मरदान साहब मजारः जहां के रोजे में लगे खंभों की कोई नहीं कर सकता गिनती

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 26 Sep, 2020 06:16 PM

mardan sahab mazar no one can count the pillars in the fasting

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर स्थित जखनिया तहसील क्षेत्र में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं। इस क्षेत्र में सैकड़ों वर्ष प्राचीन सिद्धपीठ हथियाराम मठ, सिद्धपीठ

गाजीपुरः उत्तर प्रदेश के गाजीपुर स्थित जखनिया तहसील क्षेत्र में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं। इस क्षेत्र में सैकड़ों वर्ष प्राचीन सिद्धपीठ हथियाराम मठ, सिद्धपीठ भुड़कुड़ा मठ विश्वविख्यात संतों की तपोस्थली, महाभारत कालीन ऐतिहासिक टड़वा भवानी मंदिर, राष्ट्रीय किसान चिंतक स्वामी सहजानंद सरस्वती की जन्मस्थली के साथ ही सेना के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित परमवीर चक्र विजेता शहीद वीर अब्दुल हमीद व सेना के दूसरे सर्वोच्च सम्मान महावीर चक्र विजेता रामउग्रह पांडेय की जन्म स्थली रही है।       

सिद्धपीठ भुड़कुड़ा मठ के महंत शत्रुघ्न दास जी महाराज का कहना है कि इस सिद्धपीठ के संतों के प्रकाश से अध्यात्म जगत प्रकाशमान है। लेकिन स्थानीय शासन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के उपेक्षात्मक व्यवहार से सिद्धपीठ के केंद्र अनजान पड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि जखनिया क्षेत्र अपने को उपेक्षित महसूस कर कर रहा है। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही शादियाबाद स्थित ऐतिहासिक मलिक मरदान साहब की मजार इत्यादि विद्यमान हैं। खास बात यह कि वाराणसी सारनाथ से कुशीनगर लुंबिनी तक के लिए जाने वाले बौद्ध यात्रियों व पर्यटकों को मार्ग के मध्य में ही पड़ने वाले क्षेत्र में रोकने की जरा भी कवायद नहीं की जा सकी है।

ज्ञात हो कि तहसील क्षेत्र के पश्चिम आजमगढ़ की सीमा पर बेसों नदी के समीप ग्राम हुसैनपुर मुरथान स्थित टड़वा भवानी मंदिर पुरातत्व कालीन धर्म एवं संस्कृति की महत्वपूर्ण धरोहर है। इसके संबंध में महाभारत कालीन एक रोचक प्रसंग बहुत प्रचलित है कि देवी देवकी की सात संतानों में से एक है, जिसका कंस ने अपनी मृत्यु के भय से वध का प्रयास किया था।       

महंत शत्रुघ्न दास ने बताया कि इलाके में देश की प्रसिद्ध मठों में से एक सिद्धपीठ श्री हथियाराम मठ स्थित है। इस मठ की परंपरा लगभग 700 वर्ष प्राचीन है। इस पीठ पर आसीन होने वाले यदि सन्यासी कहे जाते हैं। इनकी गुरु परंपरा दत्तात्रेय, सुकदेव, शंकराचार्य से प्रारंभ होती है। मठ में स्थापित वृद्धम्बिका देवी (बुढि़या माई) की चौरी श्रद्धा एवं विश्वास का केंद्र है। जिनका उल्लेख दुर्गा सप्तशती में भी वर्णित है। अध्यात्म जगत में विदित किवदंतियों के अनुसार मोक्ष प्रदायिनी माता गंगा द्वारा प्रदत्त कटोरा भी इस सिद्धपीठ के पास ही मौजूद है। जहां देश के कोने-कोने से लोग वर्ष पर्यंत दर्शन पूजन को आते रहते हैं।

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अध्यात्म जगत की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि लगभग 400 वर्ष प्राचीन सतनामी संत परंपरा के संतों भीखा साहब, गुलाल साहब इत्यादि के प्रमुख साधना केंद्र भुड़कुड़ा मठ की जीवंतता व महत्ता आज भी विद्यमान हैं। दास ने बताया कि तहसील मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर दक्षिण स्थित शादियाबाद स्थित सैयद मलिक मरदान साहब की मजार हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। जनश्रुतियों के मुताबिक लगभग 950 वर्ष पूर्व गजनी से अमन व शांति का पैगाम देने के लिए अपने मरहूम मलिक बहरी, मलिक कबीर, मलिक फिरोज इत्यादि के साथ विभिन्न प्रांतों से होते हुए शादियाबाद पहुंचे यहां मलिक मरदान रुक गए। गौरतलब है कि आज तक इस मजार के रोजे में लगे खंभों की कोई गिनती नहीं कर सका।

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