Womens day: पढ़िए ‘वह तोड़ती पत्थर’ समेत महिलाओं पर आधारित बेहतरीन कविताएं

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 08 Mar, 2021 07:29 PM

womens day read the best poems based on women

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर चहुंओर महिलाओं के ही विषय में बात हो रही है। वास्तव में महिला पत्थर, लोहा और शक्ति है। वह जिससे टकराती है उसे चित्त करने की ताकत

यूपी डेस्कः आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर चहुंओर महिलाओं के ही विषय में बात हो रही है। वास्तव में महिला पत्थर, लोहा और शक्ति है। वह जिससे टकराती है उसे चित्त करने की ताकत भी रखती है। हिंदी साहित्य की कुछ अमर कविताएं महिला शक्ति को दर्शाती हैं। आइए पढ़ते हैं....महिलाओं पर आधारित रचनाएं।

1 सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की वह तोड़ती पत्थर
वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।

कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।

चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गई,
प्रायः हुई दुपहर :-
वह तोड़ती पत्थर।

देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।

एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
"मैं तोड़ती पत्थर।"

2. मैथलीशरण गुप्त की महाकाव्य रचना यशोधरा में उनकी दो लाइन औरत की पीड़ा को जताने के लिए काफी है-

अबला जीवन तेरी हाय यही कहानी !
आंचल में है दूध और आंखों में पानी

3. महादेवी वर्मा की - मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली!

मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली,

मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली !
मैं नीर भरी दुख की बदली

4. जयशंकर प्रसाद का कामायनी’ हिन्दी भाषा का एक ‘महाकाव्य’ और जयशंकर प्रसाद की अमर कृति है। यह आधुनिक छायावादी युग की सर्वोतम प्रतिनिधि काव्य है। 

“नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में,

पीयूस-स्त्रोत- सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में।

आँसू से भीगे अंचल पर मान का सब कुछ रखना होगा’

 तुमको अपनी स्मित रेखा से यह संधिपत्र लिखना होगा।”

5. मौलश्री त्रिपाठी- पता न चला
सूरज की पहली किरण कब लाल हो गई
पता न चला
और नन्हा सा तू कब बड़ा हो गया
पता न चला
ख्वाबों के पलने में तूझे झुलाया
जग-जग रात जो तुझे सुलाया
दू के निप्पल से कब तेरी लत छूट गई
पता न चला
शादी में तेरी वो धूम-धड़ाका
बाजे वो बाजे और खूब गरजा पटाखा
दूल्हा बना तू कब बाप बन गया
पता न चला
घर छोटा तुझे होने लगी दिक्कत
ईशारे पर ईशारे बदलती वो फिदरत
ममतामयी मां कब बोझ बन गई
पता न चला
अपनी हाथों में लेकर मेंरा हाथ
तुम चल दिए एक नई राह
अचरज में छिपी 'आह'
कब वृद्धाश्रम पहुंच गई
पता न चला
तेरी यादों के जो खोले पन्ने
सामने छा गए वो दिन पुराने
राह तकती आंखों से कब आंसू बह गए
हाय.....पता न चला
पता न चला

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