आदिशक्ति पीठ लेहड़ा देवी मंदिर में उमड़ा जन सैलाब, दूर-दूर से पहुंचे भक्त

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 22 Mar, 2023 03:33 PM

people thronged the adishakti peeth lehda devi temple

उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में आदिशक्ति पीठ लेहड़ा देवी मंदिर में नवरात्र के पहले दिन भारी जनसैलाब उमड़ रहा है। जिले के पश्चिमी छोर पर फरेंदा तहसील मुख्यालय से आठ किमी दूरी पर स्थित लेहड़ा देवी का मंदि...

महाराजगंज: उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में आदिशक्ति पीठ लेहड़ा देवी मंदिर में नवरात्र के पहले दिन भारी जनसैलाब उमड़ रहा है। जिले के पश्चिमी छोर पर फरेंदा तहसील मुख्यालय से आठ किमी दूरी पर स्थित लेहड़ा देवी का मंदिर लोगों के आस्था का केंद्र है। मां के दरबार में भक्त दूर-दूर से दर्शन के लिए पहुंचते है। भक्तो का तांता लगा रहता है। मां लेहड़ा देवी के दर्शन के लिए, पड़ोसी मुल्क नेपाल से भी भक्त आते हैं। मां के दर्शन के लिए वही गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, समेत कई अन्य जनपदों से भी नवरात्रि में मां लेहड़ा देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालु लाखों की संख्या में आते हैं । वैसे तो यहां पूरे वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन आज चैत्र नवरात्रि का पहला दिन लेहड़ा देवी मंदिर में श्रद्धा का जन सैलाब उमड़ पड़ता है।
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के समय की थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने इसी स्थान पर यक्ष के प्रश्नों का सही उत्तर देकर अपने चारों भाइयों को पुनर्जीवित किया था। बाद में पांचों भाइयों ने यहां पीठ की स्थापना कर पूजा अर्चना प्रारम्भ की। एक अन्य कथा के अनुसार देवी अपने मूल स्थान से प्रतिदिन नदी पार कर पौहारी बाबा के दर्शन के लिए जाती थीं। एक दिन नाविक की नीयत पाप से ग्रस्त हो गई। नाव जैसे ही धारा में पहुंची, मां ने नाविक को अपने विकराल रूप का दर्शन कराया। मां के कोप से नाविक सहित नाव जल में विलीन हो गई। ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करें तो चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में इस देवी स्थल का उल्लेख किया है।  
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उपलब्ध बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार गौतम बुद्ध की माता माया देवी कोलिय गणराज्य की कन्या थीं। ऐसे में बुद्ध का बाल्यकाल इन्हीं क्षेत्रों में व्यतीत हुआ। क्षेत्र के बड़े बुजुर्गो की मानें तो एक दिन लेहड़ा स्थित सैन्य छावनी के अधिकारी (लगड़ा साहब)शिकार खेलते हुए मंदिर परिसर में पहुंच गए। यहां पर भक्तों की भीड़ देख कर उन्होंने देवी की पिंडी पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। कुछ ही देर में वहां खून की धारा बहने लगी। खून देख कर भयभीत अंग्रेज अफसर वापस कोठी की तरफ आ रहे थे कि घोड़े सहित उनकी मृत्यु हो गई। उस अंग्रेज अफसर की कब्र मंदिर के एक किमी पश्चिम में स्थित है।

इस घटना के बाद लोगों की आस्था लेहड़ा देवी के प्रति और बढ़ गई। लेहड़ा देवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन तपस्थली है। इस जगह पर कई साधु-संतों की समाधियां हैं। इन्हीं साधु योगियों में एक प्रसिद्ध बाबा वंशीधर थे। बाबा वंशीधर एक सिद्ध योगी के रूप में प्रसिद्ध रहे। वह अपने योग बल से कई चमत्कार और लोक-कल्याण के कार्य किए थे। बाबा की शक्ति और भक्ति से कई वन्य जीव जन्तु उनकी आज्ञा को मानने के लिए तैयार हो जाते थे। माना जाता है कि एक बार बाबा वंशीधर ने अपनी शक्तियों से एक शेर और मगरमच्छ को शाकाहारी जीव बना दिया था। 

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