राष्ट्रीय क्लीन गंगा मिशन पर हाईकोर्ट की टिप्पणी, कहा- गंगा की सफाई सिर्फ धोखा, केवल पैसा बांट रहा है मिशन

Edited By Pooja Gill,Updated: 27 Sep, 2022 12:24 PM

high court s comment on national clean ganga mission

राष्ट्रीय क्लीन गंगा मिशन की शुरुआत 2014 में गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए की गई थी। यह मिशन मूल रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम मिशन भी हैं। परियोजना में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा कायाकल्प...

प्रयागराजः राष्ट्रीय क्लीन गंगा मिशन की शुरुआत 2014 में गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए की गई थी। यह मिशन मूल रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम मिशन भी हैं। परियोजना में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा कायाकल्प शामिल हुए। मां गंगा की सफाई करने के लिए 237 करोड़ का बजट पास हुआ, लेकिन 8 साल बाद भी जमीनी काम दिखाई नहीं दिया तो हाई कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा और कहा कि, गंगा की सफाई मिशन सिर्फ एक धोखा है। यह मिशन केवल पैसा बांटने की मशीन बनकर रह गया है।

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बता दें कि यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति एमके गुप्ता और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पूर्णपीठ एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की है। केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की तरफ से दाखिल हलफनामे में बताया गया कि, 2014-15 से 2021-22 के दौरान 11993.71 करोड़ विभिन्न विभागों को वितरित किए गए हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में निगरानी कमेटी गठित की गई है। प्रदेश में गंगा किनारे 13 शहरों में 35 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। 7 शहरों में 15 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का प्रस्ताव है। 95 फीसदी सीवेज का शोधन किया जा रहा है। एनएमसीजी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल निगम ग्रामीण एवं शहरी, नगर निगम प्रयागराज सहित कई विभागों की ओर से हलफनामे दाखिल किए गए।

कोर्ट के सवालों पर नहीं दिया गया साफ जवाब
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि दोषी लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की राज्य सरकार से अनुमति मांगी गई है। सरकारी कार्रवाई से कोर्ट संतुष्टि नहीं हुई। कोर्ट ने पूछा कि परियोजना पर कोई पर्यावरण इंजीनियर है या नहीं तो कोर्ट को बताया गया कि एनएमसीजी में काम कर रहे सारे अधिकारी पर्यावरण इंजीनियर ही हैं। उनकी सहमति के बिना कोई भी परियोजना पास नहीं होती है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि परियोजनाओं की निगरानी कैसे करते हैं, तो इसका साफ जवाब नहीं दिया गया। प्रयागराज नगर निगम की ओर से कोर्ट को बताया गया कि नालों की सफाई के लिए प्रतिमाह 44 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। इस पर कोर्ट ने हैरानी जताई और कहा कि कि साल भर में करोड़ों खर्च हो रहे हैं फिर भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है।

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सेंट्रल प्रदूषण बोर्ड अनुसार एसटीपी मानक अनुसार नहीं है
सेंट्रल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में भी यही बताया गया है कि, ज्यादातर एसटीपी ठीक से काम नहीं कर रही है और कुछ जो काम रहीं हैं, वो मानक के अनुसार नहीं है। कोर्ट ने पूछा कि गंगा में गिर रहे नालों के शोधन के लिए बॉयोरेमिडयल विधि को अपनाने के लिए किसने कहा है। इस पर बताया गया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर यह विधि प्रयोग में लाई गई। तो कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश की जानकारी मांगी तो सेंट्रल प्रदूषण बोर्ड इस पर कोई जवाब नहीं दिया।

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