM

if you go where should you go on every mode jafri

‘‘आवारा है गलियो में मै और मेरी तन्हाई 'जाएं तो कहां जाएं हर मोड पर रूसवाई' जैसी बेमिशाल शायरी लिखने वाले मशहूर शायर और देश के सबसे बडे साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित अली सरदार जाफरी ने इन पंक्तियों को लिखते वक्त यह नही सोचा होगा कि उनके...

बलरामपुर: ‘आवारा है गलियो में मै और मेरी तन्हाई 'जाएं तो कहां जाएं हर मोड पर रूसवाई, जैसी बेमिशाल शायरी लिखने वाले मशहूर शायर और देश के सबसे बडे साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित अली सरदार जाफरी ने इन पंक्तियों को लिखते वक्त यह नही सोचा होगा कि उनके इन्तकाल के बाद वह खुद इसकी मिशाल बन जायेगे। साहित्य को पूरा जीवन समर्पित करने वाले अली सरदार जाफरी का पैतृक आवास देखभाल के आभाव मे धूल फाक रहा है। जहाँ कभी नशिस्तो और मुशायरो की महफिले सजती थी आज वहाँ वीरानी पसरी हुई है।    

‘एशिया जाग उठा' और ‘अमन का सितारा' समेत अनेक कृतियों से हिन्दी-उर्दू साहित्य को समृद्ध बनाने वाले अली सरदार जाफरी का नाम उर्दू अदब के महानतम शायरों में शुमार किया जाता है। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में जन्मे अली सरदार जाफरी साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पाने वाले देश के तीसरी ऐसे अदीब (साहित्यकार) है जिन्हें उर्दू साहित्य के लिए इस पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।स्वर्गीय जाफरी एक अगस्त, 2000 में दुनिया को अलविदा कह गये।    

अली सरदार जाफरी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों की यातनाएं झेलीं तो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर जेल का सफर किया,आवाज लगाकर अखबार बेचा तो नजर बंद किये गये। अपने साहित्यिक सफर की शुरुआत शायरी से नहीं बल्कि कथा लेखन से किया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी अली सरदार जाफरी का जन्म 29 नवम्बर सन 1913 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के बलुहा मोहल्ले में हुआ था। जाफरी साहब की कोठी के नाम से मशहूर उनका पैतृक आवास देखभाल के आभाव मे धूल फांक रहा है। जहाँ कभी नशिस्तो व मुशायरो की महफिले सजती थी आज वहा वीरानी पसरी हुई है। शुरुआत में उन पर जिगर मुरादाबादी, जोश मलीहाबादी और फिराक गोरखपुरी जैसे शायरों का प्रभाव पडा। जाफरी ने 1933 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और इसी दौरान वे कम्युनिस्ट विचारधारा के संपर्क में आए। उन्हें 1936 मेंअलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। बाद में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूरी की।

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