अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: भारत में सशक्त महिलाओं का इतिहास रहा है, पढ़ें महिलाओं की सक्सेस स्टोरी

Edited By Ramkesh,Updated: 03 Mar, 2024 06:27 PM

international women s day india has a history of strong women

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को एक बार फिर से मनाया जाएगा और फिर से वही सब दोहराया जाएगा कि कैसे संघर्षों के बाद महिलाओं को अधिकार मिले। इसके साथ यह भी विरोधाभास रहा है। भारत में महिलाओं का एक लंबा सफल इतिहास रहा है और आज भी महिलाएं कदम से कदम...

लखनऊ: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को एक बार फिर से मनाया जाएगा और फिर से वही सब दोहराया जाएगा कि कैसे संघर्षों के बाद महिलाओं को अधिकार मिले। इसके साथ यह भी विरोधाभास रहा है। भारत में महिलाओं का एक लंबा सफल इतिहास रहा है और आज भी महिलाएं कदम से कदम मिलाकर ही नहीं बल्कि बहुत आगे चल रही हैं, तो ऐसे में यह परस्पर विरोधाभासी बातें कैसे हो सकती हैं?

स्त्रियां की युद्ध कौशल में थी दक्षता
यह सत्य है कि भारत में महिलाओं का सफल इतिहास रहा है, और यह और कोई नहीं बल्कि वही धर्म ग्रन्थ बताते हैं, जिनका हम अध्ययन करते हुए आए हैं। जैसे रामायण में ही हम पढ़ते हैं कि राजा दशरथ ने अपनी तीसरी रानी को दो वरदान दिए थे और उन्हीं के परिणामस्वरूप कैकयी ने प्रभु श्री राम के लिए वनवास मांग लिया था। मगर इस बात पर चर्चा बहुत कम होती है कि यह वरदान क्यों मिले थे? क्योंकि रानी ने युद्ध में राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की थी, अत: इससे यह स्पष्ट होता है कि हमारे ग्रंथों में यह लिखा है कि कैसे स्त्रियों की दक्षता युद्ध कौशल में भी थी। महाभारत में तो अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा, सुभद्रा आदि का उल्लेख ऐसी स्त्रियों के रूप में होता है जिन्हें युद्ध कौशल आता था। जब अर्जुन सुभद्रा को लेकर भागना चाहते थे तो श्री कृष्ण ने सुभद्रा से कहा था कि रथ सुभद्रा ही चलाएं, अर्थात महिलाओं को रथ आदि चलाने में पारंगतता थी। वाल्मीकि रामायण में ही महिलाओं की नाट्यशाला का उल्लेख प्राप्त होता है। चाणक्य काल में भी कामकाजी महिलाओं एवं उनके अधिकारों का वर्णन प्राप्त होता है। वेदों में तमाम ऋषिकाओं का उल्लेख प्राप्त होता है।

भारत में महिलाओं का शोषण होता था यह एक ऐसा झूठ है
गार्गी, अपाला, घोषा, सूर्या सावित्री, अदिति, विश्ववारा तथा लोपामुद्रा सहित असंख्य ऋषिकाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। विद्याअध्ययन से लेकर शासन संचालन तथा युद्ध कौशल में महिलाओं के कई उदाहरण प्राप्त होते हैं, फिर यह विमर्श कहाँ से निकलकर आता है कि महिलाओं के साथ भारत में शोषण होता था। यह एक ऐसा झूठ है, जिसे बार-बार दोहराने में ही लोगों का हित होता है, क्योंकि ऐसा करने के साथ सहानुभूति का संसार बनता है। आज भी यदि शिवाजी का नाम लिया जाता है तो उससे पहले जीजाबाई का नाम लिया जाता है और हर कोई यह मानता है कि यह जीजाबाई ही थीं, जिन्होनें शिवा को शिवाजी तक की यात्रा करवाई।

रानी लक्ष्मीबाई को क्यों उसी आदर से स्मरण किया जाता है
आज भी रानी अहल्याबाई को हर कोई श्रद्धा से स्मरण करता है, और आज भी औरंगजेब के अंतिम दिनों के लिए ताराबाई को ही याद किया जाता था, फिर यह पूछा जाए कि महिलाएं कहाँ से कमजोर थीं? यदि महिलाओं के साथ दुर्भावना पूर्ण व्यवहार किया जाता था तो आज भी जीजाबाई के सामने सिर क्यों झुक जाता है? यदि महिलाओं को अध्ययन या युद्ध कौशल आदि का अधिकार नहीं था, तो आज भी रानी लक्ष्मीबाई को क्यों उसी आदर से स्मरण किया जाता है, जिस आदर से मंगल पांडे या किसी भी अन्य पुरुष क्रान्तिकारी को स्मरण किया जाता है?

