इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- NGT के आदेशों के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य

Edited By Mamta Yadav,Updated: 25 Aug, 2023 01:20 AM

allahabad high court said writ petition against ngt orders is maintainable

उच्चतम न्यायालय द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय अधिवक्ता बार एसोसिएशन के मामले में निर्धारित किया गया है कि न्यायिक समीक्षा की हाईकोर्ट के शक्ति को एनजीटी अधिनियम की धारा 22 द्वारा बेदखल नहीं किया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और...

Prayagraj News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ याचिका सुनवाई योग्य है। अदालत ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय अधिवक्ता बार एसोसिएशन के मामले में निर्धारित किया गया है कि न्यायिक समीक्षा की हाईकोर्ट के शक्ति को एनजीटी अधिनियम की धारा 22 द्वारा बेदखल नहीं किया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने मैसर्स होटल द ग्रैंड तुलसी और 15 अन्य के मामले में दिया है।
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होटलों में कमरों की संख्या के आधार पर अंतरिम पर्यावरण मुआवजा लगाने का निर्देश
कोर्ट ने कहा कि एमसी मेहता बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार पर्यावरण और वन मंत्रालय ने भूजल प्रबंधन और विकास विनिमय और नियंत्रण के लिए केंद्रीय भूजल प्राधिकरण का गठन किया। 1999 में उद्योगों और परियोजनाओं द्वारा भूजल निकासी विनिमय के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र देने के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए थे। इस मामले में गाजियाबाद के कई होटलों द्वारा अवैध रूप से भूजल निकाले जाने को लेकर एनजीटी में अर्जी दाखिल की गई थी। इसमें कहा गया था कि क्षेत्र के अधिकांश होटन नगर निगम अधिकारियों से आवश्यक अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किए बिना भूजल का उपयोग कर रहे हैं। एनजीटी ने क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को होटलों में कमरों की संख्या के आधार पर अंतरिम पर्यावरण मुआवजा लगाने का निर्देश दिया।
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ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील का प्रावधान
होटल संचालकों (याचियों) ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि उन्हें सुने बिना भारी मुआवजे का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। याचियों ने उसे रद्द करने की मांग की थी। मामले में याचिका की पोषणीयता पर एक प्रारंभिक आपत्ति उठाई गई थी, जो ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील का प्रावधान करती है। याचियों के अधिवक्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत न्यायिक समीक्षा की शक्ति बुनियादी ढांचे का हिस्सा है। एनजीटी की धारा 22 के अस्तित्व के बावजूद न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रभावित नहीं है। हाईकोर्ट 226 के तहत कानून के अनुसार और मामले के तथ्यों के आधार पर अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है।

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