बसपा के ज्यादातर प्रत्याशियों की सूची तैयार: जिस जाति की संख्या भारी, उसी का बसपा प्रत्याशी

Edited By Ajay kumar,Updated: 13 Mar, 2024 08:20 PM

the bsp candidate belongs to the caste which has the largest number

राजग और इंडी गठबंधन से दूर बहुजन समाज पार्टी खामोशी से लोकसभा चुनाव में ताकत दिखाने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। पार्टी प्रमुख मायावती दलित समाज के साथ अन्य जातीय मतों के ध्रुवीकरण की सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले पर सीटें जीतने की गणित को महत्व दे रही...

लखनऊ: राजग और इंडी गठबंधन से दूर बहुजन समाज पार्टी खामोशी से लोकसभा चुनाव में ताकत दिखाने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। पार्टी प्रमुख मायावती दलित समाज के साथ अन्य जातीय मतों के ध्रुवीकरण की सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले पर सीटें जीतने की गणित को महत्व दे रही हैं। टिकट देने का सूत्र तय हुआ है कि जिस जाति की संख्या भारी, उसी का हो बसपा प्रत्याशी। पांच सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा में इसका साफ संदेश दिया गया है।

PunjabKesari

पार्टी क्षेत्रीय कोआर्डिनेटर के जरिए कर रही प्रत्याशियों की घोषणा
बसपा इसबार लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशियों की घोषणा मुख्यालय के बजाय क्षेत्रीय कोआर्डिनेटर के जरिए कर रही है। चुनाव प्रबंधन से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि प्रत्याशी चयन में बसपा किसी से पीछे नहीं है, बल्कि भाजपा और सपा के शोर-शराबे के साथ की जा रही घोषणाओं से इतर पार्टी सुप्रीमो मायावती एक-दो और पांच-दस सीटों की प्रत्याशियों का चयन कोआर्डिनेटरे का माध्यम से सामने ला रही है। हालांकि सूची लगभग सभी सीटों की तैयार है।

PunjabKesari

अन्य राज्यों में भी प्रत्याशी चयन को दिया जा रहा अंतिम रूप
यही नहीं पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश, बिहार आदि राज्यों में प्रत्याशी चयन को लगभग अंतिम रूप दिया जा चुका है। वैसे बसपा का काशीराम के जमाने में फार्मूला था कि सोशल इंजीनियरिंग के जरिए दलितों के साथ अन्य पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों को पार्टी से जोड़कर वोट बैंक बनाया जाए। मगर, बाद में मायावती ने ऐसे तमाम नेताओं को पहले शिखर तक पहुंचाया, फिर अलग-अलग आरोपों के सामने आने के साथ पर कतरने और बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया। इससे वोट बैंक छिटकते गए। इसका असर है कि उप्र. विधानसभा में एक मात्र विधायक वाली पार्टी बनकर रह गई है।

PunjabKesari

पुराने फार्मूले पर फिर हो रहा प्रत्याशियों का चयन
मायावती का एक दशक पहले विधानसभा और लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन के पीछे सबसे हिट गणित रही है कि इलाके में जिस जाति की संख्या ज्यादा हो, उसे टिकट देकर दलित वोट के समीकरण से सीट जीती जाए। मगर, इस कि जीत में निर्णायक की भूमिका तब सपा से बसपा में वोट करने वाले व मुसलमानों की ज्यादा संख्या का असर ज्यादा रहा है। साथ ही, अन्य पिछड़ी जातियों का झुकाव बसपा में था। एक दशक से मोदी मैजिक के दौर में ओबीसी जातियों का समीकरण सपा और बसपा दोनों से बिगड़ गया है। इस बार लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का झुकाव इंडी गठबंधन के साथ ज्यादा दिख रहा है। ऐसे में बसपा जाट लैंड में जाट प्रत्याशी और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रो में मुसलमानों को अब दिए गए टिकट से सपा और भाजपा दोनों को नुकसान पहुंचाती दिख रही है।

PunjabKesari

कन्नौज से अकील अहमद व बिजनौर से विजेंद्र चौधरी प्रत्याशी
बसपा ने मंगलवार को कन्नौज लोकसभा सीट से अकील अहमद पट्टा और बिजनौर से बिजेंद्र चौधरी को प्रत्याशी घोषित कर सपा और भाजपा को घेरने की कोशिश की है। इसके पहले दो दिन में चार और प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं, जो सभी मुस्लिम है। इनमें पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनीस अहमद फूल बाबू, अमरोहा से मुजाहिद हुसैन और मुरादाबाद से इरफान सैफी हैं। इससे अंदरखाने जहाँ भाजपा नेता खुश हैं तो वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन नेताओं की चिंता बढ़ गई है। 2014 में भी बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा था, जिसका फायदा भाजपा को मिला और मुरादाबाद मंडल की सभी छह सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि 2019 में बसपा-सपा के गठबंधन से मुकाबला करनें उत्तरी भाजपा मंडल में खाता भी नहीं खोल पाई थी।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!