ताज नगरी में ताज जितना खूबसूरत समाधी स्थल तैयार, बनने में लग गए 114 साल

Edited By Ruby,Updated: 29 Aug, 2018 02:02 PM

taj mahal in taj city is as beautiful as the taj mahal 114 years

आगरा का नाम लेते ही सबसे पहले ताजमहल की तस्वीर जहन में आती है, लेकिन अब ताजमहल की खूबसूरती को टक्कर देने के लिए स्वामीबाग का समाधि भवन भी बनकर लगभग तैयार हो गया है। राधास्वामी समाधि भवन यहां के दयाल बाग में स्थित है। बताया जा रहा है कि यह राधा...

आगराः आगरा का नाम लेते ही सबसे पहले ताजमहल की तस्वीर जहन में आती है, लेकिन अब ताजमहल की खूबसूरती को टक्कर देने के लिए स्वामीबाग का समाधि भवन भी बनकर लगभग तैयार हो गया है। राधास्वामी समाधि भवन यहां के दयाल बाग में स्थित है। बताया जा रहा है कि यह राधा स्वामी मत के संस्थापक पूरन धनी स्वामी जी महाराज की समाधि है। समाधि भवन बनने की शुरुआत 1904 में हुई थी। इसको बनाने में 114 साल का समय लगा। यहां करीब 300 मजदूर लगातार काम कर रहे हैं। अधिकांश मजदूरों की यहां चौथी पीढ़ी भी काम में जुटी है। 

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समाधि भवन में काम करने वाले कारीगरों ने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है। संगमरमरी पत्थरों पर बिना मशीनों के हाथों से किया गया काम बोलता-सा नजर आता है। दीवारों पर बने अंगूर के गुच्छे, गुलाब के फूल, पेड़ों व पत्तियों के डिजाइन, कंगूरे ऐसे लगते हैं, जैसे मानव नहीं प्रकृति ने ही उनकी रचना की हो। आगरा के किसी भी स्मारक में इतनी सुंदर कार्विग देखने को नहीं मिलती है। वह यहां सेवा करने को अपना परम सौभाग्य मानते हैं। 

समाधि में गुंबद का काम लगभग पूरा हो चुका है। उसके शीर्ष पर कमल की आकृति वाला कलश भी लगाया जा चुका है। समाधि पर लगाया गया कलश करीब साढे़ पांच टन स्टील और कॉपर से बनाया गया है। इसके ऊपर छह माइक्रोन का सोने का पत्तर चढ़ाया गया है। इसमें करीब 16.5 किग्रा सोने का इस्तेमाल किया गया है। समाधि की अन्य बुर्जियों, मीनारों पर लगी सुर्रियों पर करीब तीन किग्रा सोने का पत्तर चढ़ाया गया है। 

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बता दें कि समाध जमीन से 192.4 फुट ऊंची है। इसके 161 फुट ऊंचे गुंबद पर 31.4 फुट ऊंचा कलश लगाया गया है। यह कलश सात हिस्सों में बनाया गया है। समाध के चारों कोनों पर बनीं मीनारें 121.3 फुट ऊंची हैं। इस समाधि स्थल के बन जाने पर राधा स्वामी सत्संग सभा इस वर्ष 200 शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। जिसमें करीब 25 हजार अनुयायी शामिल होंगे। महराज जी के जीवनकाल में उनके सानिध्य में रहने वाले लोग आत्मीय सुख का अनुभव करते थे। अब लोग उसी सुख और मानसिक शांति का अनुभव इस दिव्य और भव्य समाधि स्थल में आकर करते हैं। इसको बनाने का खर्च भी उनके अनुयायियों ने ही उठाया है। 

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