Edited By Ramkesh,Updated: 13 Jun, 2024 03:09 PM
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि एक बार अदालत किसी अपराध को संज्ञान में ले लेती है तो पुलिस ‘मजिस्ट्रेट' की अनुमति के बगैर आगे की जांच नहीं कर सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि पुनः जांच का अधिकार सभी रैंक के अधिकारियों सहित पुलिस के पास...
प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि एक बार अदालत किसी अपराध को संज्ञान में ले लेती है तो पुलिस ‘मजिस्ट्रेट' की अनुमति के बगैर आगे की जांच नहीं कर सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि पुनः जांच का अधिकार सभी रैंक के अधिकारियों सहित पुलिस के पास उपलब्ध नहीं है। नवनीत नामक एक व्यक्ति की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जे जे मुनीर और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने गौतम बुद्ध नगर के पुलिस उपायुक्त (सेंट्रल नोएडा) को जवाबी हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा कि उन्होंने न्यायिक मजिस्ट्रेट से अनुमति लिए बगैर आगे की जांच का निर्देश देने का कैसे सोचा।
अदालत ने जांच अधिकारी राधा रमण सिंह को भी यह स्पष्टीकरण देने को कहा कि आगे जांच की आड़ में वह कैसे पुनः जांच कर सकते थे और इस मामले में अंतिम रिपोर्ट लगा सकते थे, जबकि पूर्व में पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया था जिसे उच्च न्यायालय ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत किए गए आवेदन में पारित निर्णय में मंजूर किया था। यह मामला 2018 का है जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ गौतम बुद्ध नगर के फेज तीन थाने में भादंसं की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120-बी (आपराधिक षड़यंत्र) और अन्य धाराओं के तहत मुकदमा पंजीकृत किया गया था।
पुलिस ने जांच के बाद 10 जुलाई, 2018 को अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था जिसे न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 18 जुलाई, 2018 को संज्ञान में लिया था। बाद में इस आरोप पत्र और इसके संज्ञान के आदेश को सात मार्च, 2024 को उच्च न्यायालय द्वारा भी सही ठहराया गया। इसके बाद, गौतम बुद्ध नगर के पुलिस उपायुक्त ने चार अप्रैल, 2024 को उक्त मामले की पुनः जांच का निर्देश दिया। अदालत ने सात जून, 2024 को पारित आदेश में निर्देश दिया कि इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई उत्पीड़न की कार्रवाई नहीं की जाएगी।