कब तक रहेगा कांग्रेस-सपा का साथ!

Edited By ,Updated: 20 Jan, 2017 11:28 AM

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अखिलेश और मुलायम सिंह के बीच चला द्वंद्व सियासी खेल था या फिर परिवार की कलह यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इस लड़ाई में अखिलेश न सिर्फ विजेता बने हैं...

लखनऊ: अखिलेश और मुलायम सिंह के बीच चला द्वंद्व सियासी खेल था या फिर परिवार की कलह यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इस लड़ाई में अखिलेश न सिर्फ विजेता बने हैं, बल्कि मुलायम की विरासत के इकलौते उत्तराधिकारी बन गए हैं। ऐसे में अब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच होने जा रहे गठबंधन को लेकर भी दोनों ही दलों के नेता काफी उम्मीदें लगाए हुए हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक पुराने अनुभवों को देखते हुए सवाल उठा रहे हैं।

राजनीति के चतुर खिलाड़ी है मुलायम सिंह यादव
जानकारी के अनुसार सवाल लाजिमी भी हैं क्योंकि पूर्व में भी सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ और हर बार राजनीति के चतुर खिलाड़ी मुलायम सिंह ने न सिर्फ कांग्रेस को झटका दिया बल्कि जबरदस्त सियासी फायदा भी उठाया। ऐसे में अब दो युवा नेता अखिलेश और राहुल गांधी ने जो सियासी सफर चुना है, उसकी मंजिल कहां है यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि मजबूरी में हो रहे इस गठबंधन से सपा राष्ट्रीय स्तर पर सियासी लाभ उठाने की पूरी कोशिश करेगी। यू.पी. का परिणाम चाहे जो भी हो लेकिन 2019 में सपा इस महागठबंधन की मोटी कीमत कांग्रेस को चुकाने के लिए विवश जरूर करेगी। ऐसे में क्या कांग्रेस यू.पी. के अपने अतीत को भुलाकर सपा और कांग्रेस लंबा सफर तय कर पाएंगी।

अयोध्या विवाद के समय सपा-कांग्रेस के बीच आई कड़वाहट
भले ही गठबंधन नई पीढ़ी के युवा नेता कर रहे हों लेकिन अयोध्या विवाद के समय सपा और कांग्रेस के बीच आई कड़वाहट को दोनों दलों के लिए भुला पाना आसान नहीं होगा। दरअसल राजीव गांधी के समय में अयोध्या में हुए शिलान्यास के बाद मुलायम सिंह ने कांग्रेस को निशाना बनाया था, वहीं बाबरी मस्जिद विध्वंस का पूरा ठीकरा केंद्र की नरसिंह राव सरकार पर फोड़कर खुद मुस्लिमों के मसीहा बन गए थे। यही नहीं यू.पी. की सियासत में मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम के नाम से भी पुकारा जाने लगा था। यही नहीं इसके बाद 1996 में कांग्रेस के साथ सपा के गठबंधन और मुलायम के रक्षा मंत्री बनने के बावजूद 1999 में वैकल्पिक सरकार बनाने को लेकर सोनिया और मुलायम के बीच दूरिया बढ़ गई थीं। दरअसल सोनिया की कोशिशों को उस समय मुलायम ने ही सबसे ज्यादा पलीता लगाया था। ऐसे में राहुल और अखिलेश दोनों को गठबंधन के साथ ही अतीत के इस बोझिल इतिहास को भुलाकर नए सिरे से शुरूआत करनी होगी।

मुस्लिम मतों को खोने का डर
कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर सपा ने हमेशा ही अतिरिक्त सतर्कता बरती है।  इसके पीछे वजह है कि मुलायम को हमेशा यह डर सताता रहा है कि कहीं मुस्लिम मतदाता कांग्रेस में वापस न लौट जाएं। इसके कारण कई बार सपा नेताओं ने कांग्रेस विरोधी बयान भी दिए हैं। ऐसे में गठबंधन के बाद भी अपने कैडर वोटों को बचाना अखिलेश के लिए भी  चुनौती होगी। साथ ही पारिवारिक लड़ाई जीतने के बावजूद मुलायम के पीछे चलने वाले मुस्लिमों को गठबंधन से जोडऩा भी अखिलेश व राहुल के लिए आसान नहीं होगा। दरअसल मायावती ने बड़ी संख्या में मुस्लिमों को टिकट देकर बड़ा दाव खेला है।

अखिलेश, राहुल सांझा करेंगे मंच
गठबंधन के साथ ही अखिलेश और राहुल के एक मंच से चुनाव प्रचार की चर्चाएं भी होने लगी हैं। गुलाम नबी आजाद ने मंगलवार को ही कहा है कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ रैलियां करेंगे। हालांकि सपा की तरफ से अभी तक इस तरह के कोई बयान सामने नहीं आए हैं। ऐसे में दोनों  नेताओं के मंच सांझा करने को लेकर भी स्थिति साफ नहीं हो सकी है। यही  नहीं  गठबंधन  की औपचारिक  घोषणा में भी  देरी  हो रही है। माना जा रहा है कि सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों दलों में पेच फंसा है।

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