कृष्ण जन्म भूमि का मुकदमा सुनवाई योग्य: हिंदू पक्ष में आया फैसला, अगली सुनवाई 12 अगस्त को करेगा इलाहाबाद हाई कोर्ट

Edited By Ramkesh,Updated: 01 Aug, 2024 03:17 PM

krishna janmabhoomi case is admissible for hearing verdict in favour

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह (मथुरा) मस्जिद कमेटी की आदेश 7 नियम 11 के तहत हिंदू उपासकों और देवता के मुकदमों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सभी 18 मुकदमों की स्थिति बरकरार रखी।

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह (मथुरा) मस्जिद कमेटी की आदेश 7 नियम 11 के तहत हिंदू उपासकों और देवता के मुकदमों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सभी 18 मुकदमों की स्थिति बरकरार रखी। मुस्लिम पक्ष ने पोषणीयता की याचिकाओं इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने  यह फैसला सुनाया है।

6 जून को हाईकोर्ट ने फैसले को रखा था सुरक्षित
दरअसल,  जस्टिस मयंक कुमार जैन ने 6 जून को मुकदमों की पोषणीयता के संबंध में मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल 18 याचिकाओं के खिलाफ शाही ईदगाह कमेटी ने हाईकोर्ट में सीपीसी के ऑर्डर 7, रूल 11 के तहत चुनौती दी थी।  वहीं मुस्लिम पक्ष के वकील ले कहा कि हम इस फैसले से खुश नहीं है। इसे फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मुख्य पक्षकार व भाजपा नेता मनीष यादव ने कहा कि यह फैसला हिन्दुओं के लिए गर्व का विषय है। हम इस फैसला का स्वागत करते है। 

शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की हिन्दू पक्ष ने की थी मांग
उल्लेखनीय है कि सुनवाई पूरी करके अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था सभी 18 मुकदमों में एक ही प्रार्थना है जिसमें मथुरा में कटरा केशव देव मंदिर के साथ 13.37 एकड़ के परिसर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। अतिरिक्त प्रार्थनाओं में शाही ईदगाह परिसर पर कब्ज़ा करने और मौजूदा ढांचे को गिराने की मांग की गई है।

मुकदमों में वादी भूमि के स्वामित्व का अधिकार मांग रहे हैं
मस्जिद समिति की ओर से अधिवक्त ने दलील दी कि हाईकोर्ट के समक्ष लंबित अधिकांश मुकदमों में वादी भूमि के स्वामित्व का अधिकार मांग रहे हैं, जो 1968 में श्री कृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन के बीच हुए समझौते का विषय था। जिसके तहत विवादित भूमि को विभाजित किया गया और दोनों समूहों को एक-दूसरे के क्षेत्रों (13.37 एकड़ के परिसर के भीतर) से दूर रहने को कहा गया।  हालांकि, ये मुकदमे कानून (उपासना स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम 1963 और विशिष्ट राहत अधिनियम 1963)  के तहत पोषणीय नहीं है।

शाही ईदगाह के नाम पर कोई संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नहीं: हिन्दू पक्ष का दावा
वहीं हिंदू पक्षकारों ने दलील दी कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है और उस पर अवैध कब्जा है। साथ ही कहा गया कि अगर उक्त संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वक्फ बोर्ड को बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की है। साथ ही दलील दी गई कि इस मामले में उपासना अधिनियम, परिसीमा अधिनियम और वक्फ अधिनियम लागू नहीं होते।

मूल वाद संख्या 6, 9, 16 और 18 (जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ शाही ईदगाह को हटाने की मांग की गई है) की स्वीकार्यता को चुनौती देते हुए,  मस्जिद के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वादी ने वाद में 1968 के समझौते को स्वीकार किया है और इस तथ्य को भी स्वीकार किया है कि भूमि (जहां ईदगाह बनी है) का कब्जा मस्जिद प्रबंधन के नियंत्रण में है और इसलिए यह वाद सीमा अधिनियम के साथ-साथ उपासना स्थल अधिनियम द्वारा भी वर्जित होगा।  क्योंकि वादों में इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया है कि संबंधित मस्जिद का निर्माण 1669-70 में हुआ था। उन्होंने कहा, " समझौता 1967 में किया गया था, जिसे मुकदमे में भी स्वीकार किया गया है, इसलिए, जब उन्होंने 2020 में मुकदमा दायर किया, तो इसे सीमा अधिनियम (3 वर्ष) द्वारा वर्जित किया जाएगा...भले ही यह मान लिया जाए कि मस्जिद का निर्माण 1969 में (समझौते के बाद) किया गया था, तब भी, अब मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता। क्योंकि इसे सीमा अधिनियम द्वारा वर्जित किया जाएगा। हालांकि इलाबाद हाई कोर्ट ने कि यह वाद सुनवाई योग्य है। अदालत ने इस वाद में मुद्दे तय करने के लिए 12 अगस्त की तिथि निर्धारित की।

 

 

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