Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 01 Nov, 2020 11:07 AM
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि सबूतों के अभाव में महज दूसरा विवाह करने के आरोप में सरकारी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त...
लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि सबूतों के अभाव में महज दूसरा विवाह करने के आरोप में सरकारी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त किया जाना न्याय की मंशा के विपरीत है। अदालत ने इस विधि व्यवस्था के साथ एक पुलिसकर्मी के बर्खास्तगी आदेश को निरस्त करते हुए उसे सेवा में बहाल किए जाने का आदेश दिया है।
गौरतलब है पुलिसकर्मी के खिलाफ एक महिला ने खुद के साथ दूसरी शादी करने और इससे एक बच्चा होने का आरोप लगाया था। पुलिसकर्मी के खिलाफ शुरूआती जांच में महिला के इस आरोप वाले बयान के तहत उसको सेवा से बर्खास्त किया गया था। इसके खिलाफ उसने याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया। यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने रायबरेली जिले के बर्खास्त पुलिस हेडकांस्टेबल लीलाधर की याचिका पर दिया। इसमें याची ने रायबरेली के पुलिस अधीक्षक के तीन मई 2018 के उस आदेश को चुनौती दिया था जिसके तहत दूसरा विवाह करने के आरोप में उसे सेवा से बर्खास्त किया गया था।
याची ने इस आदेश को सेवा के हित लाभों के साथ निरस्त किए जाने की गुजारिश की थी। याची के खिलाफ शिकायतकर्ता एक महिला ने शुरूआती जांच में खुद के साथ दूसरी शादी करने और इससे एक बच्चा होने का आरोप लगाया था। याची ने इसके खिलाफ अपने जवाब में दूसरा विवाह के आरोप से पूरी तरह इंकार किया था। उधर सरकारी वकील ने याचिका का विरोध किया।
न्यायालय ने कहा कि याची के खिलाफ नियमित विभागीय जांच में द्वि विवाह के आरोप को साबित करने वाली ऐसी कोई सामग्री या सबूत नहीं है। सिफर् शुरूआती जांच में जांच अधिकारी ने शिकायत करने वाली महिला के बयान के आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि याची के खिलाफ द्विविवाह का आरोप सिध्द है, जो विधिपूर्ण नहीं था। अदालत ने फैसले में कई नजीरों का हवाला देकर बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया और तत्काल याची को सेवा में पुनः बहाल करने के निर्देश दिए।