मंगलयान या चंद्रयान की यात्रा में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही 
आज भी मंगलयान या चंद्रयान की यात्रा में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, और यह भूमिका वैदिक काल से निरंतर चल रही है। हाँ, जब भारत पर मुस्लिमों के और उसके बाद यूरोपीय शक्तियों के आक्रमण हुए तो महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई थी, मगर उसके पीछे के कारकों को जानना होगा और यह भी स्पष्ट जानना होगा कि जब महिलाओं की स्थिति आक्रमणों के समय कमजोर हो रही थी, उस समय भारत के पुरुष भी कई कठिनाइयों का सामना कर रहे थे। वह एक अलग दौर था, मगर उस दौर में भी महिलाओं ने अपने नेतृत्व का परिचय दिया, जिनमें रानी दुर्गावती जैसी असंख्य नायिकाएं हैं, जिनकी कहानी हममें आज भी जोश भरती है। इसलिए आवश्यकता है कि सहानुभूति वाले विमर्श से बाहर आकर हम भारतीय महिलाओं के कौशल पर बात करें, युगों-युगों से सफल महिलाओं के उदाहरणों पर बात करें, जिससे हम परिवार के विमर्श पर बात कर सकें और यह पुरुष विरोधी न होकर पुरुषों के साथ की बात हो।

स्त्री का शोषण किसी अधर्मी ने किया न कि पुरुष ने 
बात इसलिए भी जरूरी है क्योंकि महिला के विषय में जैसे ही बात की जाती है, वैसे ही उसे पुरुष विरोधी मान लिया जाता है और संपूरक अर्थात परस्पर एक दूसरे को पूर्ण करने वाले विचार वाले भारत में महिला केन्द्रित और पुरुष विरोधी विमर्श हावी हो जाता है।एक ही रंग से सभी पुरुषों को रंगकर ऐसा प्रमाणित करने का कुप्रयास किया जाता है कि जैसे भारत में स्त्री का शोषण पुरुष करते हुए आए हैं, जबकि यदि स्त्री का शोषण किसी अधर्मी ने किया भी तो उसका प्रतिशोध भी उस स्त्री के जीवन के किसी न किसी पुरुष ने लिया ही। यदि रावण ने माता सीता का अपहरण किया तो उसका प्रतिशोध प्रभु श्री राम, लक्ष्मण, सुग्रीव, हनुमान सहित उन अनाम और असंख्य वानरों ने भी लिया, जिन्होनें यह माना और समझा कि स्त्री की मर्यादा का हरण सबसे बड़ा पाप है।

स्त्री के हर उत्पीड़न का प्रतिशोध लिया गया है
यदि महाभारत में द्रौपदी का चीरहरण हुआ, तो उसका प्रतिशोध भी भयानक हुआ, कि कैसे दुशासन का हृदय चीरा गया। ऐसे तमाम प्रकरण भारत के इतिहास एवं ग्रंथों में मिल जाएंगे जिनमे यह स्पष्ट है कि कैसे स्त्री के हर उत्पीड़न का प्रतिशोध लिया गया। इसलिए स्त्री दिवस के दिन केवल इस बात का रोना रोने का कोई भी लाभ नहीं होता है कि स्त्रियों का उत्पीड़न हमेशा हुआ है आदि आदि! क्योंकि स्त्रियों के साथ भारतीय मानस का पुरुष हमेशा रहा है, कंधे से कंधा मिलाए हुए, उसके साथ कदमताल करते हुए। यदि भक्तिकाल में महिलाओं ने कुछ रचनाएं की तो उन्हें मार्गदर्शन गुरुओं ने दिया। मीराबाई की बात सभी जानते हैं। अक्क महादेवी से लेकर लद्दद तक स्त्रियों को आदर उन पुरुषों ने हमेशा दिया है, जिनके विरोध की बात आजकल की जाती है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर यह आवश्यक है कि समझा जाए कि स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, परस्पर प्रतिद्वंदी नहीं! पुरुष आयोग एनजीओ की अध्यक्ष भी एक महिला है और आज यदि हम कुछ विशेष कर पा रहे हैं तो वह परस्पर सहयोग से न कि प्रतिद्वंदिता से!
बरखा त्रेहन प्रेसिडेंट पुरूष आयोग एनजीओ

 

 

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